बिना सहमति विवाह करने वाली बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार पर नियंत्रण की मांग
भीलवाड़ा ।भीलवाड़ा विधायक अशोक कोठारी ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को पत्र लिख कर माता-पिता की बिना सहमति से अन्य समुदाय / समाज में विवाह करने वाली बेटियों को पैतृक संपत्ति में मिलने वाले अधिकार (विरासत) पर नियंत्रण लगाने की मांग की है।
विधायक कोठारी ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटे और बेटियों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है, लेकिन वर्तमान में कुछ मामलों में यह अधिकार विवादों को जन्म दे रहा है।
उन्होंने पत्र में बताया कि प्रदेश में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं जहां बेटियां माता -पिता की सहमति के बिना अपनी मर्जी से किसी अन्य समाज/समुदाय के युवकों के साथ शादी के इरादे से भाग जाती हैं।
ऐसे मामलों में पुलिस द्वारा बरामदगी के बाद जब लड़की को न्यायालय में पेश किया जाता है, तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने बयानों में माता-पिता को पहचानने से इनकार कर देती है और उनके साथ जाने से मना कर देती है।
विधायक कोठारी ने तर्क दिया कि ऐसी स्थिति में जब माता-पिता की मृत्यु हो जाती है तो विरासत के नामांतरण में उस बेटी का नाम वारिसान के रूप में दर्ज हो जाता है, भले ही उसने परिवार से नाता तोड़ लिया हो। इसके बाद वह मौके पर न आकर जमीन किसी और को बेच देती है, जिससे परिवार और न्यायालयों में अनावश्यक विवाद बढ़ते हैं।
विधायक कोठारी का मुख्य तर्क यह है कि जब बेटी मजिस्ट्रेट के समक्ष यह बयान देती है कि वह अपने माता-पिता को नहीं पहचानती है तो इसका अर्थ है कि उसका उस परिवार से कोई रिश्ता नहीं रहा है। ऐसी बच्चियों को पिता की संपत्ति में विरासत का अधिकार देना एक विचारणीय बिन्दु है।
विधायक कोठारी ने बढ़ते 'पाश्चात्य संस्कृति' के प्रभाव और समाज में रिश्तों की मर्यादा बनाए रखने के लिए इस तरह के मामलों में विरासत के नामांतरण में लड़कियों के नाम दर्ज करने पर नियंत्रण लगाने को आवश्यक बताया है।
विधायक कोठारी ने यह भी कहा कि इस प्रकार के कानून का निर्माण होने से लव जिहाद और संपत्ति के लालच में मासूम बच्चियों को फंसाए जाने जैसी घटनाओं पर भी अंकुश लग सकता है। उन्होंने इस संबंध में गुजरात सरकार द्वारा बनाए गए कानून का उदाहरण देते हुए राजस्थान में भी विधिक परीक्षण करा कर आवश्यक कानून बनाने का अनुरोध किया है।
विधायक कोठारी ने मुख्यमंत्री शर्मा से पत्र में
वर्णित तथ्यों पर गंभीरता से विचार करने और आवश्यक कानूनी कदम उठाने का आग्रह किया ताकि सामाजिक मर्यादा बनी रहे और राजस्व न्यायालयों का भार कम हो।
