तिब्बती समाज ने मानव अधिकार दिवस पर किया शांति पाठ, दलाई लामा की नीतियों का किया स्मरण

Update: 2025-12-10 10:30 GMT

भीलवाड़ा । हिमालय पर्वत में बसे तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद बड़ी संख्या में तिब्बती नागरिक भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। तिब्बत के 14वें धर्मगुरु दलाई लामा भी वर्षों से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निवास कर रहे हैं। तिब्बती समाज के तेनजिंग मियांक ने बताया कि तिब्बती लोग सदैव शांति के मार्ग पर चलते आए हैं, इसी कारण 10 दिसंबर 1989 को दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। यही दिन विश्व मानव अधिकार दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

इस अवसर पर तिब्बती समाज ने सामूहिक रूप से प्रातःकाल शांति पाठ और बौद्ध धार्मिक परंपराओं के अनुसार पूजा-अर्चना की। कार्यक्रम में भारत तिब्बत सहयोग मंच राजस्थान प्रभारी एवं पार्षद मधु शर्मा, विश्व हिंदू परिषद के बद्रीलाल सोमानी, रामेश्वर ईनाणी, सत्यनारायण श्रोत्रिय सहित कई गणमान्य उपस्थित रहे।

समाज प्रतिनिधियों ने दलाई लामा की चार प्रमुख शांति नीतियों—मानवीय मूल्यों को बढ़ावा, धार्मिक सौहार्द, तिब्बती भाषा-परंपरा का संरक्षण तथा नालंदा परंपरा के पुनरुद्धार—का उल्लेख किया। तिब्बती समुदाय ने परंपरागत दुपट्टा पहनाकर और गर्म पेय पिलाकर अतिथियों का स्वागत किया। ज्ञात रहे कि तिब्बती समाज हर वर्ष शीतकाल में भोपाल क्लब में तिब्बती बाजार लगाकर अपने वार्षिक आजीविका के लिए व्यापार करता है। इस वर्ष समुदाय दलाई लामा के 90वें वर्ष पर ‘करुणा वर्ष’ मना रहा है।

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