सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों में गरीबों के मुफ्त इलाज के मामले में केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी , भीलवाड़ा के हालात भी चिंताजनक
रियायती दर पर जमीन ले रहे निजी अस्पताल
लेकिन गरीबों के मुफ्त इलाज में आनाकानी
10% बेड आरक्षित करने की शर्त का पालन न करने के आरोप
नई दिल्ली/भीलवाड़ा, - सुप्रीम कोर्ट ने रियायती दरों पर जमीन लेने वाले निजी अस्पतालों में गरीबों के मुफ्त इलाज और उनके लिए बेड आरक्षित करने की शर्त का पालन न होने के आरोपों पर केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस मैगसेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय की याचिका पर जारी किया गया है, जिसमें भीलवाड़ा समेत देशभर में निजी अस्पतालों द्वारा इस शर्त का व्यवस्थित रूप से उल्लंघन किए जाने का दावा किया गया है।
याचिका के मुख्य बिंदु और आरोप
याचिकाकर्ता संदीप पांडेय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कोर्ट को बताया कि निजी अस्पतालों को इस शर्त पर सस्ती दरों पर जमीन दी गई थी कि वे गरीबों का मुफ्त इलाज करेंगे और उनके लिए एक निश्चित संख्या में बेड आरक्षित रखेंगे। हालांकि, ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जो यह साबित करे कि निजी अस्पताल इस शर्त का पालन कर रहे हैं।
याचिका में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में इस शर्त के पालन में व्यवस्थित नाकामी पाई गई है। याचिका में साफ तौर पर कहा गया है कि भीलवाड़ा में भी स्थिति ऐसी ही है, जहाँ निजी अस्पताल गरीब मरीजों को भर्ती करने के लिए 10% बेड और 25% आउटडोर कंसल्टेशन मुफ्त नहीं दे रहे हैं।
दिल्ली ही नहीं भीलवाड़ा के भी ऐसे ही हालात
याचिका में दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल का उदाहरण दिया गया है, जिसे 600 में से 200 बेड गरीबों के लिए आरक्षित रखने की शर्त पर जमीन मिली थी। इसके बावजूद, दिल्ली हाई कोर्ट ने 2007 में पाया था कि अधिकारी इन शर्तों की निगरानी करने में विफल रहे हैं।
महाराष्ट्र में 2008 की CAG रिपोर्ट के अनुसार, 113 में से 11 सार्वजनिक ट्रस्ट अस्पतालों की जाँच की गई, जिनमें से अधिकांश डिफॉल्टर पाए गए। इनमें बॉम्बे हॉस्पिटल, लीलावती हॉस्पिटल, सैफी हॉस्पिटल और पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल शामिल हैं।
इसी तरह, हरियाणा में 2018 की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 2008 से 2016 के बीच निगरानी समिति की कोई बैठक नहीं हुई। एक मामले में 64,000 मरीजों में से केवल 118 कमजोर वर्ग के मरीजों का इलाज किया गया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। याचिका में कोर्ट से यह सुनिश्चित करने की अपील की गई है कि जिन निजी अस्पतालों ने रियायती दर पर जमीन ली है, वे गरीबों को मुफ्त इलाज देने की अपनी शर्त का ईमानदारी से पालन करें। यह मामला उन लाखों गरीबों के लिए उम्मीद की किरण है, जो महंगी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण इलाज से वंचित रह जाते हैं।
