तीर्थ करने से नही तीर्थ में आने से मिलती है मुक्ति- मुनि युगप्रभ जी म.सा.
निम्बाहेड़ा।स्थानीय शांति नगर स्थित नवकार भवन में चातुर्मास के लिए विराजित जैन संत मुनि युगप्रभ जी म.सा. आदि ठाणा-2 के सानिध्य में रविवार को धर्मसभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि युगप्रय जी म.सा. ने कहा कि मानव जीवन में दो प्रकार से धर्म की साधना की जाती है, आगार धर्म (गृहस्थ में रहकर) व अणगार धर्म (सन्यास लेकर)। जो व्यक्ति इन मार्गों से धर्म की आराधना करता है, वह संसार से तिरने की दिशा में आगे बढ़ता है।
मुनिजी ने कहा कि आज मानव तीर्थयात्रा करने को तो तत्पर रहता है, लेकिन वास्तविक तीर्थ साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका के समीप आने को तैयार नहीं होता है। प्रभु महावीर ने चार प्रकार के तीर्थ बताएं हैं, इन्हीं तीर्थों के संपर्क में आकर ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
धन के उपयोग पर प्रकाश डालते हुए मुनिश्री ने कहा कि ब्याज में लगाया धन दुगुना होता है, व्यापार से चौगुना, खेती से सौ गुना होता है, लेकिन दान में दिया गया धन अन्नत गुणा फलदायक होता है। उन्होंने कहा कि सच्चा श्रावक वही होता है, जो अपने धन को सुपात्र रुपी खेत में वपन करता है, अर्थात योग्य स्थान पर दान करता है।
धर्मसभा के दौरान महामंगल स्त्रोत के जाप हुए, जिसमें प्रभावना का लाभ श्रीमती चंदा, नारायण कोठारी उदयपुर वालों ने लिया, वहीं दोपहर में बालक-बालिकाओं के लिए संस्कार शिविर का आयोजन किया गया, जिसके लाभार्थी राजेन्द्र लोढ़ा ब्यावर (अहमदाबाद) रहे। शिविर में बच्चों की उत्साहजनक भागीदारी रही। धर्मसभा में उदयपुर, जावद, मंगलवाड, डूंगला क्षेत्र सहित बड़ी संख्या में स्थानीय श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।