मोबाइल बन रहा इंसानी दिमाग का दुश्मन: मेडिकल रिपोर्ट्स में चौंकाने वाला खुलासा

Update: 2025-07-23 05:20 GMT


नई दिल्ली।

तेजी से बढ़ती डिजिटल निर्भरता के इस दौर में मोबाइल फोन अब सिर्फ एक तकनीकी उपकरण नहीं रह गया है, बल्कि यह धीरे-धीरे इंसानी दिमाग के लिए खतरा बनता जा रहा है। हाल ही में सामने आईं विभिन्न मेडिकल रिपोर्ट्स और न्यूरोलॉजिकल स्टडीज से पता चला है कि अत्यधिक मोबाइल उपयोग न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, बल्कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर असर डाल रहा है।

AIIMS, NIMHANS और ICMR जैसे प्रमुख संस्थानों द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया है कि मोबाइल की लत (Nomophobia), स्क्रीन टाइम का अत्यधिक बढ़ना और सोशल मीडिया पर अत्यधिक निर्भरता के कारण युवाओं और किशोरों में डिप्रेशन, एंग्जायटी, नींद की कमी और एकाग्रता में गिरावट जैसे लक्षण तेजी से बढ़ रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, मोबाइल से निकलने वाली ब्लू लाइट न केवल नींद के लिए ज़िम्मेदार हार्मोन मेलाटोनिन के उत्पादन को प्रभावित करती है, बल्कि यह मस्तिष्क की नेचुरल बायोलॉजिकल क्लॉक को भी बिगाड़ देती है। इससे नींद का चक्र अनियमित हो जाता है और मानसिक थकावट बनी रहती है।

AIIMS की एक रिपोर्ट के अनुसार, औसतन एक भारतीय युवा दिनभर में 6 से 9 घंटे तक मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताता है। खासकर 12 से 25 वर्ष के आयु वर्ग में यह आंकड़ा और भी चिंताजनक है। लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों में तनाव, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन और यहां तक कि स्मरण शक्ति में कमी जैसे प्रभाव भी देखे जा रहे हैं।

मनोचिकित्सकों का कहना है कि लगातार मोबाइल का उपयोग मस्तिष्क में डोपामिन रिलीज को प्रभावित करता है। इससे व्यक्ति में एक प्रकार की ‘डिजिटल डोपामिन लत’ विकसित हो जाती है, जिससे वह बार-बार फोन देखने को मजबूर होता है, भले ही कोई सूचना न हो।




 


इसके अलावा, रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि बच्चों में बोलचाल की क्षमता में गिरावट, सामाजिक व्यवहार में बदलाव और रचनात्मकता में कमी जैसे लक्षण सामने आने लगे हैं। छोटे बच्चों में मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग ऑटिज्म-समान व्यवहार को भी जन्म दे रहा है।

समाधान के तौर पर विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि स्क्रीन टाइम को सीमित किया जाए, “डिजिटल डिटॉक्स” अपनाया जाए और परिवार में मोबाइल-मुक्त समय सुनिश्चित किया जाए। बच्चों के लिए 2 घंटे और बड़ों के लिए अधिकतम 3-4 घंटे का स्क्रीन टाइम आदर्श माना गया है।

निष्कर्षतः, मोबाइल फोन जहां एक ओर जीवन का अहम हिस्सा बन गया है, वहीं उसका अत्यधिक और असंतुलित उपयोग इंसानी मस्तिष्क का दुश्मन बनता जा रहा है। यह समय है जब व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर डिजिटल आदतों पर नियंत्रण और संतुलन की आवश्यकता है, ताकि हम मानसिक रूप से स्वस्थ जीवन जी सकें।

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