गधे की बारात’ देख हंसी से लोटपोट हुए दर्शक
उदयपुर, 5 जनवरी। पश्चिम क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र उदयपुर द्वारा आयोजित मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ में रविवार 5 जनवरी 2025 को हास्य व्यंग्य नाटक ‘गधे की बारात’ का मंचन किया गया। इस नाटक के माध्यम से अमीरी-गरीब के अंतर को दिखाया गया। कलाकारों ने बेहतर प्रस्तुति देकर दर्शकों का दिल जीत लिया।
पश्चिम क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र उदयपुर के निदेशक फ़ुरकान खान ने बताया की प्रति माह आयोजित होने वाली मासिक नाट्य संध्या रंगशाला में रविवार को शिल्पग्राम उदयपुर स्थित दर्पण सभागार में ‘गधे की बारात’ नाटक का मंचन किया गया। यह नाटक सप्तक कल्चरल सोसायटी रोहतक द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसका 345वां मंचन यहां शिल्पग्राम में हुआ। इससे पूर्व यह लाहौर (पाकिस्तान), लबासना मसूरी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में मंचन किया जा चुका है।
इस हास्य व्यंग्य नाटक के जरिए दर्शाया गया कि गरीबों की बस्ती से जो भी राजमहल की ड्योढी तक पहुंच जाता है वो फिर कभी नहीं लौटता। वहां पहुंचकर वो अपने सगे गरीब भाईयों को भुला देता है। इस नाटक के नाटककार हरिभाई वडगांवकर तथा निर्देशक विश्वदीपक त्रिखा थे।
कलाप्रेमियों ने इस नाटक तथा उसके पात्रों द्वारा किए गए अभिनय को सराहा। अंत में सभी कलाकारों का सम्मान किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन केन्द्र के सहायक निदेशक (वित्तीय एवं लेखा) दुर्गेश चांदवानी ने किया।
पात्र परिचय: कल्लू-अविनाश, गंगी-पारूल, राजा एवं बाबा-सुरेन्द्र, दीवानजी-तरूण पुष्प त्रिखा, इन्द्र-शक्ति स्वरूप त्रिखा, चित्रसेन- अमित शर्मा, द्वारपाल-अनिल, राजकुमारी-खुशी, बुआ-प्रेरणा, बाराती- नलीनाक्षि, छोटी बाई, वंशिखा। हारमोनियम पर विकास रोहिला, नगाड़ा पर सुभाष नगाड़ा थे।
नाटक की कहानी-
एक कुम्हार कल्लू व उसकी पत्नी गंगी की नोक-झोंक से शुरू होती है, जिसमें कल्लू की पत्नी अपने पति से गधे हांक कर लाने के लिए जिद करती रहती है। अपनी पत्नी की बात मानकर कल्लू गधे चराने निकल पड़ता है। जहां उसकी मुलाकात देवों के गुरू बृहस्पति से होती है। कल्लू गुरू बृहस्पति से जिद कर इंद्र के दरबार पहुंच जाता है। वहां पहुंचकर कल्लू देखता है कि राजा इंद्र के दरबार में एक गंधर्व चित्रसेन अप्सरा रंभा का हास-परिहास में हाथ पकड़ लेता है जिस कारण राजा इंद्र उसे पृथ्वी लोक में गधा बनकर घूमने का श्राप दे देते हैं। चित्रसेन के माफी मांगने के बाद इंद्र उसे वरदान भी देते हैं कि जब उसका विवाह अंधेर नगरी के राजा चौपट सिंह की बेटी के साथ होगा तो वह श्राप मुक्त हो जाएगा। चित्रसेन गधा बनकर पृथ्वी लोक में आ जाता है और कल्लू के अन्य गधों के साथ रहने लगता है। एक दिन अंधेर नगरी का राजा अपने नगर में मुनियादी करवाता है कि जो कोई भी महल से लेकर गरीबों की बस्ती तक एक रात में पुल तैयार कर देगा, उसका विवाह राजकन्या चांदनी से किया जाएगा। अंत में कल्लू चतुराई से उसकी बेटी का विवाह चित्रसेन गधे से करा देता है। राजकन्या जैसे ही गधे को वरमाला डालती है, गधा श्राप मुक्त होकर गंधर्व बन जाता है और कल्लू कुम्हार व गंगी को पहचानने तक से इंकार कर देता है। राजा एक गंधर्व को अपना दामाद बनते देखकर खुश होता है और कल्लू व उसकी पत्नी को धक्के मारकर बाहर निकलवा देता है।