तृष्णा का कोई छोर नही,तृष्णा आकाश के समान अनन्त है-जिनेन्द्रमुनि

Update: 2024-09-03 11:11 GMT

गोगुन्दा ! श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा के स्थानकभवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने प्रवचन के दौरान उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को सम्बोधित करतें हुए कहा कि तृष्णा का कोई छोर नही है। जैसे जैसे लोभ होता जाता है वैसे-वैसे लोभ बढता जाता है, तृष्णा आकाश के समान अनंत है, जीवन का अन्त निश्चित है। परंतु लोभ का नहीं।मुनि ने कहा लोभ के वशीभूत होकर मानव जीवन स्वाह कर देते है। त्रिलोक की संपति से भी मानव जन्म का एक एक पल अनमोल है। संपति देकर भी एक पल नहीं खरीदा जा सकता है । सद्कार्य करने पर जो बाधा डालता है, वह उसके पाप का उदय है। क्रोध तो प्रिती का विनाशक है। मान से विनय का माया से सरलता का, परंतु लोभ तो सभी सदगुणो का नाश कर सकता है। लोभ का भूत सवार होने पर मानव, दानव बन जाता है, जिस प्रकार कुत्ते के कीडे पड़ने पर अशांत बन भटकता है, उसी प्रकार लोभ के कीटाणुओं से शांति भंग हो जाती है व आत्मा की दुर्गति होती है।

लोभ रूपी पिशाच ने पारिवारीक खुन के रिस्तो में दूरियां बन गई है। प्रवीण मुनि ने कहा आज समाज मे रिश्ते में भी कडवाहट घोल दी है। धन की मुख्य भूमिका परिवार में पनप रही है। वह धन भी जीवन के लिए अभिशाप है। जो प्रेम सदभावना के पावन रिश्तों को नष्ट कर देता है। मानवता को भुल रहा है। अनिति का धन परिवार में अशांति ही पैदा करता है। तृष्णा के जाल से मुक्त नहीं हुए तो अतृप्त आत्मा बनकर उसके आसपास भटकती रहेगी।

रितेश मुनि ने कहा कि धन संपति का संयोग भागने दौड़ने से नहीं बनता । किंतु पुण्यपार्जन से होता है। पशु-पक्षी के पास एक जुन का भी संग्रह नहीं है। फिर भी चैन की नींद सोते है। इंसान के पास इतना होते हुए भी अशांत है। अशांति से कई रोग उत्पन्न होते है।जबतक संतोष नहीं आता तब तक स्थाई शांति असंभव है। धन से सुख की सामग्री खरीद सकते है। किंतु शांति नहीं। धन रोकने से कभी नहीं रूकता और मनौती से आता भी नहीं है। प्रभातमुनि ने कहा कि त्याग में जो सुख है, जो सच्चा आनंद है, वह अन्य किसी में नहीं, शुभ कर्मों से बढ़कर अपने लिए और कोई संपति नहीं ,ऐसा विचार जिसके मन में आता है। वहीं परम पिता परमेश्वर का सच्चा उपासक है। धन से बढकर धन को महत्त्व देकर धर्म की रक्षा में धन लगाना चाहिए ।अतः धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करना पड़े तो भी हर पल तैयार रहें। यही शिक्षा सभी धर्मो में समान रूप से दी है। संघ के अध्यक्ष हीरालाल मादरेचा उपाध्यक्ष अशोक कुमार मादरेचा ने उपस्थित मेहमानों का स्वागत किया।इस बीच सोहनलाल मांडोत वच्छराज घटावत कुन्दनमल चौरडीया पारस भोगर और हिमत भोगर उपस्थित रहे।

उमरणा स्थानकभवन में उपवास कर रहे श्रावक श्राविकाओं को संघ की तरफ से स्वागत किया।सुख समृद्धि के लिए जप शुरू किया गया है।

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