टूटे हृदयों को जोड़ने का पर्व है संवत्सरिक महापर्व : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है। श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि आराधना भवन में पर्युषण महापर्व के तहत आचार्य संघ के सानिध्य में बुधवार को संवत्सरी महापर्व पर पर्युषण पर्व के अंतिम दिन बारसा सूत्र का वांचन हुआ। राजकुमार बोलिया परिवार के द्वारा आचार्य श्री को बारसा सूत्र अर्पण किया गया।
मंगलवार को आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने धर्मसभा को प्रवचन देते हुए कहा कि पर्वाधिराज पयुर्षण पर्व का संदेश यही है कि- वैर का विसर्जन करो और सभी जीवों के साथ मित्रता जोडो। तीर की तरह शब्द बाण भी एक बार छूट जाने के बाद उसे वापस नहीं पकडा जा सकता। कंकड के प्रहार से कांच के टुकडे हो जाते हैं। कटु शब्दों के प्रहार से हृदय के टुकड़े हो जाते हैं। हृदय टूट जाने के बाद उसे जोडना अत्यंत ही कठिन है। इसे जोड़ने का एक ही साधन है सच्चे भाव से क्षमापना । वैर का विसर्जन और मैत्री भाव का सर्जन कर जब सच्ची समापना की जाती है, तब वह क्षमापना दो टूटे हृदयों को भी जोड देती है। दो टूटे हृदयों को जोड़ने का पावन पर्व है सांवत्सरिक क्षमापना पर्व । मकान के बीच दीवार खड़ी करने के साथ ही मकान के दो विभाग हो जाते है। मकान की दीवार दो भाइयों के बीच बटवारा करा देती है। दिल की दिवार दो हृदयों को विभक्त कर देती है। पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का यही संदेश है कि दिल की दीवारों को तोड़ दें। मैत्री के झरने से दिल की दिल दीवार को साफ कर दे ।