भीलवाड़ा में चांदी की कीमतों ने तोड़ी बाजार की रफ्तार, परंपरागत गहनों से दूरी बढ़ी
भीलवाड़ा। राजकुमार माली सोने के बाद अब चांदी की लगातार बढ़ती कीमतों ने वस्त्र नगरी भीलवाड़ा के सर्राफा बाजार की चिंता और बढ़ा दी है। कभी महिलाओं की पहचान मानी जाने वाली रेशमी पाजेब, पायल और बिछिया की खनक अब बाजारों में सुनाई नहीं देती। पुराने शहर के प्रमुख सर्राफा इलाकों में ग्राहकों की संख्या घटने से दुकानों पर सन्नाटा पसरा हुआ है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी माह में चांदी की कीमत 80 से 90 हजार रुपये प्रति किलोग्राम के बीच थी। महज कुछ ही महीनों में इसमें जबरदस्त उछाल देखने को मिला। करीब पंद्रह दिन पहले चांदी 1 लाख 75 हजार रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थी। शुक्रवार को इसके दाम 1 लाख 95 हजार रुपये और शनिवार को 1 लाख 98 हजार रुपये प्रति किलोग्राम दर्ज किए गए। अब चांदी 2 लाख रुपये प्रति किलोग्राम के आंकड़े को भी पार कर चुकी है। बीते वर्ष इसी समय चांदी की कीमत लगभग 75 हजार 500 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इस तेज बढ़ोतरी ने चांदी को आम उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर कर दिया है।
सर्राफा व्यापारी मनीष बहेडिया का कहना है कि महंगाई का सबसे ज्यादा असर मध्यम और निम्न आय वर्ग पर पड़ा है। पहले सोना लोगों की पकड़ से दूर हुआ और अब चांदी भी उसी राह पर चल पड़ी है। महिलाओं ने पाजेब, पायल और बिछिया जैसे पारंपरिक आभूषणों की खरीद में कटौती कर दी है। मजबूरी में ग्राहक आर्टिफिशियल ज्वेलरी, पीतल और अन्य धातुओं से बने गहनों की ओर रुख कर रहे हैं।
शहर के अन्य सोना चांदी कारोबारियों का कहना है कि कीमतों में स्थिरता नहीं होने से न ग्राहक खुलकर खरीदारी कर पा रहे हैं और न ही व्यापारी सहजता से कारोबार कर पा रहे हैं। दिन में दो से तीन बार दाम बदलने से बाजार की रफ्तार लगभग थम गई है। चांदी के महंगे होने से कारीगरों का काम भी प्रभावित हुआ है और कई कारीगरों को पर्याप्त ऑर्डर नहीं मिल पा रहे हैं।
महिलाओं का कहना है कि अब भारी आभूषणों की जगह हल्के और आकर्षक डिजाइन वाले गहनों को प्राथमिकता दी जा रही है। आरती चौहान बताती हैं कि बढ़ती कीमतों के कारण पसंद में बदलाव करना पड़ रहा है। वहीं रेखा का कहना है कि महंगाई के चलते त्योहारों और शादी विवाह जैसे अवसरों पर आभूषण खरीदना लगातार मुश्किल होता जा रहा है।
कुल मिलाकर भीलवाड़ा के सर्राफा बाजार में चांदी की बेतहाशा तेजी ने परंपरा, उपभोक्ताओं की पसंद और कारोबार तीनों पर गहरा असर डाला है।
