भीलवाड़ा जिले में रसायन मिला पानी बना संकट, खेत-बाग बर्बाद, कुओं का पानी पीने लायक नहीं, नेता आते है फोटो खींचकर चले जाते है ...!
भीलवाड़ा हलचल। जिले के हमीरगढ़, मंगरोप, बड़लियास और बीगोद सहित कई गांव आज रासायनिक और प्रदूषित पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला जहरीला पानी नालों और जोहड़ों के रास्ते खेतों और कुओं तक पहुंच रहा है। इस दूषित पानी ने जमीन की उर्वरक क्षमता को नष्ट कर दिया है, फसलें बर्बाद हो रही हैं और पीने के पानी के स्रोत जहरीले हो चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अब यह पानी इंसानों और पशुओं दोनों के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
ग्रामीणों का दर्द यह भी है कि वर्षों से आवाज उठाने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। मंगरोप क्षेत्र के लादूलाल, दयाराम और अन्य ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बड़े नेता कभी-कभार गांव आते हैं तो केवल ज्ञापन लेकर और फोटो खिंचवाकर लौट जाते हैं। “इति श्री” कर लेने के बाद समस्या जस की तस रहती है। इस दौरान न तो कोई दीर्घकालिक योजना बनाई जाती है, न ही प्रदूषण के स्रोत को बंद करने की पहल होती है।
ग्रामीण बताते हैं कि जिन खेतों में कभी मक्का, गेहूं और सब्जियां लहलहाती थीं, वहां अब बंजर ज़मीन रह गई है। कुओं और हैंडपंप का पानी कड़वा और बदबूदार हो चुका है। पशुओं के लिए पीने योग्य पानी का भी गंभीर संकट है। कई परिवारों को पीने का पानी मीलों दूर से लाना पड़ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि कई गांवों में जलजनित बीमारियों के मामले बढ़ने लगे हैं।
लादूलाल ने कहा, “हमने बार-बार शिकायतें कीं, धरने दिए, ज्ञापन सौंपे, लेकिन नतीजा शून्य रहा। फैक्ट्रियों से निकलने वाला यह जहरीला पानी हमारे खेत-खलिहान और जीवन दोनों को बर्बाद कर रहा है। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यहां रहना मुश्किल हो जाएगा।”
दयाराम का कहना है कि प्रशासन और नेताओं के बीच इस मुद्दे पर उदासीनता साफ झलकती है। “जब चुनाव आते हैं, तब वादे किए जाते हैं, लेकिन बाद में कोई पूछने तक नहीं आता। हमारे बच्चों का भविष्य और हमारी जमीन दोनों खतरे में हैं।”
ग्रामीणों की मांग है कि सरकार तत्काल इस समस्या पर उच्चस्तरीय जांच कराए और प्रदूषित पानी के प्रवाह को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए। साथ ही, प्रभावित किसानों को मुआवजा दिया जाए और गांवों के लिए स्वच्छ पेयजल की स्थायी व्यवस्था की जाए।
इस गंभीर संकट के बावजूद अब तक किसी बड़े नेता ने इस मुद्दे पर खुलकर आवाज नहीं उठाई है। कभी-कभार किसी जनप्रतिनिधि का गांव में आना होता भी है, तो यह मुलाकात केवल ज्ञापन तक सिमट कर रह जाती है। ग्रामीणों का गुस्सा अब बढ़ने लगा है और वे चेतावनी दे रहे हैं कि अगर उनकी अनदेखी जारी रही, तो वे जिला स्तर पर बड़ा आंदोलन करेंगे।
भीलवाड़ा जिले के इन इलाकों की यह कहानी सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह सवाल भी है कि विकास के नाम पर उद्योगों को खुली छूट देकर आखिर कितने गांवों की जमीन और पानी को कुर्बान किया जाएगा।
दो दिन पहले ही सोना नामक फैक्ट्री के खिलाफ लोगों को गुस्सा फूटा और वो कलेक्टर कार्यालय पर प्रदर्शन कर विरोध जता चुके है। मगर कार्यवाही के नाम पर क्या हुआ ये सब को पता हे ग्रामीण प्रदूषण नियंत्रण मंडल पर भी मिली भगत का आरोप लगाया है । वही पर्यावरण की बात कर वाले लोगों को भी ग्रामीण मौका परस्त बताकर कोई मदद के लिए आगे आने की बात भी नहीं कहते है ।
