पानी की पाती से लेकर सबकी हर मनोकामना पूरी करती मां सगरा

Update: 2025-09-29 07:23 GMT

चित्तौडगढ़। जिले की आजोलिया का खे़ड़ा पंचायत के डेट गावं की उंची पहाडी पर विराजित मां सगरा आस पास के गांवों ही नही दूर दूर के श्रृद्धालुओं के आस्था की कंेद्र है। माता के इस मंदिर का इतिहास चित्तौड दूर्ग से भी पुराना कहा जाता है। लगभग 2 हजार वर्ष पुराने इस मंदिर के बारें में मान्यता है कि इसे सगरा बंजारा ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर बनवाया था, तबसे इसे सगरा माता के नाम से जाना जाने लगा। किंवदंती के अनुसार सगरा बंजारे द्वारा इस स्थल के निकट मार्ग से गुजरते हुए बालद यानि बैलो की जोड़ी गुम हो गयी थी। सगरा बंजारा ने माता जी से प्रार्थना की कि वह पुनः मिलने पर वह यहां मंदिर का निर्माण कराएगा। माता के चमत्कार से उसकी खोई हुई बैलो की जोडी मिल गयी और यहां मां सगरा का मंदिर बना दिया गया।

माता के भक्तों की हर मनोकामना होती है पूर्ण

यहां मौजूद हज़ारों वर्षो पुरानी कुई के बारें में किंवदंती है कि यहां एक व्यक्ति ने गहनों के लालच में एक बालिका को कुई में धकेल दिया था, लेकिन दूसरे दिन वह जीवित मिलीं जिसकी रक्षा स्वयं माताजी ने की, जो कि बहुत पुरानी घटना नहीं है। यहां आने वाले श्रृद्धालु अपनी अन्य मनोकामना के साथ साथ अपने खेत और घरों में बारवेल खुदवाने से पहले पानी की पाती मांगते है ताकि उस बोरवेल मं पानी अवश्य निकलें, जो कि हमेशा पूरी होती है।

आस पास ही नही दूर दराज के श्रृद्धालु भी है आस्थावान

मंदिर के पुजारी रामलाल के अनुसार यह भी कहा जाता है कि एक बार नाहरसिंह माता अपनी बड़ी बहन सगरा माता से मिलने आई। स्वागत के लिए सगरा माता अपनी जगह से उठी तो नाहरसिंह माता वहां बैठ गई। इसके बाद से सगरा माता खड़ी ही रहीं जिसके फलस्वरूप यहां दोनो बहने देवी स्वरूप विराजीत हैं। सगरा मांता के दर्शन के लिए आस पास के ही नहीं राजस्थान और गुजरात से भी श्रृद्धालु दर्शन करने और मनोकामना के लिए आते है। यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है। पहली बार वर्ष 2002 में यहां शारदीय नवरात्र में तीन दिवसीय मेला आयोजित किया गया था। तब से यह परंपरा जारी है। मंदिर की तलहटी में भजन संध्या, आर्केस्ट्रा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। मंदिर मंडल द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए लगातार विकास कार्य कराए जा रहे हैं। नवरात्रा में लाखों श्रृद्धालु यहां आते है, दशहरें के दिन यहां रावण दहन के साथ मेले का समापन होता है।

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