सातवां दिन : सम्यग् ज्ञान से आचरण को शुद्ध करके मोक्ष प्राप्त करें - साध्वी जयदर्शिता

Update: 2025-10-04 08:21 GMT

 उदयपुर । तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता  , जिनरसा  , जिनदर्शिता  व जिनमुद्रा   महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि शनिवार को साध्वियों के सानिध्य में नवपद ओली के तहत विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। चातुर्मास में एकासन, उपवास, बेले, तेले, पचोले आदि के प्रत्याख्यान श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन ले रहे हैं और तपस्याओं की लड़ी लगी हुई है।

महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि शनिवार को आयड़ तीर्थ पर धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता  ने नवपद की आराधना के विषय में बताया कि नवपद में दो देव, तीन गुरु और चार धर्म इस प्रकार के क्रम में चार धर्म के अन्तर्गत आज सातवाँ धर्म सम्यक ज्ञान की आराधना के बारे में बताया। साध्वियों ने बताया कि सम्यक ज्ञान की आराधना से शुद्ध आचार की प्राप्ति होती है। आचार की पवित्रता से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। सम्यक ज्ञान की आराधना से हमें मालूम पड़ता है कि उत्तम आचरण क्या है यानि जीवन में उत्तम क्रिया का वर्तन उत्तम क्रिया से मोस - साधना में सफलता मिलती है। सर्वमान्य ग्रन्य तत्त्वार्थ सूत्र में उमा स्वातिजी ने स्पष्ट लिखा है - "ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्ष "अर्थात् सम्यक ज्ञान तथा क्रिया से ही मोक्ष मिलता है। आगे उन्होंने बताया कि सब दु:खों की जननी अज्ञान है। दु:ख की मूल जड़ अज्ञान है। इस अज्ञान रूपी अंधकार के द्वारा ही हमारा अनादि अनंत काल से इस संसार में परिभ्रमण चल रहा है। अज्ञान रूपी संसार से मुक्त होने वाली एकमात्र ज्ञान रूपी नौका हे। ज्ञान का संबंध साक्षरता से नहीं है, ज्ञान का संबंध संस्कार से है। जैन शास्त्रों में ज्ञान पाँच प्रकार के बताये हैं। मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधिज्ञाना मन:पर्यवज्ञान. और केवल ज्ञान। पांच ज्ञान के द्वारा इकावन भेदों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान है, सम्यग्ज्ञान है। हमारा ज्ञान सम्चार ज्ञान होगा तो ही संस्कार की अति संपत्ति प्राप्त होगी। माँ के संस्कार के कारण ही आर्य रक्षित साधु बने और शास्त्र अभ्यास करते-करते जैन शासन के महान प्रभावक बन गये। ज्ञान की प्राप्ति के लिए पांच प्रकार का स्वाध्याय बताया गया है। स्वाध्याय के द्वारा ज्ञान का परिमार्जन करना चाहिए। ज्ञान की आशालना नहीं करना चाहिए। ज्ञान की आराधना करके आत्म ज्ञान को प्रकट करना है।

 

Tags:    

Similar News