हाथों में गर हो तिरंगा तो हमें गौरव मिले, अभिमान मिले।
गर्व है हिंदू होने में ,पर मानवता से ही तो असल पहचान मिले।
भाषाओं से परहेज नहीं हैं, पर हिंदी तो मातृभाषा है हमारी।
आधुनिकता की इस होड़ में उसको भी तो उचित सम्मान मिले।
यहां कोई स्मॉल कैपिटल नहीं, हर वर्ण को उचित स्थान मिले।
अ से अज्ञानी भी पढता जाए, तो ज्ञ से ज्ञानी तक का ज्ञान मिले।
रहता नही कोई व्यंजन अकेला,स्वर अ सभी में मिल जाता हैं।
यहां साइलेंट नही कोई अक्षर , हिंदी की तो बिंदी से भी पहचान मिले।
क्या एक दिन के सम्मान की अधिकारी हुं, ये क्यों ना पुरे साल मिले।
क्यों अब हिचकिचाहट है मुझे बोलने में, अब क्यों ना वो शान मिले।
अंग्रेजी की इस भागमभाग में संतानें मेरी मुझको क्यों भूल गई,
क्यों आज ही उतारी गयी ये आरती ,क्यों आज ही इतना बखान मिले।
राष्ट्र में सबसे ज्यादा बोली जाती हैं, फिर भी क्यों ना राष्ट्रभाषा का स्थान मिले।
मातृभाषा हैं फिर भी अपने ही राष्ट्र में फिर क्यों ना उचित स्थान मिले।
हां! गर्व से कहती हूं हिंदुस्तानी हूं और भाषा हिंदी से शान मिले।
और मिले जन्म सौ बार भी अगर, हर बार ही धरती हिंदुस्तान मिले।
