भादू में श्रीमद्भागवत कथा का समापन, पचास साल बाद हुआ समुद्र पूजन, उमड़ा जनसैलाब
भादू (भेरूलाल गर्ग) मांडल। धर्म नगरी भादू में आयोजित श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह के समापन अवसर पर आध्यात्मिक वातावरण में पचास वर्षों बाद पारंपरिक समुद्र पूजन की रस्म का आयोजन किया गया। इस विशेष आयोजन में क्षेत्र की मातृ शक्ति सहित सैकड़ों ग्रामीणों ने सहभागिता निभाई।
समापन दिवस पर तालाब पूजन और समुद्र मंथन की रस्म का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और ग्रामीण शामिल हुए। धर्म सरोवर में लगभग पचास सालों बाद इस परंपरा का पालन कर धर्म नगरी की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित किया गया।
कलश यात्रा में पारंपरिक वेशभूषा में सजी महिलाएं सिर पर कलश लिए ढोल और बैंड-बाजों की धुन पर नाचती-गाती सरोवर की परिक्रमा करती नजर आईं। मंगरी वाले भेरुजी मंदिर परिसर में सामूहिक महाप्रसादी का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने भाग लेकर पुण्य लाभ प्राप्त किया।
समुद्र पूजन के दौरान भाई-बहनों ने मिलकर तालाब में मटके डालकर 'समुद्र हिलोरने' की रस्म निभाई। यह रस्म समुद्र मंथन की परंपरा से जुड़ी मानी जाती है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए उपवास रखती हैं और तालाब की हिलोरों में श्रद्धा भाव से पूजा करती हैं।
पूजन एवं कथा का संचालन आचार्य आनंद कृष्ण शास्त्री ने किया। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है। उन्होंने समुद्र पूजन की महत्ता बताते हुए कहा कि यह पूजा समुद्र मंथन की उस पौराणिक कथा से जुड़ी है, जिसमें सृष्टि की रक्षा हेतु भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था।
समुद्र को जल के देवता और प्रकृति के प्रतीक स्वरूप पूजा जाता है। हिंदू धर्म में जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी को देवतुल्य मानकर उनकी आराधना की जाती है। समुद्र पूजन के इस आयोजन ने न केवल श्रद्धालुओं को अध्यात्म से जोड़ा बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया।
गांव के इस अनूठे धार्मिक आयोजन में श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक था। हजारों की संख्या में लोग भाग लेकर अपनी संस्कृति और परंपरा के प्रति आस्था प्रकट करते नजर आए।
