फूलियाकलां: प्रकाश तोषनीवाल। सोमवार का दिन फूलियाकलां कस्बे के लिए ऐसा सन्नाटा लेकर आया, जो शायद वर्षों तक न टूटे। माली मोहल्ले से जब एक साथ चार अर्थियां उठीं, तो हर गली, हर आंगन, और हर दिल में शोक था। कस्बे में चाहूं और सिर्फ़ एक ही बात थी — "क्या कोई इतना बड़ा दुख भी सह सकता है?"
वैष्णव परिवार के सात सदस्यों की दर्दनाक मौत के बाद फुलिया कला के रहने वाले चार लोगों के गांव में जब शव पहुंचे, तो हर तरफ चीख-पुकार मच गई। कालूराम वैष्णव, सीमा देवी, रोहित, और मासूम बालक गजराज की एक साथ अंतिम यात्रा ने पूरे गांव को गम में डुबो दिया।
आंखों में आंसू, कंधों पर अर्थियां
चार अर्थियां... एक के पीछे एक। बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक, हर कोई अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचा। किसी की आंखों में अपने बेटे का ग़म था, तो किसी की गोद से मासूम छीन लिया गया था।
"गजराज अभी बोलना भी ढंग से नहीं सीख पाया था... अब चुपचाप चला गया", एक बुजुर्ग की रुँधी आवाज़ ने हर किसी का कलेजा चीर दिया।
अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब
गांव का कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो इस अंतिम यात्रा में शामिल न हुआ हो। छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष, युवा और वृद्ध — हर कोई मौन, लेकिन भीतर से टूटा हुआ था। शव यात्रा इतनी लंबी थी कि प्रतीत हो रहा था मानो पूरा गांव ही साथ चल रहा हो।
"जैसे कोई युग समाप्त हो गया हो"
परिवार के एक सदस्य ने भरे गले से कहा, "हमने एक साथ अपने घर की नींव, छत और दीवारें — सब कुछ खो दिया। अब यह घर, सिर्फ़ एक जगह भर रह गया है।"
शोक में डूबे कस्बे के सभी बाजार स्वेच्छा से बंद रहे। हर आंख नम थी, और हर मन प्रार्थना में।
