पलायन को मजबूर "मजदूर": कम जोब रेट पर काम करने को तैयार, फिर भी नहीं मिल रहा आर्डर, रीको में पसर रहा सन्नाटा
भीलवाड़ा (राजकुमार माली)। ओद्योगिक क्षेत्र रीको की कपड़ा फैक्ट्रियों के चक्के धीरे-धीरे थमते जा रहे हैं। ऐसे में बेरोजगार हो रहे बिहारी, यूपी के श्रमिक पलायन कर रहे हैं। फैक्ट्रियों से लूमें भी खुलने लगी है। काम नहीं मिलने से क्षेत्र की होटल हो या अन्य दुकानदार ग्राहकों को तरसने लगे है।
जानकारों की माने तो दीपावली तक हालात नहीं सुधरे तो भीलवाड़ा की आर्थिक स्थिति पर काफी बुरा प्रभाव पड़ेगा। वहीं यह चर्चा भी है कि अगले महीने काम चलना शुरू होगा, लेकिन फैक्ट्री मालिकों को तब मजदूरों की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। बिगड़ते हालातों को लेकर रीको में सन्नाटा पसर रहा है, लेकिन सरकार की गलत आयात नीति पर लगाम लगती नजर नहीं आ रही है।
भीलवाड़ा मजदूर संघ के बंशीलाल मोहरी ने हलचल को बताया कि औद्योगिक क्षेत्र रीको की अधिकांश फैक्ट्रियों में शनिवार-रविवार को सन्नाटा पसरा रहता है। जबकि अन्य दिनों में लूमें आदि ही चल रही है। मजदूरों को काम नहीं मिलने से वह बेरोजगार हो रहे हैं और एक फैक्ट्री से दूसरी फैक्ट्री में काम की तलाश कर रहे हैं,
परंतु सबके हालात एक जैसे हैं। ऐसे में मजदूरों का पलायन हो रहा है और वे अपने गांव बिहार, यूपी और मध्यप्रदेश लौट रहे हैं। काम नहीं मिलने से उनके सामने परिवार का पेट पालना भी मुश्किल हो गया है। मोरी ने बताया कि औद्योगिक क्षेत्र रीको की होटले मजदूरों
से भरी रहती थी, लेकिन आज चाय की थडिय़ां सूनी है और अन्य दुकानदार भी ग्राहकों का इंतजार करने लगे हैं।
सरकारी की गलत नीति से हालात बिगड़े
उद्योगपति राकेश मंडोवरा ने बताया कि रीको में कपड़ा फैक्ट्रियों के हालात काफी गंभीर है। जोब रेट पर काम करने वाले फैक्ट्री मालिक लागत से कम जोब रेट पर काम करने को तैयार है, परंतु फिर भी जोब नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे में फैक्ट्रियों को बंद करने की नौबत आने लगी है और अधिकांश प्लांट शनिवार और रविवार को बंद रहने लगे हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना में भी ऐसे हालात नहीं हुए थे, तब भी काम मिल रहा था, लेकिन अब तो सरकार की एक गलत नीति देश के कपड़ा कारोबार को बर्बाद करती नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि विदेशों से बिना ड्यूटी कपड़े के आयात होने से यह स्थिति बनी है। उन्होंने ऐसी योजनाओं को बंद करने की मांग की है, जिससे देश का उद्योग धंधा जीवित रह सके।
कई साथी घर लौट, अब हम भी जाएंगे
कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के हालात भी खराब है। काम नहीं मिलने से वह इधर-उधर भटक रहे हैं। महीने में दस दिन भी मजदूरी मिल जाए तो बड़ी बात है। यहीं वजह है कि रोजाना मजदूरों का पलायन हो रहा है। उन्होंने कहा कि क्या खाएंगे और क्या बचाएंगे। पिछले दो तीन महीनों से ऐसे ही हालात है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच साल से यहां काम कर रहा हूं लेकिन ऐसे हालात कभी नहीं देखें।
मकान बेच, गांव जाने की नौबत
एक अन्य श्रमिक सोहन ने बताया कि हालात खराब है, मजदूर घर लौट रहे हैं। खाने पीने की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है और यहीं हालात रहे तो अपने सामान लेकर घर लौट जाएंगे और लौटे या नहीं, यह कहा नहीं जा सकता है। ऐसे में काम चला तो फैक्ट्री मालिकों के सामने मजदूरों की समस्या खड़ी हो जाएगी। एक अन्य मजदूर आरपी ने बताया कि पहले वह फैक्ट्रियों से अच्छा कमा लेते थे, लेकिन अब हालात खराब है, जैसे तैसे घर का मकान बनाया, मगर अब किश्ते चुकाना भी भारी पड़ रहा है और घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में अब मकान बेचकर गांव जाने की सोच रहे हैं।
डूब रही उधारी
पांसल चौराहे पर मोबाइल व्यवसायी धीरज टांक ने बताया कि पहले उनका अच्छा धंधा चल रहा था, लेकिन फैक्ट्रियां बंद पडऩे से मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है, ऐसे में उनकी ग्राहकी भी 80 फिसदी कम हो गई है। उधार दी गई राशि अब वसूलना मुश्किल हो रहा है। कई मजदूर तो शहर छोडक़र जा चुके है और अब उनकी उधारी डूबती नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि जल्द ही हालात नहीं सुधरे तो दुकानों का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो जाएगा।
300 से ज्यादा लूमे बिकी
खुलने लगी
एक भरोसेमंद सूत्र ने बताया कि लगातार घाटे में जा रही फैक्ट्रियों के चलते कुछ मालिकों ने लूमे बेचना और शिफ्ट करना शुरू कर दिया है। अब तक 300 से ज्यादा लूमे बेचे जाने की खबर है और ऐसे ही हालात रहे तो मजदूरों के साथ-साथ फैक्ट्रियों का पलायन भी शुरू हो जाएगा। जिससे शहर की आर्थिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। शहर में काई नई इकाई तो आई नहीं, लेकिन पलायन की खबरे जरूर आने लगी है।