नरेगा में भ्रष्टाचार: भीलवाड़ा की बोरेला ग्राम पंचायत में मृतकों और स्कूली बच्चों के नाम पर फर्जी भुगतान
भीलवाड़ा। जिले के आसींद तहसील की बोरेला ग्राम पंचायत में मनरेगा योजना में गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। पंचायत ने न सिर्फ मृत व्यक्तियों को जीवित दिखाकर मजदूरी का भुगतान किया बल्कि स्कूली बच्चों के नाम पर भी काम करवाकर हजारों रुपए का गबन किया है। यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि सरकारी योजनाओं की निगरानी व्यवस्था कितनी कमजोर हो गई है।
जानकारी के अनुसार बोरेला ग्राम पंचायत की सरपंच कंचन गुर्जर के खिलाफ अनेक शिकायतें जिला परिषद और कलेक्टर कार्यालय में की गई हैं। इनमें सबसे चौंकाने वाली शिकायत यह है कि पंचायत ने एक मृत व्यक्ति को नरेगा योजना के तहत काम करते हुए दिखाया और उसके नाम पर भुगतान भी कर दिया।
पंचायत द्वारा जारी दल्ले सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र
दलेल सिंह पिता गोर्धन सिंह की मृत्यु 21 जनवरी 2019 को हो चुकी थी और उसका मृत्यु प्रमाण पत्र पंचायत द्वारा उसी वर्ष जारी भी किया गया था। बावजूद इसके उसे वर्ष 2023-24 में मस्टररोल नंबर 69974 में कार्यरत दिखाकर नौ दिन की मजदूरी के रूप में 1980 रुपए का भुगतान किया गया। यही नहीं, रावला छतरी से ग्रेवल कार्य में उसे 15 दिन कार्यरत बताया गया और 2552 रुपए का भुगतान किया गया। इसके बाद जोधा का खेड़ा के मस्टररोल नंबर 85412 में उसे फिर से आठ दिन काम पर रखा गया और 1664 रुपए की मजदूरी दे दी गई।
नरेगा में मजदूरी करने वाले छात्रों के नाम स्कूल में,ये हे प्रमाण पत्र
यह अकेला मामला नहीं है। पंचायत द्वारा स्कूली बच्चों के नाम पर भी नरेगा योजना का दुरुपयोग किया गया है। जोब कार्ड नंबर 867018/डी के तहत महावीर नामक छात्र, जो अभी स्कूल में पढ़ रहा है, को जोधा का खेड़ा में 52 दिन कार्यरत दिखाया गया। इसके एवज में उसे कुल 10,684 रुपए का भुगतान हुआ। इसी तरह लीला बलाई नामक छात्रा को धर्मीनाडी, इन्द्रपुरा और बडनगर में 58 दिन काम करते हुए बताया गया और उसे 12,075 रुपए की राशि दी गई। एक अन्य छात्र कैलाश नाथ योगी को 68 दिन मजदूरी पर रखा गया और उसे 14,706 रुपए का भुगतान हुआ।
ये नरेगा का मस्टरोल जिसमें मृत व्यक्ति ओर स्कूली छात्रों के नाम मजूरों में शामिल हे फोटो हलचल
स्थानीय निवासियों और शिकायतकर्ताओं का कहना है कि पंचायत न केवल भूतों को जीवित कर रही है, बल्कि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मजदूर बनाकर दिखा रही है। इसके पीछे एक संगठित गिरोह की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, जो सरकारी योजनाओं का धन हड़पने में जुटा है।
इस घोटाले को लेकर जब सरपंच कंचन गुर्जर से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो वह नहीं मिलीं। उनके एक रिश्तेदार ने बताया कि पंचायत का काम वही देखते हैं और अगर कोई गलती हुई है तो जांच करवाई जाएगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मामले पहले सामने आए थे, जिनका निस्तारण कर दिया गया है।
इस घोटाले को उजागर करने वाले स्थानीय निवासी केप्टन पोखरलाल ने जिला परिषद को लिखित शिकायत दी है। शिकायत में उन्होंने सरपंच पर आरोप लगाया है कि मृतक और नाबालिग छात्रों के फर्जी दस्तावेज तैयार कर दो-दो जोब कार्ड बनाए गए और मनरेगा की राशि का दुरुपयोग किया गया। शिकायत में ग्राम विकास अधिकारी पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला कलेक्टर ने भी जांच के आदेश दिए और पंचायत के खिलाफ तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी। लेकिन हैरानी की बात है कि अब तक कोई रिपोर्ट नहीं भेजी गई है, और न ही कोई ठोस कार्रवाई हो पाई है। बार-बार शिकायतों के बावजूद प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता भ्रष्टाचारियों को खुली छूट दे रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत में यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार फर्जीवाड़े की शिकायतें सामने आ चुकी हैं। फिर भी अब तक किसी भी मामले में निर्णायक कार्रवाई नहीं हो सकी है। यह स्पष्ट करता है कि ग्राम पंचायत और जिम्मेदार अधिकारियों के बीच मिलीभगत का संदेह बलवती हो रहा है।
नरेगा जैसी योजना, जिसे ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए शुरू किया गया था, आज भ्रष्टाचार का अड्डा बनती जा रही है। बोरेला ग्राम पंचायत का यह मामला पूरे जिले में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। अगर ऐसे मामलों की निष्पक्ष जांच नहीं हुई और दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो यह न केवल सरकारी धन की बर्बादी होगी बल्कि ग्रामीण जनता के विश्वास को भी तोड़ देगी।
जनता अब प्रशासन से यह उम्मीद कर रही है कि वह इस गंभीर प्रकरण में त्वरित और निष्पक्ष जांच कराए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे। प्रशासन की निष्क्रियता अगर यूं ही बनी रही तो यह भ्रष्टाचार की जड़ें और मजबूत करेगा और भविष्य में ऐसे मामलों को जन्म देगा, जिनका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ेगा।
सरकार को चाहिए कि वह नरेगा जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों की नियमित और स्वतंत्र जांच कराए, जिससे फर्जीवाड़ों को समय रहते रोका जा सके। साथ ही पंचायतों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए, जिससे ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
बोरेला ग्राम पंचायत में भूतों को काम देना जितना हास्यास्पद है, उतना ही चिंताजनक भी। कहीं यह जांच भी भूतों की तरह गायब न हो जाए।
