कथाओं से जीवन जीने की कला के साथ माता पिता एवं गुरूओं को सम्मान देना सीखे – संत दिग्विजयराम

By :  vijay
Update: 2025-01-29 12:15 GMT

निंबाहेड़ा  रामस्नेही सम्प्रदाय के युवा संत भागवताचार्य दिविग्जय राम जी ने कहा कि कलयुग में आयोजित कथाओं के माध्यम से जीवन जीने की कला सीखने के साथ ही माता पिता व गुरूओं को सम्मान देने की सीख ले। संत दिग्विजयराम श्री शेषावतार कल्लाजी वेदपीठ एवं शोध संस्थान की ओर से कृषि उपज मण्डी में प्रांगण में अयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के तृतीय दिवस व्यासपीठ से कथा अमृतपान करा रहे थे। उन्होंने कहा कि माता पिता के उपकारों को कभी नहीं भूलना चाहिए और वृद्धावस्था उनकी बेहतर सार संभाल करनी चाहिए ताकि वृद्धाश्रम में जाने की नौबत न आए। इसी दौरान उन्होंने माँ बाप को मत भूलना भजन की प्रस्तुति दी तो सैकड़ों श्रोताओं के नयन सजल हो गए। उन्होंने ध्रुव चरित्र का उल्लेख करते हुए कहा कि भक्त ध्रुव को महर्षि नारद का आशीर्वाद मिलने से न केवल उन्हें परमतत्व की प्राप्ति हुई वरन द्वादश अक्षर के मंत्र जाप से स्वयं नारायण ने प्रकट होकर उन्हें अपनी गोद में बैठाने का सौभाग्य दिया। बचपन में ध्रुव के पिता राजा उत्तानपात ने ध्रुव का हर बार निरादर कर हर बार उन्हें परेशान किया हो,लेकिन अंत समय में भी उत्तानपात को भी अपने पुत्र ध्रुव के प्रति समर्पण करना पड़ा। संत ने बताया कि ध्रुव का एक विवाह प्रजापति की कन्या से तथा दूसरा विवाह ईला से हुआ। ध्रुव ने 36 हजार वर्ष तक राज करते हुए भक्तों और संतों को परेशान करने वालों के नष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि भक्त ध्रुव ने बद्री विशाल में तपस्या की। जहां माँ गंगा भी मौन होकर प्रवाहित होने लगी, जो भक्ति का प्रभाव बताया गया हैं। ध्रुव जी जब ध्रुवलोक को जाने लगे तो यमराज ने अपने मस्तक पर अपने चरण रखवाकर उन्हें ध्रुवलोक में प्रस्तान करने का आग्रह किया। इस प्रसंग से यह सीख मिलती हैं कि भक्त ध्रुव ने अपनी माँ से भक्ति, संस्कार और ज्ञान प्राप्त कर अटल स्थान प्राप्त किया, जो आज भी ध्रुव तारे के रूप में विध्यमान हैं। उन्होंने कल्याण नगरी में वैदिक शिक्षा के संरक्षण की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहा के बटुक ज्ञानार्जन के साथ माता पिता और गुरूओं का सम्मान सीख कर आधुनिक ध्रुव के रूप में अपनी पहचान बनाते हुए इस नगर को विशिष्ट ख्याति प्रदान करेंगे। उन्होंने महाराज अंग के पुत्र वेन की दुष्ट प्रवृत्ति और अत्याचार का उल्लेख करे हुए कहा कि भारत में मातृ पितृ देवों के संस्कार को आज भी जीवंत करने की आवश्यकता हैं। उन्होंने राजा प्रथु के जन्म के प्रसंग में कहा कि प्रथु ने धरती को धन्यधान से परिपूर्ण करने के साथ ही 99 अश्वमेघ यज्ञ के तब यज्ञवेदी से यज्ञ भगवान ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा तो प्रथु ने भगवत भक्ति के श्रवण के लिए 10 हजार कर्ण प्रदान करने का आग्रह किया। उन्होंने नारदजी द्वारा पुरंजन उपाख्यान कराने तथा पुरंजनी को ज्ञान देने से मुक्ति मिलने का चर्चा करते हुए कहा कि कथा श्रवण से आत्माएं नहीं बुद्धि भी श्रेष्ट हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि राजा प्रियवृत ने सात दीपों और सात समुद्रों का निर्माण किया। उन्होंने ऋषभ अवतार में जयंति से विवाह उपरांत 100 पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र भरत के संदर्भ में कहा कि भारत में 3 भरत हुए,पर उन्हीं के नाम से हमारे देश का नाम भारत हुआ। उन्होंने जड़ भरत की कथा के माध्यम से माँ भवानी के प्राकट्य के साथ आजामिल उपाख्यान का विस्तार से वर्णन किया।

इस दौरान उन्होंने दुष्ट प्रवृत्ति के हिरण कश्यप और उनके पुत्र भक्त प्रहलाद के संदर्भ का विस्तार करते हुए कहा कि हिरण कश्यप ने अपने पुत्र को भक्ति मार्ग से विलग करने के अनेक प्रयास किए, तब भी प्रहलाद भगवत भक्ति में लीन रहा, तब हिरण कश्यप ने उसे कहा कि तेरे भगवान कहा कहा हैं, तो उसने बताया कि वे सर्वत्र व्याप्त हैं। इसी दौरान कथा पांडाल में रखे एक खंभ पर हिरण कश्यप ने तलवार से प्रहार किया तो उसमेंसे भगवान नृसिंह यकायक प्रकट हो गए और उन्होंने हिरण कश्यप का वध कर भक्त प्रहलाद को अनुठी भक्ति का वरदान दिया। इसी प्रसंग के दौरान आयोजित जीवंत झांकी ने हजारों दर्शकों को मोहित कर दिया। तृतीय दिवस की कथा विश्राम पर भारत गौरव राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित होने वाले वैदिक विश्वविद्यालय के चेयरपर्सन कैलाशचन्द मून्दड़ा, हेल्प सोसायटी, ह्युमन राईट्स प्रोटेक्शन सेल, भारत विकास परिषद, प्रबुद्ध नागरिक संस्थान, पल्लवन संस्थान के पदाधिकारियों एवं ब्रह्माकुमारी की शिवली बहन सहित हजारों श्रद्धालुओं ने ठाकुर श्री कल्लाजी एवं व्यासपीठ की महाआरती की। गुरूवार को कथा के दौरान व्यासपीठ से वामन अवतार एवं श्री राम कृष्ण जन्मोत्सव का भव्य आयोजन होगा।

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