ग्रामीण रसोई से गायब हो रही देसी सब्जियां: काचरी और ग्वार फली की थाली से विदाई
ग्रामीण इलाकों की पहचान और पारंपरिक देसी थाली का अहम हिस्सा रही काचरी और ग्वार फली अब धीरे-धीरे लोगों की रसोई से गायब हो रही हैं। कभी खेतों में सहजता से उगने वाली और पोषक तत्वों से भरपूर काचरी अब बाजारों में भी नहीं दिखती और नई पीढ़ी की थाली में इसका नामोनिशान नहीं रहा।
काचरी, जिसे वैज्ञानिक रूप में *माउस मेलन* कहा जाता है, प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर से भरपूर होती है। यह पाचन के लिए लाभकारी और कई बीमारियों से सुरक्षा देने वाली देसी सुपरफूड मानी जाती है। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले यह हर घर की पसंदीदा सब्जी थी और सालभर की रसोई में इसका उपयोग आम था, लेकिन अब फास्ट फूड और चाइनीज व्यंजनों की बढ़ती लोकप्रियता ने देसी स्वाद को धीरे-धीरे पीछे धकेल दिया है।
**कभी थी हर खेत की पहचान**
बुजुर्गों की यादों में काचरी और ग्वार की फली खेतों में अपने आप उगती थीं। ग्रामीण इन्हें एकत्र कर सुखाकर सालभर उपयोग करते थे। इससे बनी चटनी और सब्जी हर भोजन में स्वाद और पोषण दोनों का काम करती थी। आज आधुनिक खेती पद्धति और रासायनिक खादों के कारण देसी सब्जियों की प्राकृतिक पैदावार लगभग खत्म हो चुकी है।
**औषधीय गुणों से भरपूर**
काचरी में मौजूद औषधीय तत्व पेट दर्द, गैस और मोटापे जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं। इसका पाउडर आज भी राजस्थानी व्यंजनों में स्वाद और स्वास्थ्य दोनों का संतुलन बनाए रखता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि पारंपरिक फसलों को दोबारा उगाने और प्रोत्साहित करने पर ध्यान दिया जाए, तो न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी बल्कि सेहतमंद खानपान की परंपरा भी फिर से लौट सकती है।
इस बदलाव के बीच, यह सवाल उठता है कि क्या हमारी नई पीढ़ी अपनी पारंपरिक और पोषक देसी सब्जियों को भूल जाएगी, या फिर इन्हें पुनर्जीवित करने के प्रयासों से ग्रामीण थालियों में फिर से स्वाद और स्वास्थ्य का संतुलन लौट सकेगा।
