राजस्थान आउट” — क्या बीजेपी में कोई बड़ा खेल चल रहा है?: गुजरात पैटर्न पर राजस्थान में भी सत्ता समीकरण पलटने की तैयारी !
बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनावों के लिए स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की है, उसने राजस्थान की सियासत में सन्नाटा और हलचल—दोनों एक साथ ला दिए हैं। गुरुवार शाम जारी 40 नामों की सूची में जहां मोदी-शाह से लेकर शिवराज और योगी तक तमाम दिग्गजों को जगह दी गई, वहीं राजस्थान के किसी भी नेता का नाम न होना पार्टी के भीतर गहरी राजनीतिक हलचल का संकेत माना जा रहा है।**
राजस्थान, जो बीजेपी की राजनीति में हमेशा से अहम रोल निभाता रहा है, को इस तरह सूची से बाहर कर देना न सिर्फ सवाल खड़े कर रहा है बल्कि यह इस ओर भी इशारा कर रहा है कि पार्टी के अंदर कुछ बड़ा ‘पलटवार’ या ‘पैटर्न चेंज’ हो सकता है—बिलकुल वैसा ही जैसा गुजरात में देखा गया था।
गुजरात पैटर्न पर क्या कुछ बड़ा होने वाला है राजस्थान में?
गया है। ऐसे में सियासी गलियारों में अटकलें तेज हैं कि **क्या पार्टी राजस्थान में भी ‘पावर सेंटर’ बदलने की तैयारी में है?**
क्यों अहम थी राजस्थान की भूमिका बिहार चुनाव में
बिहार में मारवाड़ी व्यापारिक समुदाय का गहरा प्रभाव है। भाजपा की परंपरा रही है कि वो हर चुनाव में राजस्थान के नेताओं को बिहार भेजती रही है। वसुंधरा राजे, राजेंद्र राठौड़ और अन्य वरिष्ठ नेता पहले कई बार प्रचार अभियान में सक्रिय रहे हैं।
लेकिन इस बार न वसुंधरा की ‘गूंज’ है और न ही किसी अन्य वरिष्ठ चेहरे की मौजूदगी—ये खुद में बहुत बड़ा राजनीतिक संदेश है।
राजस्थानी नेता भले नाम से बाहर, लेकिन ग्राउंड पर सक्रिय
भले ही उन्हें स्टार प्रचारक का तमगा न मिला हो, मगर सूत्रों की मानें तो कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता पहले से ही बिहार में डेरा डाले हुए हैं। राजेंद्र राठौड़ जैसे नेता दो हफ्तों से जनसंपर्क और संगठनात्मक काम में लगे हैं। यानी *‘गाड़ी मंच से हटा दी गई है, लेकिन इंजन अब भी चल रहा है।’*
बदलते समीकरण या रणनीतिक संकेत?
राजस्थान को सूची से पूरी तरह बाहर रखना केवल ‘संयोग’ नहीं माना जा रहा। सियासी विश्लेषक इसे पार्टी के भीतर बदलते समीकरण, घटते प्रभाव और **संभावित नेतृत्व परिवर्तन** के संकेत के रूप में देख रहे हैं।
वसुंधरा राजे हाल के दिनों में राज्य में बेहद सक्रिय रही हैं—सोशल मीडिया पर अपनी योजनाओं का प्रचार, जिलों में दौरे और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद। इसके बावजूद उनका नाम सूची में न होना कई संदेश दे रहा है।
अब नजरें पार्टी के अगले कदम पर
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस फैसले को किस रणनीति के तहत सामने लाती है। क्या यह सिर्फ चुनावी गणित है, या फिर राजस्थान में नेतृत्व को लेकर कोई बड़ा फैसला आकार ले रहा है? और क्या इस अनदेखी का असर बिहार चुनावी समीकरणों पर भी पड़ेगा—यह आने वाला समय बताएगा। कुल मिलाकर, राजस्थान को स्टार प्रचारकों की सूची से बाहर कर बीजेपी ने चुपचाप एक बड़ा सियासी संदेश दे दिया है—और इस संदेश को हर राजनीतिक खिलाड़ी बारीकी से पढ़ने में जुटा है।**
