किसानों की मांगों पर उपराष्ट्रपति धनखड़ की दहाड़, क्या सरकार इसलिए जानबूझकर देख रही आईना
2020 में शुरु हुआ 'किसान आंदोलन' लगभग 378 दिन के बाद खत्म हुआ था। उस वक्त सरकार ने भरोसा दिलाया था कि किसानों की मांगों को पूरा किया जाएगा। इसके लिए एक कमेटी भी गठित की गई। जब कोई बात नहीं बनी तो इस वर्ष के प्रारंभ में किसान आंदोलन 2.0 प्रारंभ हो गया। किसानों की योजना, 6 दिसंबर को दिल्ली कूच करने की है, हालांकि अभी तक उन्हें मंजूरी नहीं मिली है। इस बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक ऐसा बयान दे दिया, जिससे सत्ता पक्ष और विपक्ष में खलबली मच गई। संवैधानिक पद पर बैठे धनखड़ ने जो कुछ कहा, उसे केंद्र सरकार के लिए 'आईना दिखाना' बताया जा रहा है। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने धनखड़ की दहाड़ को एक रणनीति की हिस्सा करार दिया है। उन्होंने यह आशंका जताई है कि केंद्र सरकार ने किसानों को लेकर अपनी इमेज साफ करने के लिए कहीं जानबूझ कर तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के हाथों आईना नहीं देख रही।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एवं किसान समुदाय से आने वाले सत्यपाल मलिक का साथ मिल गया है। धनखड़ के बयान पर पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने उन्हें बधाई दी है। मलिक ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया है, जिसमें वह कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल पूछते हुए नजर आ रहे हैं। पूर्व राज्यपाल ने लिखा, किसान की आवाज बुलंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद जगदीप धनखड़। किसान पुत्र ही किसान की पीड़ा समझ सकता है। आप इस स्थिति में हैं कि प्रधानमंत्री से बात करके आप किसानों की समस्याओं का समाधान करवाएंगे। किसान की आवाज बुलंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। इससे पहले भी मलिक, किसानों के मुद्दे पर मुखर रहे हैं। उन्होंने राज्यपाल के पद पर होते हुए किसानों की मांगों का समर्थन किया था। किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के बाद मलिक, सरकार के निशाने पर आ गए थे। सरकार ने उनकी सुरक्षा वापस ले ली थी। मलिक का कहना था, भाजपा सरकार किसानों से बातचीत कर उनकी मांगों का समाधान निकाले। प्रजातंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है। केंद्र सरकार ने किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की बात कही थी, लेकिन आज भी किसानों को एमएसपी नहीं मिल रही। सरकार ने किसानों के साथ विश्वासघात किया है।
बता दें कि साल 2020-21 में हुए किसान आंदोलन से केंद्र सरकार हिल गई थी। दिल्ली के बॉर्डर पर 378 दिनों तक चले आंदोलन में 700 से ज्यादा किसान मारे गए थे। केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और किसानों की मांग को पूरा करने के आश्वासन के बाद आंदोलन खत्म हो गया था। किसानों की सबसे बड़ी मांग थी कि एमएसपी व्यवस्था को कानूनी ढांचा प्रदान किया जाए। जब यह मांग पूरी नहीं हुई तो किसानों ने आंदोलन 2.0 प्रारंभ कर दिया। इस बार संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) ने आंदोलन शुरु किया था। 'दिल्ली चलो मार्च' का एलान कर दिया गया, लेकिन पुलिस ने किसानों को हरियाणा और पंजाब के शंभू बॉर्डर पर रोक दिया। वहां पर जब पुलिस और किसानों के बीच झड़प हुई तो खनौरी बॉर्डर पर भी किसान आंदोलन शुरु कर दिया गया।
मंगलवार को उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आईसीएआर-सीआईआरसीओटी के शताब्दी समारोह में बोलते हुए कहा, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है। धनखड़ ने केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहा, हर पल आपके लिए महत्वपूर्ण है। कृपया मुझे बताइए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था। वह वादा क्यों नहीं निभाया गया। हम क्या कर रहे हैं वादा पूरा करने के लिए। पिछले साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है। समय गुजरता जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं। उपराष्ट्रपति यहीं पर नहीं रूके, उन्होंने कहा,
हम किसान को उसका सही हक भी नहीं दे रहे हैं। किसान आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना एक बड़ी गलतफहमी है। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते, कि किसान अपने आप थक जाएगा। किसान आज भी अपनी उपज की उचित कीमत के लिए तरस रहा है।
बतौर धनखड़, क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा रेखा बना सकते हैं। यदि कोई राष्ट्र किसान की सहनशीलता को परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह बहुत संकीर्ण आकलन है कि किसान आंदोलन का मतलब केवल वे लोग हैं जो सड़कों पर हैं। किसान का बेटा आज अधिकारी है, किसान का बेटा सरकारी कर्मचारी है। पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने क्यों कहा था, जय जवान, जय किसान।
कृषि क्षेत्र के मुद्दों का समाधान शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। किसानों की पीड़ा और आंदोलन देश की समग्र भलाई के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। उपराष्ट्रपति बोले, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर हम किसान को यह कीमत देंगे तो इसके नकारात्मक परिणाम होंगे। जो भी कीमत हम किसान को देंगे, देश को उसका पांच गुना फायदा होगा।
एसकेएम के वरिष्ठ सदस्य और ऑल इण्डिया किसान खेत मजदूर संगठन (एआईकेकेएमएस) के अध्यक्ष सत्यवान कहते हैं, उपराष्ट्रपति के बयान के कई मायने निकल रहे हैं। इस बयान की कड़ियां कहीं न कहीं से तो जुड़ रही हैं। खनौरी बार्डर पर पंजाब के किसान नेता एवं भाकियू सिद्धूरपुर के प्रांतीय प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल आमरण अनशन कर रहे हैं। वे दिल्ली कूच की तैयारी में हैं। जगजीत सिंह, जिस समूह के साथ हैं, उसी से मध्यप्रदेश के किसान नेता शिव कुमार काका भी हैं। 'कक्का' अब एसकेएम के साथ नहीं हैं। उन्होंने अपना राष्ट्रीय किसान महासंघ बना लिया है। इसके अलावा उन्होंने एसकेएम 'नान पोलिटिक्ल' किसान संगठन भी बनाया है। कुछ राज्यों में इनके सहयोगी संगठन हैं। ऐसा सुनने में आया है कि किसी वक्त में शिव कुमार कक्का, आरएसएस के बहुत करीब रहे हैं। पूर्व सीएम शिवराज चौहान के साथ विधानसभा में सीट बंटवारे को लेकर उनके तल्लखी वाले संबंध, लोग भूले नहीं हैं। कक्का, 2022 में एसकेएम से अलग हो गए थे। सरकार के साथ उनकी नजदीकियां रही हैं।
एसकेएम के एक अन्य किसान नेता बताते हैं, शंभू बॉर्डर पर बैठे किसानों से बातचीत के लिए केंद्रीय मंत्री, तुरंत और कई बार चंडीगढ़ पहुंच गए। कक्का से बात होती है। एसकेएम के नेताओं से केंद्रीय मंत्रियों ने बात नहीं की। अब यह संभव है कि केंद्र सरकार ने उपराष्ट्रपति से सख्त लहजे में बयान दिलाकर किसानों को दोबारा से गुमराह करने की कोई रणनीति बनाई हो।
सत्यवान कहते हैं, सरकार पीछे हट रही है, ऐसा नहीं लगता। ये आंदोलन को कमजोर करने का पैंतरा हो सकता है। राष्ट्रपति ने ऐसा बयान क्यों नहीं दिया। उपराष्ट्रपति को ही आगे क्यों किया गया। क्या वे किसान परिवार से आते हैं, इसलिए। यह सब भाजपा का प्लान है। उसे किसान आंदोलन को खत्म कराना है। सरकार का प्रयास है कि किसान बिखर जाएं। दूसरा, भाजपा किसानों के पक्ष में कोई छोटी मोटी घोषणा कर अपनी किसान विरोधी इमेज को साफ कर सकती है। संभव है कि किसान आंदोलन पर राज्यसभा में भी हंगामा हो, इससे पहले उपराष्ट्रपति ने दांव चल दिया हो।
हालांकि जो भी कुछ हुआ है, उसमें सरकार की सहमति के बिना कुछ नहीं हुआ है। इससे पहले कि विपक्ष मुद्दा बनाता, उपराष्ट्रपति स्वयं ही मैदान में कूद पड़े। दलित और ओबीसी समुदाय से राष्ट्रपति बनने के बाद संभव है कि धनखड़ को किसान एवं जाट समुदाय से होने का फायदा मिल जाए। भाजपा उन्हें राष्ट्रपति बना दे।
जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति 'एआईकेएससीसी' के वरिष्ठ सदस्य रहे अविक साहा कहते हैं, उपराष्ट्रपति का बयान, मन बहलाने का एक तरीका हो सकता है। सरकार जानबूझकर उपराष्ट्रपति धनखड़ को आगे कर रही है। जिस सरकार में पीएमओ से पूछे बिना कोई काम नहीं होता, वहां पर उपराष्ट्रपति किसान मुद्दे पर सरकार को आईना दिखा दे, ये संभव नहीं है। सरकार इस मुद्दे पर अपनी साख बचाने के लिए उपराष्ट्रपति का सहारा ले रही है। सदन और मीडिया में किसानों के मुद्दे पर अपनी छवि को खराब होने से बचाने के लिए सरकार यह सब कर रही है। किसान की बैलेंस सीट पर सरकार कोई बात नहीं करती। दूसरी तरफ, अब सरकार को कुछ समझ आ रहा है कि किसान के बिना उनकी स्थायी जीत संभव नहीं है। सरकार, एक आंदोलन को खत्म करेगी तो दूसरा प्रारंभ हो जाएगा। ऐसे में उपराष्ट्रपति का बयान, सरकारी रणनीति के हिस्से से ज्यादा कुछ नहीं है। सरकार, चाहती है कि हम अगर किसानों के लिए थोड़ी बहुत कुछ करें तो उसका क्रेडिट किसान नेता न लें, बल्कि वह भाजपा के खाते में दर्ज हो।