राजनीति हैं गंभीर चेहरों लंबे भाषणों से लैस,
ढूंढ़ रहें सब अपनी-अपनी कहीं न कहीं स्पेस।
विपक्ष में रहकर भी किसी का काम न हो रहा,
सत्तासीन रहकर अपना सब समय में खो रहा।
देश में तर्क से भी ज्यादा मजबूत अंधविश्वास,
न जाने कब-कब क्या-क्या हो जाता हैं खास।
देखों आज भी कहीं पे नारियल जा रहा तोड़ा,
किसी दरवाजे पे एक नींबू रखा जा रहा पूरा।
ज्योतिषी भी करते कभी राजनीति में प्लानिंग,
होती थी यूं डिनर पार्टी मिल जाता है डाइनिंग।
वास्तुशास्त्र के नाम कई बार करते डिजाइनिंग,
नेताओं के घर चमक जाते ज़बरदस्त शाइनिंग।
संजय एम तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इन्दौर-452011 (मध्य प्रदेश)
