उम्मीदों का है वास...!

By :  vijay
Update: 2025-02-07 12:53 GMT
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कहाँ से लाऊँ वो सुखद अहसांस,

सिर पर हाथ उम्मीदों का है वास।

जिसके लिए अभिभावक है चिंतित,

लालन-पालन में ही रहते तल्लीन।

मेहनत करते हर दिन एवं हर पल,

यह सेवा चलती रहती है निश्छल।

कहाँ से लाऊँ वो सुखद अहसांस,

सिर पर हाथ उम्मीदों का है वास।

खूब सजाएं थे उन्होंने अपने सपने,

पैरों पर खडे़ होऊ लगे वो खपने।

ऐसे हुए जवान अब लगे वो तपने,

‘नो वेकेंसी‘पढ़ सपने लगे बिखरने।

कहाँ से लाऊँ वो सुखद अहसांस,

सिर पर हाथ उम्मीदों का है वास।

अपने बच्चे का साथ बहुत मायने,

संघर्षों का ही वक्त खड़ा दाहिने।

हाँ, रहो एक साथ बिखरे न मोती,

ना करों चिंता खाएंगे आधी रोटी।

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