पिपलांत्री में पेड़ तो बचा लिए… पर पशुओं का क्या? नेताओं-अधिकारियों की लापरवाही से चरागाह पर कब्जे, मवेशियों पर संकट गहराया

By :  vijay
Update: 2025-08-08 18:56 GMT
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पिपलांत्री में पेड़ तो बचा लिए… पर पशुओं का क्या? नेताओं-अधिकारियों की लापरवाही से चरागाह पर कब्जे, मवेशियों पर संकट गहराया

राजसमंद। पर्यावरण संरक्षण और “पिपलांत्री मॉडल” के लिए देशभर में मिसाल बन चुका पिपलांत्री गांव आज एक और हकीकत से जूझ रहा है—यहां के मूक पशुओं के लिए पेट भरने की जगह तक नहीं बची। बढ़ती आबादी, लोगों का स्वार्थ और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी ने चारागाह भूमि को ही निगल लिया है। नतीजा यह कि मवेशी अब गांवों में खेतों को नुकसान पहुंचाने को मजबूर हैं।

गुरुवार को पिपलांत्री के पशु कड़ेचो का गुडा गांव में घुस गए और खेतों में फसल को नुकसान पहुंचाया। नाराज ग्रामीणों ने मवेशियों को गांव में बंद कर दिया और साफ कहा—“हमारी पंचायत में न तो चरागाह है, और जो थोड़ी-बहुत थी, वहां भी तारबंदी कर दी गई। नेताओं को बस भाषण देने की फुर्सत है, जमीन बचाने की नहीं।”

स्थानीय लोगों का आरोप है कि पंचायत और प्रशासन की नाक के नीचे चारागाह भूमि पर अवैध कब्जे हो रहे हैं। कभी मवेशियों के लिए खुला मैदान रहने वाली जगह अब दीवारों और खेतों में तब्दील हो चुकी है।

एक ओर पिपलांत्री दुनिया को प्रकृति प्रेम और हरियाली का संदेश देता है, तो दूसरी ओर अपने ही पशुओं को घास के लिए दर-दर भटकते देख रहा है। सवाल यह है कि जिन नेताओं और अधिकारियों के मुंह से “पर्यावरण बचाओ” के नारे थकते नहीं, वे मूक पशुओं के जीवन बचाने पर कब ध्यान देंगे? या फिर पिपलांत्री मॉडल अब सिर्फ पोस्टर और भाषण तक ही सीमित रह जाएगा?

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