45 आगम तप की महा मंगलकारी चल रही है आराधना

उदयपुर,। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बडे हर्षोल्लास के साथ 45 आगम तप की महा मंगलकारी आराधना चल रही है। बड़ी संख्या में आराधक प्रवचन एवं तपश्चर्या में जुड़े है।
श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि रविवार को मालदास स्ट्रीट के नूतन आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा जगत् के सभी जीव कर्मों के अधीन है। कर्मों के कारण ही आत्मा को इस चार गति रूप संसार में परिभ्रमण करना पड़ता है। ये कर्म आत्मा को मोहित बनाकर संसार के इष्ट-अनिष्ट पदार्थों पर राग-द्वेष कराते है। इसलिए राग और द्वेष ये आत्मा के कट्टर दुश्मन है।राग के कारण संसारी आत्मा पांच इन्द्रिय के विषय भोग, स्नेह, ममत्त्व माया, लोभ आदि करती है और द्वेष के कारण क्रोध, मान, इष्र्या, लडाई, झगडे, निंदा, नफरत आदि करती है। ये सभी प्रकार के कार्यों से आत्मा अपार कर्मों का अर्जन करके संसार में भटकती रहती है। राग-द्वेष दोनों कुत्तों के जैसे है। जैसे कुत्ते दो प्रकार के होते है, एक चुपके से काटता है, दूसरा भोंक कर काटता है। भौंककर कांटने वाले कुत्ते से सावधान रहा जा सकता है, परंतु चुपके से काटने वाले कुत्ते से बचना मुश्किल होता है। वैसे ही राग चुपके से काटने वाले कुत्ते जैसा है, और द्वेष - भौंककर काटने वाले कुत्ते जैसा है। जब कोई व्यक्ति ज्यादा गुस्सा करता है, कलह क्लेश करता है, तब उसके व्यवहार को दुनिया पसंद नहीं करती है परंतु, कोई व्यक्ति जब सभी जगह हँसी मजाक करता है, किसी की मजाक उड़ाकर हंसी पैदा करता है तब उसके व्यवहार को सभी पसंद करते है। कलह-क्लेश करना द्वेष का प्रकार है तो हंसी मजाक करना राग का प्रकार है।
प्रवचन के बाद पिण्डवाडा जैन संघ के ट्रस्टी गण महेश, अशोक, मनीष, पंकज, महेन्द्र जैन आदि ने जैनाचार्य श्री को आगामी वर्ष 2026 के वर्षावास चातुर्मास हेतु हार्दिक विनती की। 35 वर्ष पूर्व जैनाचार्य भी पिंडवाड़ा से उदयपुर चातुर्मास करने पधारे थे, अब जैनाचार्य श्री अपने संयम जीवन का 50 वां चातुर्मास करने उदयपुर से पिंडवाड़ा पधारे यह प्रार्थना अध्यक्ष महेश ने की।
मालदास स्ट्रीट-उदयपुर संघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, अध्यक्ष शैलेन्द्र , गौतम मुर्डिया, प्रवीण हुम्मड आदि उपस्थित रहे ।