ग्राम पंचायत भगवानपुरा की लड़ाई को कोर्ट से सहारा,: 25 दुकानों का अतिक्रमण हटाने के लिए पुलिस सहायता का आदेश

Update: 2025-09-18 03:00 GMT

 

भीलवाड़ा/जोधपुर। लंबे समय से चले आ रहे विवाद के बाद आखिरकार राजस्थान हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने ग्राम पंचायत भगवानपुरा की सरपंच रतना प्रभा चुंडावत की याचिका पर सुनवाई करते हुए उपखंड अधिकारी और पुलिस अधीक्षक भीलवाड़ा को पंचायत भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए पुलिस सहायता उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं। इस आदेश के बाद अब दोनों पक्षों की निगाहें होने वाली कार्रवाई पर टिकी हुई हैं।

विवाद की पृष्ठभूमि

यह मामला तब शुरू हुआ जब जिला कलेक्टर भीलवाड़ा ने पंचायत भूमि पर बने 25 दुकानों के पट्टों को अवैध करार दिया था। कलेक्टर ने स्पष्ट किया था कि ये पट्टे पंचायती राज अधिनियम 1994 के प्रावधानों के खिलाफ जारी किए गए थे। कलेक्टर के फैसले के बाद उन पट्टाधारियों को अतिक्रमणकारी घोषित कर दिया गया।

ग्राम पंचायत ने बार-बार संबंधित अधिकारियों से पुलिस सहायता मांगकर अतिक्रमण हटाने की कोशिश की, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। इसके बाद सरपंच ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।

अदालत की सख्ती

याचिकाकर्ता की ओर से राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 की धारा 165(6) का हवाला दिया गया। इस धारा के अनुसार, यदि ग्राम पंचायत को अपनी भूमि पर अतिक्रमण मिलता है, तो वह सीधे या उपखंड मजिस्ट्रेट के माध्यम से पुलिस सहायता लेकर उसे हटवा सकती है।

जस्टिस कुलदीप माथुर ने रिट याचिका और स्थगन आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा कि पंचायत का पक्ष पूरी तरह वाजिब है और धारा 165(6) के तहत कार्रवाई न्यायसंगत है। उन्होंने चार सप्ताह के भीतर कार्रवाई करने का आदेश दिया।

पांच अधिकारियों को बनाया गया प्रतिवादी

पंचायत की ओर से इस मामले में कुल पांच अधिकारियों को प्रतिवादी बनाया गया था। इनमें –

राज्य सरकार (प्रधान सचिव, स्थानीय स्व-शासन विभाग),

उपखंड अधिकारी भीलवाड़ा,

विकास अधिकारी, पंचायत समिति मंडल,

जिला कलेक्टर भीलवाड़ा,

पुलिस अधीक्षक भीलवाड़ा शामिल हैं।

अब नजरें कार्रवाई पर

अदालत के इस आदेश के बाद अब लोगों की निगाहें प्रशासन की कार्रवाई पर टिक गई हैं। गांव के लोग जानना चाहते हैं कि क्या वाकई चार सप्ताह के भीतर अतिक्रमण हटाया जाएगा या फिर यह मामला एक बार फिर फाइलों में दब जाएगा।

चर्चाओं का दौर तेज

गांव और आसपास के इलाके में इस फैसले को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।

पंचायत समर्थक इसे ग्रामसभा की जीत और जनता के हक में आया फैसला बता रहे हैं।

वहीं अतिक्रमणकारी बताए जा रहे लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि किसी तरह उन्हें राहत मिल जाएगी।

आगे की राह

यह विवाद केवल जमीन का नहीं बल्कि ग्राम पंचायत की अधिकारिता बनाम प्रशासनिक सुस्ती का भी उदाहरण माना जा रहा है। अदालत का आदेश न केवल भगवानपुरा पंचायत बल्कि प्रदेश की अन्य पंचायतों के लिए भी एक नजीर बन सकता है।

👉 अब सबकी नजरें प्रशासन की अगली कार्रवाई पर हैं। कोर्ट ने चार सप्ताह की जो समयसीमा तय की है, वह न केवल पंचायत बल्कि अतिक्रमणकारियों और ग्रामीणों के लिए भी निर्णायक साबित होगी।

 

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