अमेरिकी टैरिफ का भारतीय कपड़ा उद्योग पर गहरा असर: उत्पादन में कमी, निर्यात ऑर्डर रद्द
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयात पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ का असर भारत के कपड़ा उद्योग पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। विशेष रूप से राजस्थान के भीलवाड़ा और तमिलनाडु के तिरुप्पुर जैसे प्रमुख कपड़ा केंद्रों में उत्पादन या तो ठप हो गया है या धीमा पड़ गया है। तिरुप्पुर, जिसे भारत का 'निटवियर हब' कहा जाता है, और भीलवाड़ा जैसे क्षेत्रों में कपड़ा निर्माताओं ने अमेरिकी बाजार के लिए उत्पादन रोक दिया है, क्योंकि अमेरिकी खरीदारों ने ऑर्डर रद्द कर दिए हैं या उन्हें बांग्लादेश, वियतनाम और पाकिस्तान जैसे कम टैरिफ वाले देशों की ओर स्थानांतरित कर दिया है। इस स्थिति ने भारतीय कपड़ा उद्योग को गंभीर चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया है, जिससे लाखों नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं।
अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव
अमेरिका ने आज 27 अगस्त, 2025 से भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लागू किया, जिसमें पहले से मौजूद 25 प्रतिशत रिसिप्रोकल टैरिफ में अतिरिक्त 25 प्रतिशत की वृद्धि शामिल है। यह टैरिफ विशेष रूप से श्रम-प्रधान उद्योगों जैसे कपड़ा, परिधान, आभूषण, चमड़ा और समुद्री उत्पादों पर भारी पड़ रहा है। तिरुप्पुर और भीलवाड़ा जैसे क्षेत्रों में कपड़ा उद्योग, जो अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर हैं, इस टैरिफ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, कपड़ा और परिधान निर्यात में 63.9% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण शिपमेंट में 70 प्रतिशत तक की गिरावट हो सकती है।
तिरुप्पुर से अमेरिका को होने वाला कपड़ा निर्यात लगभग 12,000 करोड़ रुपये का है, जो क्षेत्र के कुल 45,000 करोड़ रुपये के वार्षिक निर्यात का 30 प्रतिशत है। तिरुप्पुर निर्यातक संघ (टीईए) के अध्यक्ष के.एम. सुब्रमण्यन के अनुसार, इस टैरिफ के कारण लगभग 6,000 करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित होने की आशंका है। कई निर्माताओं ने तत्काल उपाय के रूप में उत्पादन रोक दिया है, जबकि अन्य वैकल्पिक बाजारों की तलाश कर रहे हैं। भीलवाड़ा, जो राजस्थान का एक प्रमुख कपड़ा केंद्र है, भी इस संकट से अछूता नहीं है। यहां के निर्यातकों को भी ऑर्डर रद्द होने और मांग में कमी का सामना करना पड़ रहा है।
उत्पादन में कमी और ऑर्डर रद्द
अमेरिकी खरीदारों ने टैरिफ के कारण भारतीय कपड़ा उत्पादों की कीमतों में 64 प्रतिशत तक की वृद्धि का हवाला देते हुए ऑर्डर रद्द कर दिए हैं। कई ऑर्डर बांग्लादेश, पाकिस्तान, वियतनाम और कंबोडिया जैसे देशों को स्थानांतरित हो गए हैं, जहां टैरिफ 19 से 36 प्रतिशत के बीच है। तिरुप्पुर के एक निर्यातक ने बताया कि अमेरिकी खरीदारों ने कई शिपमेंट को होल्ड पर डाल दिया है, और कुछ मामलों में ऑर्डर पूरी तरह से पाकिस्तान को चले गए हैं।
इसके परिणामस्वरूप, तिरुप्पुर, नोएडा, सूरत और भीलवाड़ा जैसे कपड़ा केंद्रों में कई कारखानों ने उत्पादन रोक दिया है। भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) के अध्यक्ष एस.सी. रल्हन ने इस स्थिति को एक बड़ा झटका बताया और कहा कि यह भारतीय वस्तुओं के अमेरिकी बाजार में प्रवाह को बुरी तरह प्रभावित करेगा। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि भारत के उत्पाद अब वियतनाम और बांग्लादेश जैसे कम लागत वाले प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी हो गए हैं।
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता: एक नई उम्मीद
अमेरिकी टैरिफ के इस संकट के बीच, भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA) कपड़ा निर्यातकों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरा है। इस समझौते के तहत, ब्रिटेन में भारतीय वस्त्रों पर 12 प्रतिशत टैरिफ हटा लिया गया है, जिससे भारतीय निर्यातक बांग्लादेश के बराबर और चीनी आपूर्तिकर्ताओं से अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए हैं। तिरुप्पुर के कारोबारी अब ब्रिटिश बाजार की ओर देख रहे हैं, जहां से उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है।
उदाहरण के लिए, वेलस्पन लिविंग और गोकलदास एक्सपोर्ट्स जैसी कंपनियों ने ब्रिटेन में बढ़ती मांग के कारण अपनी यूरोपीय राजस्व हिस्सेदारी बढ़ाई है। गोकलदास एक्सपोर्ट्स ने वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में अपनी यूरोपीय हिस्सेदारी 9% से बढ़ाकर 13.4% कर ली है। इसके अलावा, यूके-भारत FTA के तहत 6 बिलियन पाउंड के नए निवेश और निर्यात लाभ की उम्मीद है, जो कपड़ा उद्योग सहित विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार सृजन को बढ़ावा देगा।
चुनौतियां और भविष्य की रणनीति
हालांकि ब्रिटेन के साथ FTA एक सकारात्मक कदम है, लेकिन अमेरिकी बाजार की अनिश्चितता बरकरार है। कपड़ा उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को दीर्घकालिक समाधान के लिए यूरोपीय संघ और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौतों को तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए। इसके अलावा, सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वह MSME और निर्यातकों की सहायता के लिए 15,000 करोड़ रुपये की ब्याज समानीकरण योजना और टारगेटेड क्रेडिट लाइन जैसे उपाय शुरू करे।
FIEO ने निर्यातकों, उद्योग निकायों और सरकारी एजेंसियों के बीच त्वरित और समन्वित कार्रवाई की अपील की है ताकि इस संकट से निपटा जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले कुछ हफ्ते महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि भारत को यह तय करना होगा कि वह अमेरिकी टैरिफ के जवाब में अपनी व्यापार नीति को कैसे संतुलित करता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यदि 15 अगस्त को ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच यूक्रेन शांति समझौता होता है, तो अमेरिका टैरिफ में नरमी ला सकता है।
राजस्थान पर होगा जबरदस्त असर, 7 लाख लोगों के रोजगार पर भारी संकट
अमरीका से आने वाले ज्यादातर ऑर्डर और बुकिंग रद्द हो चुके हैं। राजस्थान से 60 से 70 फीसदी निर्यात अगस्त से दिसम्बर के बीच होता है। इसी दौरान ज्वैलरी, अपैरल्स और हैंडीक्राफ्ट में क्रिसमस के ऑर्डर तैयार होते हैं। क्वार्ट्ज की फैक्ट्रियों में कामकाज पूरी तरह ठप है, क्योंकि क्वार्ट्ज का 95 प्रतिशत निर्यात अमरीका को ही होता है।राजस्थान का 17 से 18 हजार करोड़ का एक्सपोर्ट और करीब 7 लाख लोगों का रोजगार सीधा प्रभावित होगा।
सदमे में उद्योग जगत
राज्य सरकार इस संकट की लगातार समीक्षा कर रही है और प्रदेश के निर्यातक और निर्यात आधारित मैन्युफैक्चरिंग इकाई के संचालक भी सरकार पर भरोसा जताते हुए मानसिक तौर पर ट्रंप के टैरिफ की चुनौती का सामना करने के लिए अपने आप को तैयार कर रहे हैं। फिर भी 50 प्रतिशत टैरिफ का राजस्थान के निर्यात पर असर को फिलहाल नकारा नहीं जा सकता। यहां तक कि कई उद्योग तो सदमे में हैं। सबसे बड़ी चिंता निर्यात आधारित इकाइयों में रोजगार की है। क्योंकि राजस्थान से तकनीक की तुलना में श्रम आधारित वस्तुओं का निर्यात ज्यादा होता है।
तुरंत निर्यात सब्सिडी की घोषणा करे सरकार - नवनीत झालानी
राजस्थान हैंडीक्राफ्ट्स एक्सपोर्टर्स जॉइंट फोरम के कोऑर्डिनेटर नवनीत झालानी का कहना है कि जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, चूरू में 6 हजार हैंडीक्राफ्ट इकाइयां और उनसे जुडे 2 लाख लोग ट्रंप के टैरिफ से प्रभावित होंगे। प्रदेश के निर्यातक इस भारी संकट को अकेले झेलने में सक्षम नहीं है। सरकार को तुरंत निर्यात सब्सिडी की घोषणा करनी चाहिए।
सेक्टर - सालाना निर्यात - रोजगार
गारमेंट और टेक्सटाइल - 6200 करोड़ - 2 लाख
जेम्स-ज्वैलरी - 5000 करोड़ - 2 लाख
हैंडीक्राफ्ट - 6000 करोड़ - 2 लाख
क्वार्ट्ज-मार्बल-ग्रेनाइट - 2500 करोड़ - 1 लाख।
गंभीर संकट
अमेरिकी टैरिफ ने भारत के कपड़ा उद्योग, विशेष रूप से तिरुप्पुर और भीलवाड़ा जैसे केंद्रों, को गंभीर संकट में डाल दिया है। उत्पादन में कमी और ऑर्डर रद्द होने से लाखों नौकरियां खतरे में हैं। हालांकि, भारत-ब्रिटेन FTA ने निर्यातकों को एक वैकल्पिक बाजार प्रदान किया है, लेकिन अमेरिकी बाजार की निर्भरता को कम करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है। सरकार और उद्योग को मिलकर नए बाजारों की तलाश, लागत कम करने और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए कदम उठाने होंगे। अगले कुछ महीने भारतीय कपड़ा उद्योग के भविष्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होंगे।
