संत जब जीवन में आते हैं तब भगवान की भक्ति प्राप्त होती है " संत दिग्विजय राम महाराज

By :  vijay
Update: 2024-12-24 12:46 GMT

भीलवाड़ा/गंगापुर भगवान के भक्तों को कष्ट देने से व्यक्ति का नाश हो जाता है उदाहरण के लिए रावण, कौरव , कंस हर जीव अपने कर्मों का फल भोगता है, एक बाप के चार औलाद होती है लेकिन सबकी गति अलग-अलग होती है यह सब कर्मों का खेल है , किए गए कर्मों का फल जीव को अवश्य भोगना पड़ता हैl कर्म फल से व्यक्ति को सुख-दुख प्राप्त होते हैं जिस दिन व्यक्ति के पुण्य खत्म हो जाते हैं तब व्यक्ति में दुख आता है तब वह व्यक्ति भगवान को दोष देता है लेकिन सत्य यह है कि सब कर्म फल का परिणाम है ,माता-पिता सुख-दुख सभी जीव को कर्म के अनुसार प्राप्त होते हैं l जब तक शरीर के अंगों का सामर्थ्य है व्यक्ति को सत्कर्म कर लेना चाहिए लेकिन वास्तविकता यह है कि व्यक्ति भक्ति के लिए समय यानी कि बुढ़ापे का इंतजार करता है l

यह बात श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव ज्ञान यज्ञ के चतुर्थ दिन संत दिग्विजय राम महाराज ने राधा कृष्ण वाटिका,गंगापुर में कहीं, कथा में मुख्य यजमान नाथू लाल मुन्दडा परिवार ने भागवत कथा में आरती की, कथा में आज नर्सिंग अवतार की विशेष झांकी सजाई गई जो आकर्षण का केंद्र रही ,कथा का आयोजन 22 से 28 दिसंबर तक दोपहर 1 से 5 बजे से तक आयोजित होगी जिसमें 25 दिसंबर बुधवार को माता की चौकी का विशेष आयोजन होगा 7:30 बजे गायक कुंदन मिश्र मुंबई द्वारा प्रस्तुतिया दी जाएगी चतुर्थ दिवस पर कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा कथा में आज महिला पुरुषों ने रानी कलर के विशेष ड्रेस कोड के कपड़े पहने हुए थे

तृतीय दिवस की कथा में महाराज ने बताया कि जीवन में पैसा रोटी दे सकता है परंतु भूख नहीं ,पैसा सिर्फ गुजारा है सहारा नहीं ,सहारा तो केवल उसे परमपिता परमात्मा का हैl पुत्र भी अपने माता-पिता को प्रणाम नहीं करता है जबकि माता पिता भगवान होते हैं हर माता-पिता को चाहिए कि यह बच्चों को धन न देकर संस्कार दें l जीवन में मां बच्चे की प्रथम गुरु होती है हमारे शास्त्र तो यहां तक कहते हैं कि बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है तभी से वह उससे है ज्ञान प्राप्त करना शुरू कर देता है l हमारी सनातन संस्कृति जोड़ना सिखाती है तोड़ना नहीं हम विवाह को भी सात जन्मों का बंधन मानते है l आज के युग में कॉन्वेंट शिक्षा से बच्चों में संस्कार की कमी आई है इस शिक्षा के पहले भारतवर्ष में वृद्ध आश्रम की कोई व्यवस्था नहीं थी परंतु इस संस्कार वहीन शिक्षा से जगह-जगह वृद्धाआश्रम खुल रहे हैंl हमारी संस्कृति में जो धार्मिक चिन्ह बताए गए हैं जिसे तिलक करना, सीखा रखना, सूर्य को जल चढ़ाना इन सभी का भी वैज्ञानिक महत्व सिद्ध हुआ है l जीवन में ईश्वर कृपा से संत मिलन होता है और जब संत दया दिखाते हैं तो भगवत मिलन हो जाता है संत का जीवन में आना ही परमात्मा की असीम कृपा है , संत का जीवन में आना व बसंत का आना दोनों समान है बसंत जब आता है तब प्रकृति सवर जाती है और जीवन में जब संत आते हैं तो जीवन में बसंत आ जाता है l हर जीव को प्रारब्ध कर्म अनुसार प्राप्त होते हैं जिस प्रकार कुवे का पानी सभी फसलों के लिए समान होता है लेकिन बीज अनुसार फल का स्वाद आता है कोई खट्टा होता है तो कोई मीठा तो कोई तीखा यह प्रकृति का खेल है lव्यक्ति को जो स्थिति भगवान ने दी है उसके साथ यदि व्यक्ति ने सामंजस्य कर लिया है वह व्यक्ति सुखी हैl यह जीवन बहुत ही छोटा है इसको व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए इस संसार में वही व्यक्ति सुखी है जिसको कोई लालसा नहीं है एक भगवान का नाम ही संसार का सबसे बड़ा कार्य कर सकता है l आज की कथा में ध्रुव चरित्र भक्त पहलाद कथा व अजामिन प्रसंग श्रवण कराया गया

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