जीवन में गुरु बनाने से ही जीवन सार्थक- आचार्य शक्ति देव
भीलवाड़ा। जिस प्रकार नदियों में गंगा श्रेष्ठ हैं क्षेत्र में काशी श्रेष्ठ हैं वैष्णव में भगवान शंकर श्रेष्ठ हैं ऐसे ही सभी पुराणों में श्रीमद् भागवत महापुराण श्रेष्ठ है इसे सभी पुराणों का तिलक कहा जाता है। यह बात शिवाजी पार्क आरसी व्यास कॉलोनी भीलवाड़ा में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण के सप्तम दिवस की कथा में महाराज शक्ति देव ने भगवान श्री कृष्ण के 16108 विवाहों का वर्णन करते हुए कथा विश्राम के समय कहीं। उन्होंने कथा के दौरान बताया कि कृष्ण के जो प्रथम पुत्र हैं उनका नाम है प्रद्युम्न प्रद्युम्न का मतलब होता है जिसके जीवन में सुंदर कर्मों का प्रकाश है यानी हम अपने जीवन में अच्छे कर्म करके जीवन को प्रकाशित करें पहचान बनाएं तो श्री कृष्ण को हम पुत्र के समान प्रिय लगते हैं।
मीडिया प्रभारी महावीर समदानी ने बताया कि महाराज ने कथा के दौरान भक्तों को बताया कि दत्तात्रेय जी के 24 गुरुओं के बारे में जानकारी दी एवं जीवन में गुरु बनाना अति आवश्यक है गुरु मंत्र जब हम लेते हैं तभी हमारा कल्याण होता है तभी जीवन सार्थक है मंत्र जो गुरु हमें देते हैं वही पुस्तक में भी लिखा होता है। लेकिन दोनों में अंतर होता है जैसे कोई व्यक्ति गुनाह करके अदालत में पहुंचे तो नीचे खड़े हुए कितने भी लोग कहें कि वह बेगुनाह है। फिर भी उनकी बात नहीं सुनी जाएगी लेकिन यदि गद्दी पर बैठा हुआ जज केवल एक बार बोल दे तो उसकी बात मानी जाएगी। क्योंकि वह पद के प्रभाव से बोलता है इसी प्रकार गुरु हमें जो मंत्र देते हैं उसका पुरुश्चरण करते हैं उसको जागृत करते हैं और तपके प्रभाव से मंत्र को हमें देते हैं। इसलिए वह गुरु मंत्र प्रभावशाली रहता है।