खुदरा उर्वरक विक्रेता स्मार्ट व्यवसाय करें-डॉ. सोनी
कृषि विज्ञान केन्द्र, भीलवाड़ा पर खुदरा उर्वरक विक्रेताओं हेतु 15 दिवसीय पाठ्यक्रम प्रशिक्षण दिनांक 19 दिसम्बर जनवरी 2025 तक आयोजित गया। प्रशिक्षण समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. आर. एल. सोनी, निदेशक प्रसार शिक्षा, प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर ने बताया कि व्यवसाय में निष्पक्षता होना बहुत आवश्यक है साथ ही किसानों की मांग के अनुसार व्यवसाय करने पर जोर दिया। डॉ. सोनी ने धरती माँ में आवश्यकता अनुसार ही खाद-उर्वरक देने पर जोर देते हुए जैविक खेती एवं प्राकृतिक खेती अपनाने की आवश्यकता जताई। प्रशिक्षणार्थियों को सच्ची लगन, निष्ठा व ईमानदारी से अपने व्यवसाय को अपनाने के साथ ही किसानों को सही समय पर सही सुझाव देकर अप्रत्यक्ष रूप से उनके लिए बदलाव अभिकर्ता के रूप में सहायता करने के लिए प्रोत्साहित किया। अपने उद्बोधन में डॉ. सोनी ने यह भी कहा कि इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने के उपरान्त सभी उर्वरक विक्रेताओं को किसानों से सीधा सम्पर्क स्थापित कर विभिन्न प्रकार की नवीनतम एवं आधुनिक कृषि तकनीकियों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और उनकी आमदनी को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। डॉ. सोनी ने कृषि के छः प्रमुख आयामों यथा जमीन, पानी, बीज, उर्वरक, मशीनीकरण, वातावरण एवं किसान के बारे बताते हुये कहा कि किसान सर्वोपरी है और उसको ध्यान में रखते हुए उर्वरक विक्रेताओं को अपनी तैयारी करनी चाहिये। डॉ. सोनी ने सी.बी.आई.एन.डब्ल्यू. कॉन्सेप्ट पर बात करते हुये कस्टमाईज उर्वरक, सन्तुलित उर्वरक एवं समन्वित उर्वरक प्रबन्धन के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश डाला और नेनो फर्टिलाईजर एवं जल में घुलनशील उर्वरकों के महत्त्व पर भी चर्चा की। खुदरा उर्वरक विक्रेता रोजगार के साथ-साथ राष्ट्र विकास में भागीदारी, किसानों की आमदनी बढ़ाने में योगदान, गांव में किसान डीलर से जानकारी लेता है अतः डीलर को खेती का ज्ञान होना जरूरी, व्यापार चलाने के लिये व्यवहार कुशल व कृषि ज्ञान का होना महत्त्वपूर्ण है।
खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण पाठ्क्रयम समन्वयक डॉ. सी. एम. यादव वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष कृषि विज्ञान केन्द्र भीलवाड़ा ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय बताये तथा टिकाऊ खेती समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधीकरण, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन आदि विषयों पर जानकारी देकर उनका ज्ञान वर्धन किया। उर्वरकों के सन्तुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्त्व एवं मिट्टी नमूना लेने का तरीका, एस.टी.एफ.आर. मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक सिफारिश पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबन्धन, समन्वित पोषक तत्व की कमी के लक्षण, जैविक खेती और उसके लाभ, कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट खाद, वर्मीवॉश व डिकम्पोजर आदि बनाने का प्रायोगिक कार्य प्रशिक्षणार्थियों सेे करवाकर समझाया। प्रशिक्षण सह समन्वयक डॉ. के. सी. नागर, प्रोफेसर शस्य विज्ञान ने उर्वरक सर्टिफिकेट कोर्स सम्बन्धी सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक जानकारियाँ विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा तकनीकी जानकारी प्रदान की गई। उपनिदेशक कृषि एवं पदेन परियोजना निदेशक आत्मा भीलवाड़ा ने जिले में उर्वरकों की मांग, आपूर्ति एवं संभावनाओं पर चर्चा करते हुए प्रशिक्षणार्थियों को आह्वान किया कि जो युवा अपने गाँव या कस्बे में स्वरोजगार शुरू करना चाहते है, उनके लिए यह शानदार मौका है कि वे मात्र 15 दिन का प्रशिक्षण प्राप्त कर खाद उर्वरक बेचने का लाईसेन्स प्राप्त कर सकेंगे।संगम विश्वविद्यालय के डीन डॉ. एस. पी. टेलर ने खाद, बीज व उर्वरको के भण्डारण के बारे में जानकारी के साथ ही स्टॉक रजिस्टर में बीज व उर्वरकांे का इन्द्राज एवं एफ.पी.ओ. के गठन व इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला। कृषि महाविद्यालय भीलवाड़ा की उद्यान वैज्ञानिक डॉ. सुचित्रा दाधीच ने उद्यानिकी फसलों, फलो एवं सब्जी की फसलांे में संतुलित उर्वरकांे का उपयोग व उद्यान विभाग द्वारा दी जाने वाली विभिन्न योजनाओं एवं कृषि यंत्रो में दिये जाने वाले अनुदानों के बारे में बताया। प्रशिक्षण में कृषि विज्ञाग के सिद्धार्थ सोलंकी, दिनेश पंवार, धीरेन्द्र सिंह द्वारा कृषि के विभिन्न आयाम पर प्रकाश डाला गया। प्रशिक्षण में तकनीकी सहायक अनिता यादव, वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता संजय विश्नोई एवं सहायक कृषि अधिकारी नन्द लाल सेन ने कृषि विज्ञान केन्द्र स्थित सजीव इकाईयों का भ्रमण करवाया। प्रशिक्षण में भीलवाड़ा, अजमेर एवं चित्तौड़गढ जिले के 35 युवाओं ने भाग लिया।