राजस्थान हाई कोर्ट का अहम फैसला:: केवल जाति का होने से SC-ST एक्ट नहीं लगता', राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- अपराध के पीछे मंशा देखना जरूरी

Update: 2025-12-04 01:59 GMT

 

जयपुर। राजस्थान हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम तभी लागू होगा जब अपराध आईपीसी के तहत 10 साल या उससे अधिक सजा वाला हो और वह जातिगत विद्वेष के कारण किया गया हो।

जस्टिस फरजद अली की एकल पीठ ने यह टिप्पणी प्रतापगढ़ जिले के 30 साल पुराने केस की सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने इस मामले में तीन भाइयों को एससी-एसटी एक्ट के आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन उन्हें अतिक्रमण के आरोप में दोषी माना।

पीठ ने कहा कि मामले को लंबा समय गुजर चुका है और अभियुक्त अब वृद्ध हो चुके हैं, इसलिए जो जेल अवधि उन्होंने पहले काटी, उसे ही पर्याप्त सजा माना जाएगा।

30 साल पुराना जमीन विवाद

प्रतापगढ़ के सेलारपुरा निवासी कालू, रुस्तम और वाहिद खान ने 1995 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि आरोपितों ने परिवादी की जमीन पर अतिक्रमण किया और मारपीट की।हाई कोर्ट ने पाया कि विवाद केवल पगडंडी के रास्ते को लेकर था, न कि किसी जातिगत भावना से प्रेरित।

एससी-एसटी एक्ट लागू करने के लिए दो जरूरी शर्तें

जस्टिस फरजद अली ने अपने आदेश में लिखा कि एससी-एसटी एक्ट लागू करने के लिए दो शर्तें अनिवार्य हैं—

1. आईपीसी के तहत 10 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान हो।

2. अपराध जातिगत पहचान या विद्वेष के आधार पर किया गया हो।

कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण की धारा 447 में अधिकतम सजा सिर्फ तीन महीने है, इसलिए इस मामले में एससी-एसटी एक्ट लागू नहीं हो सकता।

---

हाई कोर्ट के इस फैसले को भविष्य में आने वाले ऐसे मामलों में एक महत्वपूर्ण कानूनी दिशा-निर्देश माना जा रहा है।

Tags:    

Similar News