श्रीमद् भागवत कथा में नन्दोत्सव से कल्याण नगरी व कथा मण्डप निरूपित हुआ गोकुल

By :  vijay
Update: 2025-01-30 13:10 GMT

निंबाहेड़ा  |मेवाड़ के प्रसिद्ध श्री शेषावतार कल्लाजी वेदपीठ एवं शोध संस्थान द्वारा वेद एवं गोसेवार्थ आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भावगत कथा महोत्सव के चतुर्थ दिवस जब व्यासपीठ से युवा संत दिग्विजयराम द्वारा नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैयालाल की उद्घोष किया तो न केवल कथा मण्डप वरण कल्याण नगरी भी गोकुल निरूपित होते हुए समूचा वातावरण कृष्ण भक्ति से सराबोर हो गया। युवा संत द्वारा लाला जन्म की बधाई के साथ जब नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैयालाल की का उद्घोष किया तो नन्दोत्सव से सर्वत्र आनंद की वर्षा होने लगी। इसी दौरान वासुदेव द्वारा टोकरे में बालकृष्ण की झांकी के प्रवेश से कथा मण्डप ऐसा लग रहा था मानो मथुरा से वासुदेव यमुना पार करने के लिए जा रहे हो और इसी दौरान यमुना मैया भगवान कृष्ण के चरण छूकर स्वयं को धन्य करते हुए आनंदोत्सव मना रही हो, तब हजारों की संख्या में श्रोता अपने ही अंदाज में भगवान कृष्ण का सुस्वागत उद्घोष के साथ स्वागत करते हुए नजर आए। इससे पूर्व संत दिग्विजयराम ने कृष्णा अवतार की कथा का शुभारंभ करते हुए बताया कि कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी का विवाह वासुदेव के साथ कर रथ में विदा कर रहे थे तो यकायक ही आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा कि देवकी की आठवीं संतान तेरा काल होगा। इस पर कंस देवकी को मारने को उद्यत हुए तो वासुदेव के आग्रह पर उन्हें कारागार में डाल दिया। जहां छह संतानों के वध के बाद सातवीं संतान के रूप में गर्भ परिवर्तन होकर रोहिणी के गर्भ से वासुदेव का जन्म हुआ तथा आठवीं संतान के रूप में भगवान कृष्ण भाद्रपद्र कृष्णा अष्टमी की मध्य रात्रि 12 बजे अवतरित हुए, जिन्हें वासुदेव टोकरे में विराजित कर गोकुल के रवाना हुए। इससे पूर्व संत दिग्विजयराम ने राम जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में इक्षवाकु वंश में राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मां गंगा के अवतरण से उद्धार करने, रघुवंश में राजा दशरथ का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी तीन रानिया होते हुए भी संतान नहीं थी, लेकिन श्रवण कुमार के माता पिता का श्राप उनके लिए वरदान बना और पुत्रेष्ठी यज्ञ करने पर चैत्र शुक्ला नवमी को कौशल्या के लाला के रूप में राघवेन्द्र सरकार का अवतरण हुआ। वहीं सुमित्रा और कैकेई के लक्ष्मण, भरत और शुत्रघ्न का जन्म हुआ। इसी दौरान राम लक्ष्मण की झांकी ने रामावतार का दर्शन कराकर समुचे वातावरण को राममय बना दिया।

उन्होंने कहा कि चक्रवर्ती सम्राट अमरिश ने हमेशा स्वयं भगवत भक्ति का मार्ग अपना कर प्रत्येक प्राणी को भक्ति मार्ग का अनुसरण करने का मार्ग बताया। उन्होंने कहा कि कल्याण नगरी में कल्लाजी वेदपीठ द्वारा तैयार किए जा रहे बटुक ज्ञान और भक्ति की रक्षा कर इस नगर को राष्ट्रीय मानचित्र पर नई पहचान दे रहे हैं। उन्होंने समुन्द्र मंथन का उल्लेख करते हुए कहा कि देव और दानवों में परस्पर बैर के बाद समझौता होने पर मंदराचल पर्वत को मथनी बनाकर वासु की नाक द्वारा समुद्र मंथन करने के लिए नारायण ने कच्छप स्वरूप धारण किया। समुन्द्र मंथन से चौदह रत्न निकले, जिनमें से सर्व प्रथम हलाहल निकलने पर देवताओं के आग्रह पर भगवान आशुतोष ने उसे कंठ में धारण करने के साथ ही चन्द्रमा को मस्तक पर धारण किया तथा देव धनवन्तरि द्वारा अमृत कलश लेकर प्रकट होने पर देवता और दानव दोनों अमर होने के लिए अमृतपान करना चाहते थे तब नारायण ने मोहिनी स्वरूप धारण कर देवताओं को तब वे अमृतपान करा रहे थे तब सूर्य और चन्द्र के बीच दानव राहू ने भी अमृतपान कर लिया। जिसकी जानकारी मिलने पर नारायण ने सुदर्शन से उसका वध तो कर दिया, लेकिन गले में अमृत होने से वह वंचित हो गया और सूर्य और चन्द्रमा को समय समय पर ग्रहण के रूप में लगने लगा जो आज भी विध्यमान हैं। युवा संत ने राजा बलि के संदर्भ में कहा कि शुक्राचार्य के आशीर्वाद से महाराज बलि प्रकट हुए, वहीं वामन स्वरूप में कश्यप मुनि की पत्नी अदिति के गर्भ से वामन भगवान का अवतार हुआ, जो राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगने पहुंचे, इस दौरान शुक्राचार्य को नारायण के वामन स्वरूप की जानकारी मिलने पर बलि को संकल्प लेने के लिए रोकने के लिए कमंडल में जा बैठे, जिनका एक नैत्र नारायण के तिनके की नौक से विदिर्ण हो गया तथापि राजा बलि ने संकल्प लेकर वामन स्वरूप को तीन पग भूमि देने की हा की तब वामन स्वरूप ने विराट स्वरूप धारण कर दो पग में समूचा ब्रह्माण्ड नाप लिया और तीसरा चरण बलि के मस्तक पर रख दिया, तब बलि के आग्रह पर नीत दर्शन के लिए नारायण सूतललोक में चौकीदार बन गए, तब नारद ऋषि के सुझाव पर मां लक्ष्मी राजा बलि के पास पहुंच कर रक्षा बंधन बांधकर धान में नारायण को मांग लिया, तभी से रक्षा बंधन पर्व मनाया जाने लगा। इस दौरान राजा बलि और वामन स्वरूप की झांकी ने दर्शकों को आनंदित कर दिया। युवा संत ने महापुरूषों के संदर्भ में कहा कि कितने ही कष्ट आए, लेकिन भक्त शिरोमणि मीरा ने अपने गिरधर गोपाल की आराधना को सर्वोपरि मानकर उन्हीं की प्रतिमा में समा गई, जो हमें भक्ति की पराकाष्टा के साथ पूर्ण मनोभाव से भक्ति करने की प्रेरणा देती हैं। उन्होंने गजेन्द्र और ग्राह के संदर्भ में कहा कि गजराम की पुकार सुनकर स्वयं नारायण ने प्रकट होकर ग्राह का वध करने के बावजूद भी केवल नाम श्रवण से पहले ग्राह को मोक्ष देकर गजेन्द्र को मुक्ति प्रदान की। प्रारंभ में वेदपीठ के पदाधिकारियों ने व्यासपीठ का पूजन किया एवं कथा विराम पर हजारों श्रद्धालुओं ने मुख्य श्रोता ठाकुर श्री कल्लाजी एवं व्यासपीठ की महाआरती की। कथा महोत्सव के दौरान वेदपीठ पर विराजित ठाकुर श्री कल्लाजी सहित पंचदेवों की मनोहारी झांकी श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बनी हुई।

कथा के पंचम दिवस शुक्रवार को श्री कृष्ण की बाल लीला, कालिका मर्दन, गोवर्धन पूजा तथा इन्द्र का मान भंग जैसे प्रसंगों को संत दिग्विजयराम जी अपने मुखार्विंद से प्रकट कर भागवत का रसपान कराएंगे।

प्रेमानुरागेश पुस्तक का विमोचन

पंडित सूरजचन्द्र सत्यप्रेमी डांगी जी के पुत्र गिरधारी प्रकाश डांगी द्वारा अपने पिता द्वारा लिखी गई कई रचनाओं को समाहित कर तैयार की गई प्रेमानुरागेश पुस्तक का संत द्वय रमताराम जी एवं दिग्विजयराम जी ने विमोचन करते हुए कहा कि इस पुस्तक में जैन धर्मावलंबि पंडित सूरजचन्द्र ने राम भक्ति को सर्वोपरि मानते हुए रामानुरागी के रूप में रामचरित्र मानस के सात सौपानों को अपने ही अंदाज में प्रस्तुत किया। चार दशक पूर्व निधन के बावजूद उनके पुत्र गिरधारी प्रकाश डांगी ने अपने पिता की एक डायरी को आधार मानकर उसे पुस्तक स्वरूप में तैयार किया, जिसका संपादन जगदीप डांगी हर्षदर्शी, प्रकाशन जिनेन्द्र डांगी एवं सहयोगी रामप्रसाद मून्दड़ा ने स्तुत्य प्रयास कर संतों और विद्वानों के लिए एक प्रेरणास्पद शब्द पुंज प्रस्तुत किया हैं, जिसके प्रथम खंड में राम चरित्र मानस, द्वितीय खंड में स्वयं की रचनाएं, दर्शन की व्याख्या व स्वरचित पदों के साथ ही तृतीय खंड में मंगलस्तव देशकाल परिस्थितियों एवं ईश्वर को पद्य रूप में समर्पित किया हैं। ईश्वर आराधना, चिंतन, मनन की यह शब्द भेंट डांगी परिवार की अनुकरणीय कृति संतों और विद्वानों के लिए ज्ञानार्जन करेगी।

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