भीलवाड़ा में बारिश का तांडव: सड़कें ऊंची, मकान नीचे, इंजीनियरों और नेताओं की लापरवाही ने डुबोया शहर!

Update: 2025-09-03 18:00 GMT

$ भीलवाड़ा  के लोग बोले शहर में जल भराव के  जिम्मेदार इंजीनियर ,

$ सड़कें बनीं समंदर, घरों में घुसा पानी,

$डामर की परत-दर-परत, भ्रष्टाचार की खुली किताब

भीलवाड़ा,  (राजकुमार माली):वस्त्र नगरी भीलवाड़ा एक बार फिर बारिश की मार से कराह उठा। सोमवार को एक हफ्ते में दूसरी बार हुई मूसलाधार बारिश ने शहर को जलमग्न कर दिया और नगर निगम, नगर विकास न्यास (UIT), और प्रशासन की सारी पोल खोलकर रख दी। सड़कें समंदर बन गईं, नाले जाम हो गए, घरों और दुकानों में पानी घुस गया, और लोगों की सांसें अटक गईं। शहरवासियों का गुस्सा सातवें आसमान पर है, और सवाल एक ही है—आखिर कब तक यह लापरवाही और अव्यवस्था चलती रहेगी? स्थानीय लोग सीधे तौर पर पढ़े-लिखे इंजीनियरों और नेताओं को इस तबाही का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जिन्होंने सड़कों को बेतरतीब ऊंचा कर मकानों को नीचे धकेल दिया।इस जलप्रलय का सबसे बड़ा कारण है यहां की सड़कें। पिछले दस-पंद्रह सालों से यहां सड़कों को खोदकर नए सिरे से बनाने की बजाय, उन पर डामर की नई-नई परतें चढ़ाई जा रही हैं। यह काम इतनी लापरवाही से किया गया है कि कई जगहों पर सड़कें तीन से चार फीट तक ऊंची हो गई हैं। इसका सीधा नतीजा यह हुआ है कि शहर के घर और दुकानें सड़क के लेवल से नीचे चले गए हैं।



 सड़कें ऊंची, मकान नीचे: लापरवाही की हद

भीलवाड़ा की इस जल-प्रलय का सबसे बड़ा कारण है सड़कों की अनियोजित ऊंचाई। पिछले 10-15 सालों में सड़कों पर डामर की परत-दर-परत चढ़ाने का खेल चल रहा है, लेकिन नियमों को ताक पर रखकर। नतीजा? कई जगह सड़कें मकानों और दुकानों से 3 से 4 फीट तक ऊंची हो चुकी हैं। बारिश का पानी अब नालियों में नहीं, बल्कि घरों और दुकानों में घुस रहा है। पांसल रोड के निवासी लक्ष्मी नारायण पनवा ने गुस्से में कहा, "पहले हमारे घर में घुसने के लिए तीन सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थीं। लेकिन अब सड़क इतनी ऊंची हो गई है कि मकान नीचे रह गया। हल्की बारिश में भी पानी घर में घुस जाता है। क्या यह इंजीनियरों की अक्लमंदी है?"

इसी तरह, देवकिशन प्रजापत ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया, "सड़कों और नालियों की ऊंचाई ने सीवरेज टैंकों को बेकार कर दिया। टैंकों का पानी नालियों में नहीं निकल पाता, जिसके चलते हमें मकानों की फर्श तोड़कर टैंकों को ऊपर उठाना पड़ रहा है। इससे मकान का हुलिया बिगड़ रहा है, दरवाजे छोटे हो रहे हैं, और घर की ऊंचाई कम हो रही है।" उन्होंने तीखे अंदाज में सवाल उठाया, "इसके लिए जिम्मेदार कौन है?



 पढ़े-लिखे इंजीनियर या हमारे नेता, जो सब कुछ जानते हुए भी चुप्पी साधे हुए हैं? क्या सुविधा शुल्क के चक्कर में शहर को डुबो दिया गया?"क्या हमारे इंजीनियरों का दिमाग इतना भोथरा हो गया है कि उन्हें यह साधारण सी बात समझ नहीं आती? या फिर यह सिर्फ सुविधा शुल्क और कमीशन का खेल है, जिसके चलते उन्हें शहर का सत्यानाश करने में कोई हिचक नहीं हो रही?

नगर निगम और UIT की नाकामी

शहर की सड़कों को बिना खोदे, बिना नियमों का पालन किए डामर की परतें चढ़ाने का यह खेल सालों से चल रहा है। आलम यह है कि सड़कों की ऊंचाई मकानों से ज्यादा हो गई, लेकिन न तो नगर निगम ने इस पर ध्यान दिया और न ही नगर विकास न्यास ने कोई ठोस कदम उठाया। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि यह सब "सुविधा शुल्क" और ठेकेदारों की मिलीभगत का नतीजा है। इंजीनियरों की लापरवाही ने शहर को इस कदर बर्बाद कर दिया कि अब हल्की बारिश भी तबाही का सबब बन जाती है।

न्यास के पूर्व चेयरमैन अक्षय त्रिपाठी की स्टेशन रोड पर दुकानों का हाल भी कुछ अलग नहीं है। कभी वहां दो सीढ़ियां हुआ करती थीं, लेकिन अब हल्की बारिश में भी दुकानों में पानी घुस जाता है। स्थानीय व्यापारी रमेश शर्मा ने तंज कसते हुए कहा, "जब चेयरमैन साहब अपनी दुकानों का हाल नहीं देख पाए, तो शहर का क्या भला करेंगे? यह लापरवाही नहीं, बल्कि शहर के साथ विश्वासघात है।"

शास्त्रीनगर में कैद हुए लोग

शहर की सबसे महंगी कॉलोनी शास्त्रीनगर के हालात भी बद से बदतर हैं। बारिश के बाद सड़कों पर 3 से 4 फीट पानी जमा हो जाता है, जो घंटों तक नहीं निकलता। पूर्व नगर सभापति मधु जाजू ने गुस्से में बताया, "बरसात के बाद सड़कों पर इतना पानी भर जाता है कि घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। 3-4 घंटे तक पानी जमा रहता है, और नालियां पूरी तरह जाम हैं।" उन्होंने प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाते हुए कहा, "क्या यह शहर के टैक्सपेयर का अपमान नहीं है? हम सुविधा शुल्क देते हैं, लेकिन सुविधा के नाम पर सिर्फ धोखा मिलता है।"

नालों की सफाई का ढोंग



 हर साल बारिश से पहले नगर निगम और UIT नालों की सफाई का ढोंग रचते हैं, लेकिन हकीकत में नाले कचरे और गाद से अटे पड़े हैं। सोमवार की बारिश में शहर के ज्यादातर नाले जाम हो गए, जिसके चलते पानी सड़कों पर बहता रहा। पुराना भीलवाड़ा, माणिक्य नगर, सांगानेरी गेट, और शास्त्रीनगर जैसे इलाकों में दुकानों तक में पानी घुस गया। एक स्थानीय दुकानदार ने गुस्से में कहा, "नालों की सफाई के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। क्या यह पैसा नेताओं और ठेकेदारों की जेब में जा रहा है?"


प्रशासन की चुप्पी, नेताओं की बेरुखी

सबसे हैरानी की बात यह है कि इस जल-प्रलय के बीच एक भी जिम्मेदार अधिकारी या नेता सड़कों पर हालात का जायजा लेने नहीं निकला। शहरवासियों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं था। लोग अपने घरों में कैद हो गए, दुकानें बंद रहीं, और वाहन सड़कों पर खड़े-खड़े डूब गए। स्थानीय निवासी राजेश मीणा ने तंज कसते हुए कहा, "शायद अफसरों और नेताओं के घरों में पानी नहीं घुसता, इसलिए उन्हें हमारी तकलीफ का अहसास ही नहीं है।"

सीवरेज टैंकों का संकट

सड़कों और नालियों की ऊंचाई बढ़ने से सीवरेज टैंकों की समस्या और गंभीर हो गई है। पानी का निकास न होने से टैंकों का गंदा पानी सड़कों पर बह रहा है, जिससे बदबू और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। कई जगह मकान मालिकों को मजबूरन अपनी फर्श तोड़कर टैंकों को ऊपर उठाना पड़ रहा है, जिससे न सिर्फ मकानों की संरचना को नुकसान हो रहा है, बल्कि भारी खर्च भी उठाना पड़ रहा है। एक निवासी ने गुस्से में कहा, "यह सब इंजीनियरों और नेताओं की मिलीभगत का नतीजा है। अगर समय रहते सड़कों को नियमों के मुताबिक बनाया जाता, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।"

नेताओं पर उठ रहे सवाल

शहर की इस दुर्दशा के लिए स्थानीय नेताओं की चुप्पी भी कम जिम्मेदार नहीं है। चर्चाएं हैं कि सुविधा शुल्क और ठेकेदारी के खेल में लिप्त कुछ नेता इस मुद्दे पर जानबूझकर चुप हैं। निवासियों का कहना है कि अगर नेताओं ने समय रहते इस समस्या पर ध्यान दिया होता, तो आज भीलवाड़ा को यह दिन नहीं देखना पड़ता। एक युवा कार्यकर्ता ने कहा, "चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन जब जनता मुसीबत में होती है, तो कोई सामने नहीं आता।"

जनता की मांग: ठोस कदम उठाएं

शहरवासियों की मांग है कि सड़कों को नियमों के मुताबिक खोदकर दोबारा बनाया जाए और नालियों की उचित सफाई और डिजाइन पर ध्यान दिया जाए। साथ ही, सीवरेज सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। निवासियों ने प्रशासन से मांग की है कि भविष्य में ऐसी तबाही से बचने के लिए एक दीर्घकालिक योजना बनाई जाए।

 शहर को बचाने  की उम्मीदे उनसे भी ..

भीलवाड़ा की यह जल-प्रलय कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और नेताओं की बेरुखी का नतीजा है। सड़कों की अनियोजित ऊंचाई, जाम नाले, और बेकार सीवरेज सिस्टम ने शहर को डूबने के लिए मजबूर कर दिया। अब समय है कि नगर निगम और UIT अपनी जिम्मेदारी समझें और शहरवासियों को इस जल-प्रलय से निजात दिलाएं। सवाल यह है कि क्या प्रशासन और नेता अब भी चुप्पी साधे रहेंगे, या शहर के लिए कुछ ठोस कदम उठाएंगे? जवाब का इंतजार भीलवाड़ा की जनता को उन समाजसेवियों से भी हे जो नदी नालो पेड़ पोधो को लेकर कोर्ट तक जाते हे मगर डूबते शहर को बचाने आगे नहीं आते !

Similar News