धनोप राजेश शर्मा।भीलवाड़ा जिले के फुलियां कलां उपखंड क्षेत्र का सबसे बड़ा आस्था का केंद्र शक्तिपीठ धनोप माता मेला 29 मार्च शनिवार अमावस्या को घट स्थापना के साथ शुरू होने जा रहा है जो 7 अप्रैल दसमीं सोमवार को समापन होगा। 5 अप्रैल अष्टमी शनिवार को विशाल मेले का आयोजन होगा। पुजारी प्रदीप पंडा, धर्मेंद्र पंडा नवल पंडा, राजेश पंडा ने बताया कि चेतई नवरात्रा स्थापना शनिवार अमावस्या दोपहर 12:15 बजे से पूजा-अर्चना प्रारंभ होगी जो महाआरती के साथ संपन्न होगी। विधि विधान से घट स्थापना कर 10 दिवसीय चेतई नवरात्रि महोत्सव और मेले का आगाज होगा। मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह राणावत ने जानकारी देते हुए बताया कि मेले से पूर्व तैयारी को लेकर मंदिर परिसर में अस्थाई दुकानों का आवंटन, मंदिर परिसर में साज सजावट व पार्किंग व्यवस्था ठेका नीलामी, धर्मशाला व्यवस्था व मंदिर परिसर में अन्य व्यवस्थाओं का जायजा लिया। अध्यक्ष राणावत ने बताया कि धनोप माता मेले के दौरान प्रशासन की भी उचित व्यवस्था रहेगी। धनोप माता मंदिर को विद्युत डेकोरेशन से सजाया जाएगा। पुजारी निखिल पंडा व लक्की पंडा ने बताया कि धनोप माता की आरती हर रोज सुबह शाम दोनों समय होती है लेकिन नवरात्रा के समय एकम से लेकर दशमीं तक प्रातः 3:30 बजे मंगला आरती, 7:30 बजे मुख्य आरती और 7:15 बजे सायं आरती होती है। दशमीं पर दिन को 11:30 बजे आरती के बाद ज्वारा विसर्जन के दौरान 10 दिवसीय मेले का समापन होगा।
आगाज::स्वप्न में दर्शन देने के बाद टीले की खुदाई में 7 बहनों के साथ प्रकट हुई धनोप माता।
–1100 वर्षों पुराना हैं धनोप माता मंदिर।
-1194 ई में पृथ्वीराज चौहान और जयचंद ने सभा मंडप और एकलिंग नाथ की कराई स्थापना।
-मंदिर में औघड़नाथ के कारण पुजारी नहीं लगाते साबुन।
- राजा धुन्धमार ने ताँबावती नगरी को दिया धनोप नाम।
- दाधीच पुजारी 22 पीढ़ियों से कर रहे सेवा पूजा।
राजा धुन्धमार ने ताँबावती नगरी को दिया धनोप नाम
फुलिया कला उपखण्ड क्षेत्र के प्राचीन शक्तिपीठ धनोप माताजी मंदिर 1100 वर्षो से भी पुराना हैं। जिसकी पुष्टि मंदिर में लगे शिलालेख से होती है। मंदिर में माता 7 मूर्तियों के रूप में विराजित हैं जो अष्टभुजा, अन्नपूर्णा, चामुंडा, बीसभुजा(महिषासुर मर्दिनी), एवं कालिका रूप में विराजित हैं।वहीं माता की 2 मूर्तियां श्रृंगार के अंदर विराजित हैं।
मंदिर निर्माण को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं परंतु मंदिर में भैरूजी के समीप लगें गाय बछड़े के शिलालेख में विक्रम संवत 912 का उल्लेख हैं। जिससे अनुमान लगाया जा सकता हैं कि यह मंदिर विक्रम संवत 912 से पुराना हैं।
माता का श्रृंगार फूल और पाती से किया जाता है। निज मंदिर छतरी में शिव शक्ति का जोड़ा परिवार सहित विराजित है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश, 64 जोगणिया विराजित है। उत्तर मुख पर ओगड़नाथ बालाजी विराजित है। मंदिर के सामने भैरवनाथ मंदिर स्थापित है जहां भूत-प्रेत, बाहरी हवाओं का इलाज होता है।
वर्तमान प्रधान पुजारी रामप्रसाद पंडा ने बताया कि उनके पूर्वज नागौर जिले के जायल तहसील के गोठ माँगलोद स्थित दधिमथी माता के पुजारी थे। जहां आकाल की स्थिति होने से वहां से वे तीन भाई अपने परिवार के साथ यहां आ गए। जब तालाब की पाल पर सो रहे थे तभी उनकी कुलदेवी दधिमथी माता सपने में आई और टीले पर दबी मूर्तियों को बाहर निकाल पूजा अर्चना करने के बारे में बताया। उसी समय राजा धुन्ध जो ताँबावती नगरी का राजा था उसे भी स्वप्न में दर्शन देकर बताया। साथ ही पुजारियों की भी जानकारी दी। राजा धुन्ध गाजे बाजे के साथ पुजारियों को लेकर टीले पर पहुंचे। थोड़ी खुदाई करने पर माता अपनी 7 बहनों के साथ प्रकट हुई
जो अष्टभुजा, अन्नपूर्णा, चामुंडा, बीसभुजा(महिषासुर मर्दिनी), एवं कालिका रूप में विराजित हैं। वहीं माता की 2 मूर्तियां श्रृंगार के अंदर विराजित हैं। माता के दर्शन श्रृंगार बिना वर्जित हैं। यहां प्रतिदिन नीम और आक को छोड़कर सभी तरह के वृक्षों की पत्तियों, एवं पुष्पों से माता का श्रृंगार होता हैं।
औघड़नाथ की भी पूजा-
मंदिर में औघड़नाथ भी विराजित हैं जिसके बारे में बताया जाता हैं कि इनकी स्थापना माताजी की स्थापना के साथ ही हुई थी। इसी कारण धनोप माता के पुजारी अपने ओसरे के दौरान अपने शरीर एवं वस्त्रों पर साबुन - सर्फ का उपयोग नहीं करते हैं।
मंदिर में एकलिंग नाथ भगवान-
मंदिर में भगवान शिव एकलिंग नाथ के रूप में विराजित हैं जिनकी स्थापना पृथ्वीराज चौहान एवं राजा जयचंद द्वारा करवाई गई।
जो मंदिर सभामंडल में बाईं ओर स्थित हैं। जिसकी नित्य पुजारियों द्वारा माता के साथ ही पूजा अर्चना की जाती हैं। यह मंदिर क्षेत्र का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता हैं।मंदिर में लगे प्राचीन शिलालेख भी स्थित हैं जो धनोप माताजी मंदिर की स्थापना को प्राचीन बताते हैं।
स्थानीय पुजारियों के अनुसार धनोप क्षेत्र ताँबावती नगरी के नाम से जाना जाता था। जहां के शासक राजा धुंध थे। जो राक्षस प्रवर्ति के बताए जाते हैं। जिनका अयोध्या के शासक राजा कुवलाश्व ने युद्ध के दौरान वध कर दिया। इसके बाद कुवलाश्व ताँबावती नगरी के राजा बने। जो धुँधमार के नाम से प्रसिद्ध हुए। राजा कुवलाश्व के पुत्र मांधाता हुए। राजा मांधाता ने धनोप माता मंदिर की स्थापना की।
मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह राणावत तथा पुजारी एवं मंदिर ट्रस्ट सचिव रमेंश चंद्र पंडा ने बताया कि
पूर्वजो द्वारा सुनी सुनाई जानकारी के अनुसार अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान, मोहम्मद गोरी से युद्ध कर लौटते समय इसी स्थान पर अपने विरोधी एवं संयोगिता के पिता कन्नौज के शासक जयचंद के मध्य संधी हुई। जिसके पश्चात दोनों ने माताजी की पूजा अर्चना की। इसके पश्चात मंदिर परिसर में एकलिंग भगवान (शिव) की स्थापना करवाई एवं राजा जयचंद ने सभा मंडप का निर्माण कराया।
सालो पहले यहां आकर बसे नागोर के दाधीच ब्राम्हणों द्वारा की जाती थी पूजा अर्चना।
वर्तमान में दाधीच ब्राह्मण मंदिर के पुजारी हैं। जो मूलतः नागौर जिले के निवासी बताए जाते हैं।
जो करीब 22 वी पीढी पूर्व दधिमथी माताजी मंदिर गोठ मांगलोद(नागौर) के पुजारी थे। मारवाड़ क्षेत्र में अकाल की स्थिति होने से उनका जीवन यापन करना मुश्किल हो गया। तब दधिमथी मंदिर पुजारी दाधीच ब्राह्मणों ने पुष्कर के पाराशर ब्राह्मणों को दधिमथी माताजी की सेवा पूजा संभाला कर पलायन कर लिया। घूमते हुए यहां पहुंचे। तब उनकी कुलदेवी माता दधिमथी ने बाल रूप में दर्शन देकर स्थापित देवी मंदिर की पूजा करने के लिए बोला और इसी स्थान पर बसने के लिए बोला।
इसके बाद से आज तक वहीं दाधीच परिवार पूजा अर्चना कर रहा हैं।
धनोप गांव में खुदाई के दौरान कई प्राचीन वस्तुएं, मूर्तियां और सिक्के निकलते हैं। पिछले दिनों निकले चांदी के सिक्कों पर राजा का ऊर्ध्व चित्र व दूसरी ओर अग्निवेदी या सिंहासन के चित्र छपे हैं। जिन्हें चलाने का श्रेय हूण शासकों को दिया जाता हैं। आज भी धनोप माता मंदिर पुजारीयों के लिए वरदान साबित है कि उनके परिवारों में 20 घर है जो ना तो बढ़कर 21 होते है और ना ही घटकर 19 होते हैं।