नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध, आंदोलन में अब तक20लोगों की मौत, गृहमंत्री ने दिया इस्तीफा
नई दिल्ली। नेपाल में सोशल मीडिया बैन के बाद भड़के Gen-Z आंदोलन (Gen-Z Protest) में मौत का आंकड़ा बढ़कर 20मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेपाल में इस वक्त राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। प्रधानमंत्री आवास पर आपातकालीन कैबिनेट मीटिंग बुलाई गई है और इसमें नेपाल के गृहमंत्री रमेश लेखक ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की घोषणा की है। उधर छात्र सड़कों से हटने को तैयार नहीं हैं।
हो गया है। हिमालयन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मरने वालों में 16 काठमांडू और दो इटाहारी के थे। वहीं प्रदर्शन में 200 से ज्यादा लोग घायल भी हुए हैं। घायलों में प्रदर्शनकारी, सुरक्षाकर्मी और पत्रकार शामिल हैं
।नेपाल में सेना को उतारा गया
दरअसल नेपाल में सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों के एक हफ्ते के भीतर नियमों के तहत रजिस्टर करने का अल्टीमेटम दिया था। डेडलाइन पूरी होने के बाद भी मेटा, गूगल समेत दर्जनभर प्लेटफॉर्म्स ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया था। इसके बाद ओली सरकार ने कार्रवाई करते हुए इन प्लेटफॉर्म्स को बैन करने का फैसला किया था।
नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ काठमांडू में Gen-Z का विरोध प्रदर्शन जारी है. जेन-जेड के लड़ाके संसद में घुस गए हैं. उग्र प्रदर्शन को देखते हुए नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक संसद से भाग गए. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवास के बाहर कर्फ्यू लगा दिया गया है. दरअसल, हाल के वर्षों में जिस मुल्क में जेनरेशन-जेड का उग्र प्रदर्शन हुआ है. वहां पर सरकार का तख्तापलट हो गया. बांग्लादेश, थाईलैंड से लेकर श्रीलंका तक इसका बड़ा उदाहरण है.
सूडान- 30 साल तक सूडान की सत्ता में काबिज तानाशाह ओमर अल-बशीर को जेनरेशन-जेड की वजह से साल 2019 में कुर्सी छोड़नी पड़ी. 2018 में जेनरेशन-जेड के युवाओं ने रोटी और ईंधन को लेकर प्रदर्शन की शुरुआत की. धीरे-धीरे आम नागरिक भी इसमें शामिल हो गए.
साल 2019 के आखिर में सूडान से ओमर अल बशीर को जाना पड़ गया. बशीर को हटाने के लिए जेन-जी के लड़ाकों ने सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया. सूडान में इन युवाओं ने सूडानी प्रोफेशनल एक्टिविज्म नामक एक संस्था का भी गठन किया था. इस संस्था का काम आंदोलन मॉनिटरिंग का था.
श्रीलंका- साल 2022 में भारत के पड़ोस में स्थित श्रीलंका में जेनरेशन-जेड के लड़ाकों ने राजपक्षे की चूलें हिला दी. दरअसल, आर्थिक संकट और महंगाई को लेकर श्रीलंका के लोग सड़कों पर निकले. सरकार ने प्रदर्शन को हल्के में लेते हुए लाठियां चलवा दी. सरकार के राष्ट्रपति और उनके करीबियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे.
इसके बाद प्रदर्शनकारी राजधानी कोलंबो में जुट गए. कोलंबो में गोटा गो होम नामक आंदोलन की शुरुआत हुई. आंदोलन की आग जब सुलग गई तब जुलाई 2022 में गोटबाया राजपक्षे परिवार समेत भाग निकले. इसके बाद गोटबाया के करीबी को श्रीलंका की कुर्सी मिली, लेकिन 2024 के चुनाव में कम्युनिष्ट पार्टी वहां पर सरकार में आ गई.
थाईलैंड- 2014 में प्रयुत चान के नेतृत्व में थाईलैंड की सरकार बनी. चान पर तानाशाही के आरोप लगे. 2020 में कोरोना के दौर में चान की सरकार के खिलाफ जनता उठ खड़ी हुई, लेकिन विरोध को ज्यादा भाव नहीं मिला.
इसके बाद जेनरेशन-जेड ने आंदोलन को अपने हाथों में लिया. जेनरेशन-जेड के लड़ाकों की 2 मुख्य मांगें थी. 1. प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओ-चा का इस्तीफा. 2.नए संविधान का मसौदा, ताकि सेना का राजनीतिक नियंत्रण घटे.
प्रदर्शन को देखते हुए 2021 में चान को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद थाईलैंड में चुनाव कराए गए.
बांग्लादेश- जुलाई 2024 में बांग्लादेश में भी शेख हसीना सरकार के खिलाफ जेन-जेड के लड़ाके सड़कों पर उतर गए. इन लड़ाकों की मुख्य मांग सरकारी नौकरी में आरक्षण को लेकर था. शेख हसीना की सरकार इसे ठीक से हैंडल नहीं कर पाई. नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने जेन-जेड के युवाओं पर खूब लाठियां और गोलियां बरसाई.
आखिर में 5 अगस्त को शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ गया. तब से वहां अंतरिम सरकार है. जेन-जेड के इच्छानुसार बांग्लादेश के संविधान को भी बदलने की कवायद हो रही है.
सरकार के इसी फैसले के विरोध में नेपाल के युवा सड़कों पर उतर आए। पहले सुरक्षाबलों ने लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले और रबर बुलेट से भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन स्थिति बिगड़ने के बाद सेना को उतारना पड़ा। नेपाल के कई शहरों में कर्फ्यू (Nepal Curfew) लगा दिया गया है। वहीं घायल हुए लोगों के लिए मुफ्त इलाज की घोषणा की गई है।
भारत से सटी नेपाल की सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई है। नेपाल में सभी परीक्षाएं भी स्थगित कर दी गई हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सुरक्षाबल उन पर गोलियां चला रहे हैं। वहीं ट्रॉमा सेंटर और सिविल अस्पतालों में भी झड़प की खबरें हैं।
