आकोला (रमेश चन्द डाड) कोटडी कस्बे के मध्य स्थित सरस्वती विद्या मंदिर माध्यमिक विद्यालय परिसर में आयोजित श्री राम सत्संग मंडल द्वारा आयोजित अनभय वाणी प्रवचन करते हुए महाराज श्री श्याम राजपुरोहित ने कहा कि मनुष्य जन्म के पहले नौ माह में सभी भोजन व्यवस्था परमात्मा कितनी व्यवस्थित रूप से करता है की संपूर्ण शरीर का निर्माण हो जाता है ! नाक, कान, मुँह,आंख, हाथ, पैर जहां शरीर में लगने होते हैं वे वही लगते हैं ओर एक संपूर्ण शरीर का निर्माण परमात्मा बहुत ही सुंदर तरीके से करता है ! लेकिन मानव जीवन मिलने के बाद सांसारिक मोह माया में फंसकर जीवन को व्यर्थ बना देते हैं व राम नाम का सिमरन न करके मोह जाल में फंस जाता है तथा अपनी भौतिक सुख सुविधाओं में इतना विलुप्त हो जाता है कि उसे राम नाम के सिमरन का ज्ञान तक नहीं रहता ! जबकि परमात्मा हर कण में विद्यमान है वह हर पशु- पक्षी, हर सजीव - निर्जीव में उपस्थित है! अतः मनुष्य काम, क्रोध मोह, लोभ में फसता जा रहा है अमूल्य मानव जीवन मिला है उसको व्यर्थ में खो रहा है लेकिन राम नाम सिमरन नहीं कर पा रहा है ! पुनः चौरासी के बंधन में बांधने का सपना सच हो रहा है लेकिन अमूल्य जीवन को झूठ, कपट, अन्याय में लगाकर व्यर्थ कर रहा है! परमात्मा ने जीवन आत्मा को परमात्मा से मिलने के लिए दिया है नर से नारायण बनने की व्यवस्था परमात्मा ने की है लेकिन मानव सुखों को भोगने के कारण मानव ये भूलकर भटक रहा है! सांसारिक मोह माया से भटक रहा है परलब्ध कार्य जो शरीर के साथ आए उन्हें चाहे संत हो या परमात्मा उन्हें तो भोगना ही पड़ेगा, अपने किए की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी चाहे मानव हो या देवता ! ब्रह्मा, विष्णु, महेश ॐ के अधीन है जो भी धर्म के विमुख होगा कष्ट भोगेगा व परमात्मा की जो भक्ति करते हैं वही मानव शरीर रामस्नेही सनातनी है ! परमात्मा की भक्ति विधि विधान के साथ सेवा करनी चाहिए जो सतगुरु का मतलब जो गुरु सत्य की ओर ले जाए अंधकार से प्रकाश की और रास्ता दिखाएं महाराज ने भक्त माल का उदाहरण देते हुए बताया कि करमती भाई ने राम नाम सिमरन कर सांसारिक मोहन बंधन को त्याग कर संत को धारण कर लिया आधी रात को गृहस्थ जीवन त्याग कर तन मन त्याग कर मरे हुए ऊंट पर बैठकर भक्ति में लीन हो गई ऊंट की दुर्गंध को ही सुगंध मानकर करमेंती बाई ने परमात्मा का उपहार मान लिया तीसरे दिवस वृंदावन यात्रियों के साथ लगकर वृंदावन चली गई ! हे नाथ मैं अनाथ हूं अवगुणी हूं भक्ति को नहीं मानती आपसे मैं भी आत्मा की पहचान कर अपनी शरण में ले ले भाव पर लगा दो महाराज ने फरमाया कि जीवन सफल जब यह होगा जब हम राम-राम का सिमरन सांस ही ऊंसांस में करेंगे ! इस प्रवचन में गोटन - नागौर से पधारे हुए दर्जन भर संतों का सानिध्य मिला साथ में कोटडी के आसपास के क्षेत्र से पधारे हुए सैकड़ो भक्तों ने इस प्रवचन का लाभ लिया!