जैन समाज में बेटियों की शिक्षा और संस्कार पर महासती प्रज्ञा ने प्रकाश डाला
चित्तौड़गढ़ | जैन समाज में बेटियों की शिक्षा और संस्कार के महत्व पर आदरणीय महासती अपूर्व प्रज्ञा ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में बेटियों को केवल शिक्षित करने पर ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन उन्हें संस्कारित करने और संस्कार देने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
संस्कारों की कमी के परिणाम
आदरणीय महासती ने कहा कि संस्कारों की कमी के कारण जैन समाज की बेटियां शिक्षित तो हो रही हैं, लेकिन वे अपने पति और पति के परिवार के सदस्यों को वह सम्मान नहीं दे पा रही हैं जिसके वे अधिकारी हैं। उन्होंने कहा कि पहले महिलाएं कम पढ़ी-लिखी होती थीं, लेकिन वे अपने ससुराल में हर परिस्थिति में ढल जाती थीं और परिवार को जोड़कर रखने के लिए हर मुसीबत का सामना करती थीं।
आदरणीय महासती जी ने कहा कि वर्तमान समय में नारी शिक्षित तो हो रही है, लेकिन संस्कारहीन होती जा रही है। इसका परिणाम समाज के लिए घातक हो रहा है, जैसे कि तलाक के मामले और परिवारों में दीवार और मतभेद बढ़ते जा रहे हैं।
आदरणीय महासती जी ने कहा कि समाज के सभी लोगों को अपनी बेटियों को पढ़ना भी सिखाना चाहिए और घर के काम करने की शिक्षा भी देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बेटियों को इस प्रकार के संस्कार देने चाहिए कि वे शादी के बाद हर परिस्थिति में ढल सकें और सामना कर सकें।
इस ज्ञान चर्चा में श्रमण संघ अध्यक्ष किरण डांगी, श्री जैन दिवाकर संगठन समिति चित्तौड़गढ़ अध्यक्ष राजेश सेठिया, मंत्री सुधीर जैन, संगठन मंत्री विनय मारु
युवा अध्यक्ष अर्पित बोहरा, मंत्री सिरोया जी, जैन दिवाकर महिला परिषद अध्यक्ष संगीता चिप्पड़ सहित अनेक श्रावक और श्राविकाएं उपस्थित थीं।