निजी अस्पतालों में भ्रष्टाचार का खेल, आरजीएचएस योजना ध्वस्त. छीनी जा सकती हैं सरकारी कर्मचारियों की कई सुविधाएं!

Update: 2025-08-23 07:00 GMT


भीलवाड़ा हलचल ,राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस), आरजीएचएस में अब सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स के उपचार में में ब्रांडेड दवाओं की व्यवस्था समाप्त करने के साथ ही सरकार योजना का मॉडल बदलने पर गंभीरता से विचार कर रही है।  भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के दलदल में फंस चुकी है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि सरकार अब इस योजना को बंद कर मां चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में समायोजित करने या फिर इसमें बड़े बदलाव करने पर विचार कर रही है। क्लेम भुगतान में अनियमितताओं और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद हालात बदलते जा रहे हे , निजी अस्पतालों ने 25 तारीख से पहले ही इलाज बंद करने की चेतावनी दी हुई हे .

भ्रष्टाचार का नया अड्डा बनी योजना

आरजीएचएस का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को राहत देना था, लेकिन भ्रष्टाचार ने इसे बोझ बना दिया। ब्रांडेड दवाओं की अनिवार्यता ने दवा कंपनियों और अस्पतालों को मलाई खाने का मौका दिया। फर्जी बिल और बेवजह के टेस्ट करवाकर लाखों के क्लेम दाखिल किए गए। नतीजा यह हुआ कि योजना का खजाना खाली होता चला गया और सरकारी कर्मचारियों की सुविधा खतरे में पड़ गई।योजना की सबसे बड़ी खामी ब्रांडेड दवाओं और फर्जी क्लेम का खेल माना जा रहा है। निजी अस्पतालों की मिलीभगत से करोड़ों के दावों में धांधली हुई। करीब चार लाख क्लेम राज्य सरकार के पास पेंडिंग हैं, जिन पर 140 करोड़ रुपये से अधिक की राशि अटकी हुई है। अस्पतालों का कहना है कि बकाया राशि के बिना इलाज संभव नहीं है। इसी कारण राजस्थान एलायंस ऑफ ऑल हॉस्पिटल्स एसोसिएशंस ने 25 अगस्त से योजना में कैशलेस इलाज बंद करने की चेतावनी दी है।

सरकार की कवायद

दो महीने पहले ही इस योजना का संचालन वित्त विभाग से हटाकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को सौंपा गया। अब इसकी मॉनिटरिंग मां योजना की तर्ज पर जिलों के सीएमएचओ को दी गई है। सूत्रों की मानें तो सरकार या तो इस योजना को पूरी तरह मां योजना में समायोजित करेगी या फिर ब्रांडेड दवाओं की व्यवस्था खत्म कर केवल जेनरिक दवाओं से इलाज की सुविधा देगी।

मां चिरंजीवी योजना का विकल्प

मां चिरंजीवी योजना पहले से ही राज्य की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है। इसमें 1.34 करोड़ परिवार पंजीकृत हैं और 25 लाख रुपये सालाना तक का कैशलेस इलाज मिलता है। सिर्फ 850 रुपये प्रीमियम पर 1800 से ज्यादा अस्पतालों में 2047 पैकेज के इलाज की सुविधा दी जा रही है।

कर्मचारियों पर गहराए संकट

निजी अस्पतालों की मनमानी और सरकारी तंत्र की लापरवाही का खामियाजा अब सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स को भुगतना पड़ सकता है। कैशलेस इलाज बंद हुआ तो उन्हें जेब से मोटी रकम खर्च करनी पड़ेगी। सवाल यह है कि सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएगी या कर्मचारियों की सुविधा छीनकर बोझ उन्हीं पर डाल देगी?

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