अवैध अभ्रक खनन की अंधेरी चमक, पुर के अधरशिला में सिस्टम को चुनौती देता काला कारोबार
भीलवाड़ा। वस्त्रनगरी के नाम से मशहूर भीलवाड़ा कभी अभ्रक की चमक से दुनिया भर में पहचान रखता था, लेकिन आज यही चमक अवैध खनन के काले कारोबार की प्रतीक बनती जा रही है। राज्य सरकार द्वारा अवैध खनन के खिलाफ प्रदेशव्यापी अभियान चलाने के दावों के बीच भीलवाड़ा के पुर क्षेत्र स्थित अधरशिला की जमीनी हकीकत इन दावों पर सवाल खड़े करती है। यहां सरकारी भूमि पर खुलेआम जेसीबी मशीनों से खुदाई की जा रही है और रात के अंधेरे में खजाना लूटा जा रहा है।
हैरानी की बात यह है कि जिस जमीन पर यह अवैध खनन हो रहा है, उस पर एक नहीं बल्कि तीन अलग-अलग दावे हैं। यह भूमि नगर विकास न्यास, अधरशिला क्षेत्र और चारागाह भूमि के अंतर्गत बताई जा रही है। इसके बावजूद माफिया पूरी बेखौफी के साथ खुदाई करवा रहे हैं। जैसे ही रात होती है, आसपास की बस्तियों से महिलाएं और बच्चे यहां पहुंच जाते हैं और जान जोखिम में डालकर मलबे से अभ्रक चुनने लगते हैं। पूरे क्षेत्र में अभ्रक का कचरा बिखरा पड़ा है, जिसे गरीब मजदूर बीनकर जमा करते हैं।
यह पूरा खेल बेहद सुनियोजित तरीके से चल रहा है। माफिया इन मजबूर लोगों को केवल साधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। मजदूरों से अभ्रक महज 2 से 5 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदा जाता है। इसके बाद प्रोसेसिंग और ग्रेडिंग कर यही माइका देश-विदेश के बाजारों में ऊंचे दामों पर बेची जाती है। रातभर ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के जरिए माल को अयंत्र और अन्य ठिकानों तक पहुंचाया जाता है।
इस अवैध कारोबार का सबसे भयावह पहलू यह है कि इसमें 16 साल से कम उम्र के बच्चों को भी शामिल किया जा रहा है। कई परिवार पूरी तरह इसी काम पर निर्भर हैं। माफियाओं ने इन परिवारों को अपनी ढाल बना रखा है, ताकि किसी कार्रवाई की स्थिति में इन्हें आगे कर दिया जाए और खुद बचा जा सके।
स्थानीय लोगों का कहना है कि पुर क्षेत्र के कुछ प्रभावशाली लोग लंबे समय से इस अवैध कारोबार को चला रहे हैं। अभ्रक के स्क्रैप की अंतरराष्ट्रीय मांग अभी भी बनी हुई है, जिसके चलते माल को छांटकर विदेशों में निर्यात किया जा रहा है। सरकार को जहां इस कारोबार से कोई राजस्व नहीं मिल रहा, वहीं माफिया हर महीने लाखों की कमाई कर रहे हैं।
एक ओर प्रदेश में अवैध खनन और परिवहन को लेकर जीरो टॉलरेंस की बात की जा रही है, दूसरी ओर अधरशिला तालाब के पास खुलेआम जेसीबी से खुदाई होना प्रशासनिक भूमिका पर सवाल खड़े करता है। वैध खदानें अब गिनी-चुनी रह गई हैं, लेकिन अवैध अभ्रक का बाजार लगातार फल-फूल रहा है।
