किसानों के समर्थन में आए उपराष्ट्रपति धनखड़, बोले- गले लगाने वालों को दुत्कारा नहीं जाता
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ मंगलवार को किसानों के समर्थन में आए। किसान आंदोलन को लेकर उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा। मुंबई में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जिनको गले लगाना है, उनको दुत्कारा नहीं जा सकता। मेरे कठोर शब्द हैं। कई बार गंभीर बीमारी के इलाज के लिए कड़वी दवाई पीनी पड़ती है। मैं किसान भाइयों से आह्वान करता हूं कि मेरी बात सुनें, समझें। आप अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। राजनीति को प्रभावित करते हैं। भारत की विकास यात्रा के आप महत्वपूर्ण अंग हैं। सामाजिक समरसता की मिसाल हैं। बातचीत के लिए आपको भी आगे आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा बना सकते हैं? मुझे समझ में नहीं आता कि किसानों के साथ कोई बातचीत क्यों नहीं हो रही है। मेरी चिंता यह है कि यह पहल अब तक क्यों नहीं हुई। शिवराज सिंह चौहान आप कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री हैं। मुझे सरदार पटेल की याद आती है और राष्ट्र को एकजुट करने की उनकी जिम्मेदारी जिसे उन्होंने बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया। यह चुनौती आज आपके सामने है, और इसे भारत की एकता से कम नहीं माना जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि किसान आंदोलन का मतलब केवल उतना है जो लोग सड़क पर हैं? किसान का बेटा आज अधिकारी है, सरकारी कर्मचारी है। देश में लाल बहादुर शास्त्री ने फूंका था जय जवान, जय किसान। उस जय किसान के साथ हमारा रवैया वैसा ही होना चाहिए, जैसी लाल बहादुर शास्त्री जी की कल्पना थी। उसमें अटल बिहारी वाजपेयी ने इसमें जय जवान, जय किसान और जय अनुसंधान जोड़ा। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऊंचाई पर ले गए और इसमें इसमें जय जवान, जय किसान, जय अनुसंधान के साथ जय विज्ञान जोड़ा।
उन्होंने कहा कि मैंने विजन डाक्यूमेंट देखे हैं। मेरा दिल दहल गया। बना तो दिए गए, लेकिन किसी ने अमल नहीं किया। आपने 2020, 2030, 2050 तक का विजन डॉक्यूमेंट बना दिया। ये समय मेरे लिए कष्टदाई है, क्योंकि मैं राष्ट्र धर्म से ओतप्रोत हूं। पहली बार मैंने भारत को बदलते देखा है। पहली बार मैं महसूस कर रहा हूं कि विकसित भारत हमारा सपना नहीं लक्ष्य है। दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंद नहीं था। दुनिया में हमारी साख कभी इतनी नहीं थी। दुनिया में भारत का प्रधानमंत्री आज शीर्ष नेताओं में गिना जाता है। जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान परेशान क्यों है? क्यों पीड़ित है। यह बहुत गहराई का मुद्दा है। इसे हल्के में लेने का मतलब है कि हम व्यावहारिक नहीं हैं, और हमारी नीति-निर्माण सही रास्ते पर नहीं है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसान अकेला है, असहाय है। कृषि मंत्री जी आपका एक पल-पल भारी है। कृषि मंत्री जी, क्या आपसे पहले जो कृषि मंत्री थे, उन्होंने लिखित में कोई वादा किया था? अगर वादा किया था तो उसका क्या हुआ? वादा किया गया था तो उसे निभाया क्यों नहीं गया? गतवर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है। कालचक्र घूम रहा है। हम कुछ कर नहीं रहे हैं। यह केवल मेरी भावनाओं का पांच फीसदी है। मैं ज्यादा खुलकर बोल नहीं रहा हूं।
उन्होंने कहा कि देश चाहता है कि किसानों के साथ पूरा न्याय हो। जिंदगी बचपन गोबर में पांव रखकर निकाली है। उन कष्टों को महसूस किया है। आपकी बड़ी-बड़ी योजनाएं कारगर हैं। भारत आज ख्याति पर है। इसमें किसान की भागीदारी क्यों नहीं है? मैं 10 संस्थाओं में गया, वहां मुझे कोई किसान नहीं मिला। हम रास्ता भटक चुके हैं। यह रास्ता खतरनाक है। इसके समाधान की कुंजी प्रधानमंत्री दे चुके हैं। बातचीत होनी चाहिए। मैंने पहले भी अपनी चिंता व्यक्त की थी। किसान हमारे शरीर का अंग है। उसके आंसू आंखों से नहीं आते हैं। मेरी पीड़ा है कि किसान हितैषी उनकी आवाज को दबा रहे हैं। देश की कोई भी ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती। यदि कोई देश किसान के धैर्य की परीक्षा लेगा तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। मुझे लगता है कि कृषि मंत्री इस मु्द्दे का समाधान करेंगे।
जयराम रमेश ने भी पूछे सवाल
उपराष्ट्रपति के बयान के कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने भी सवाल उठाए। उन्होंने एक्स पर लिखा कि सभापति जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यही सवाल लगातार पूछ रही है। पहला एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी कब हकीकत का रूप लेगी? एमएसपी तय करने के लिए स्वामीनाथन फॉर्मूला कब लागू होगा? जिस तरह पूंजीपतियों को कर्ज से राहत दी गई है उसी तरह का लाभ किसानों को कब मिलेगा?