दिशा बैठक में फूटा विधायकों का गुस्सा, कलेक्टर ने भी सुनाई खरी-खरी, प्रदूषण, फसल मुआवजा, पानी सड़क और कचरे के मुद्दे छाएं
भीलवाड़ा हलचल
कलेक्ट्रेट सभागार में सोमवार को हुई जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति (दिशा) की बैठक एक बार फिर नेताओं और अधिकारियों के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप का मंच बन गई। बैठक का मकसद विकास योजनाओं की समीक्षा और समन्वय था, लेकिन असल में यह बैठक जनता से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर नेताओं के गुस्से और प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलने का अखाड़ा बन गई।
प्रोसेस हाउस पर निशाना – नदियों का पानी जहरीला
बैठक की शुरुआत में ही बारिश के मौसम में प्रोसेस हाउस की ओर से नदियों में छोड़े जाने वाले गंदे पानी पर विधायकों ने रोष जताया। विधायकों ने साफ कहा कि उद्योगों की मनमानी से नदियों का पानी जहरीला हो रहा है। खेती-किसानी से लेकर पेयजल तक सब पर इसका असर पड़ रहा है, लेकिन प्रशासन खामोश है। सवाल उठाया गया कि प्रदूषण बोर्ड की भूमिका आखिर क्या है? क्या कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित है?
किसानों के जख्म हरे – गिरदावरी और मुआवजा अधर में
कृषि विभाग इस बार भी बैठक में सबसे ज्यादा घेरे में रहा। विधायकों ने साफ शब्दों में कहा कि 2024 की फसल खराबे का मुआवजा अभी तक किसानों को नहीं मिला है। ऑनलाइन गिरदावरी में खामियां इतनी हैं कि किसानों को न्याय मिलने की बजाय और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
विधायकों का कहना था कि ऑनलाइन व्यवस्था केवल कागजी खानापूर्ति बनकर रह गई है। कई जगह इंटरनेट समस्या के कारण किसान अपनी शिकायत ही दर्ज नहीं कर पा रहे। ऐसे में ऑफलाइन गिरदावरी जरूरी है। इस पर कलेक्टर जसमीत सिंह संधू ने 25 सितंबर तक ऑफलाइन गिरदावरी शुरू करने और उसके बाद भी जारी रखने के निर्देश दिए।
सड़कों और कचरे पर घमासान
विधायक अशोक कोठारी ने सीवरेज, खराब सड़कों और कचरे के ढेर का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने कहा कि शहर में विकास का नाम केवल पोस्टरों तक सीमित है, जबकि हकीकत में आमजन रोज गंदगी और टूटी सड़कों से जूझ रहा है।
इस पर चेयरमैन राकेश पाठक ने बचाव करते हुए कहा कि पहले 55 ऑटो टिपर थे, अब उनकी संख्या बढ़ाकर 110 कर दी गई है और हर दिन कचरा उठाया जा रहा है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर किसी को शक है तो वह खुद जांच करवा सकता है। हालांकि विधायक का सवाल यही था कि कचरा उठाने के बाद भी शहर क्यों बदबूदार है?
रोडवेज डिपो पर तकरार
शाहपुरा विधायक लालाराम बैरवा ने रोडवेज बस स्टैंड डिपो के विकास का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि वर्षों से यह डिपो बदहाली का शिकार है। नगर पालिका केवल बहाने बना रही है। इस पर नगर पालिका अध्यक्ष रघुनंदन सोनी ने कहा कि उन्होंने पट्टा जारी करने को लेकर मार्गदर्शन मांगा है।
कलेक्टर ने साफ शब्दों में कहा कि यदि नगर पालिका पट्टा जारी नहीं कर सकती तो उसे सरेंडर कर दे, कलेक्ट्रेट से सीधे पट्टा जारी किया जाएगा। उनका यह जवाब नगर पालिका की कार्यशैली पर बड़ा सवालिया निशान छोड़ गया।
कलेक्टर की फटकार – आदर्श गांव सिर्फ कागजों में
जिला परिषद के सीईओ चंद्रभान सिंह भाटी ने पीपीटी पेश करते हुए 11 गांवों को आदर्श गांव बताया। लेकिन कलेक्टर जसमीत सिंह संधू भड़क उठे। उन्होंने दो टूक कहा – “इनमें से एक भी गांव मुझे आदर्श नहीं लगता।”
कलेक्टर की यह टिप्पणी अधिकारियों की लापरवाही और योजनाओं के खोखले दावों की पोल खोलने के लिए काफी थी। उन्होंने कहा कि केवल स्लाइड्स दिखाकर विकास नहीं होता, गांवों की वास्तविक तस्वीर सुधरनी चाहिए।
पेयजल पर कलेक्टर की चिंता – चंबल का विकल्प क्या?
कलेक्टर ने जल संकट पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि भीलवाड़ा का मुख्य जल स्त्रोत चंबल है। लेकिन अगर किसी कारणवश सप्लाई बाधित हो जाए तो जिले के पास कोई विकल्प नहीं है।
उन्होंने सुझाव दिया कि इस साल अच्छी बारिश से तालाब, बांध और नदियों में पर्याप्त पानी आया है। प्रशासन को इन स्थानीय जलस्त्रोतों का उपयोग कर वैकल्पिक व्यवस्था तैयार करनी चाहिए। विधायकों ने भी पीएचईडी विभाग पर कर्मचारियों की लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि इनके स्थानांतरण किए जाएं।
सड़कें साल-दर-साल बह जाती हैं
मांडलगढ़ विधायक गोपाल खंडेलवाल ने कहा कि बारिश आते ही नदियों का पानी सड़कों पर चढ़ जाता है। हर साल सड़कें बह जाती हैं और हर साल मरम्मत होती है। यह सिलसिला कब तक चलेगा? उन्होंने सुझाव दिया कि सड़कों की ऊंचाई बढ़ाकर स्थायी समाधान किया जाए।
डीएमएफटी की गुणवत्ता पर सवाल
बैठक में डीएमएफटी (जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट) के कामकाज पर भी सवाल उठाए गए। समसा की ओर से कार्यों की गुणवत्ता पर गंभीर आपत्तियां दर्ज की गईं। अंततः यह सहमति बनी कि 50 लाख रुपए से ऊपर के सभी कार्य पीडब्ल्यूडी के माध्यम से कराए जाएं, ताकि गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।
बैठक का निचोड़ – जनता के सवाल, अधूरे जवाब
करीब तीन घंटे चली इस बैठक में यह साफ हो गया कि जिले के विकास कार्यों का बड़ा हिस्सा केवल कागजों पर ही चल रहा है। विधायक गुस्से में थे, अफसर बचाव की मुद्रा में। कलेक्टर ने बीच-बीच में सख्त रुख दिखाया, लेकिन असली सवाल यही है कि क्या बैठक के ये तीखे बोल जमीनी हकीकत में बदलाव ला पाएंगे?
भीलवाड़ा के हालात बताते हैं कि—
उद्योगों का प्रदूषण अनियंत्रित है।
किसानों का मुआवजा अधर में है।
सड़कें हर साल बहती हैं। ऊंची कर दी जाती हे
शहर कचरे से उबर नहीं पा रहा।
और गांव केवल रिपोर्टों में आदर्श कहलाते हैं।
जनता पूछ रही है – बैठकों में गूंजने वाले ये सवाल आखिर कब तक जवाब तलाशते रहेंगे?
