आखिर क्या हैं वसुंधरा राजे के बयान के मायने?: क्या भाजपा में उनके "वनवास" के खत्म होने का वक्त आ गया है? राजे का कद बढ़ेगा…या पद।
राजस्थान की सियासत में दो नाम दशकों से ध्रुवतारे की तरह चमकते रहे हैं—अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे। दोनों चाहे सत्ता में हों या विपक्ष में, इनके हर बयान से राजनीति की दिशा तय होती रही है। यही वजह है कि विरोधी भी इनके प्रभाव से इनकार नहीं कर पाते।
लेकिन अब वसुंधरा राजे के हालिया बयान ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। जोधपुर में मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा— “ईश्वर पर अटूट विश्वास से कोई भी कार्य पूरा किया जा सकता है, चाहे देर से ही क्यों न हो।” सवाल ये उठता है कि आखिर वो कौन सा “काम” है, जो अब पूरा होने जा रहा है?
"वनवास खत्म होता है…"
इससे पहले भी एक धार्मिक कार्यक्रम में राजे ने कहा था—“वनवास एक दिन खत्म हो ही जाता है।” क्या ये इशारा इस बात का है कि संगठन में उनकी वापसी की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है? या फिर भाजपा आलाकमान उन्हें कोई बड़ा पद देकर राज्य की राजनीति का समीकरण पलटने वाला है?
बढ़ती अटकलें
राजे का यह बयान ऐसे वक्त पर आया है जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर चर्चाएं गर्म हैं। सियासी गलियारों में सवाल गूंज रहा है—क्या राजे दिल्ली दरबार में ताकतवर पद की दावेदार हैं, या राजस्थान की राजनीति में फिर से उनका परचम लहराने वाला है?
"राजस्थान एक परिवार" बनाम अंदरूनी कलह
राजे ने सार्वजनिक मंच से कहा कि “राजस्थान एक परिवार है, सभी मजहब और जातियों के लोग प्रेमभाव से रहें।” लेकिन असलियत यह है कि भाजपा के भीतर गुटबाजी किसी से छिपी नहीं। ऐसे में राजे का यह “परिवार” वाला संदेश उनकी पार्टी को सीधा आईना दिखाने जैसा है।
अब बड़ा सवाल यही है कि—
👉 क्या राजे का “वनवास” वाकई खत्म होने वाला है?
👉 क्या भाजपा आलाकमान उन्हें नई जिम्मेदारी देकर राजस्थान की सियासत को फिर से उनके इर्द-गिर्द घुमाने की तैयारी कर रहा है?
👉 या यह केवल धार्मिक मंच से निकले शब्द हैं जिन्हें राजे ने सियासी तीर की तरह छोड़ दिया है?
राजस्थान की राजनीति में फिलहाल सबसे बड़ा रहस्य यही है कि राजे का कद बढ़ेगा…या पद।
