नौगाम धमाका:: एक नहीं, दो सिस्टम फेल , हमारी लापरवाहियों के धमाके ज्यादा घातक साबित
जम्मू-कश्मीर पुलिस की सतर्कता ने भले फरीदाबाद के खतरनाक आतंकी मॉड्यूल को बेनकाब कर दिया हो, लेकिन अफसोस कि उसी बरामद विस्फोटक के एक हिस्से ने नौगाम थाने में नौ जांबाजों की जान छीन ली। यह सिर्फ एक हादसा नहीं—यह पूरे सुरक्षा तंत्र की चूक का भयानक प्रतीक है।
फरीदाबाद मॉड्यूल से मिला अमोनियम नाइट्रेट वही विस्फोटक था जिसे दिल्ली में लाल किले के पास किए गए विस्फोट में इस्तेमाल किया गया। उस कार बम ने 13 लोगों की जान ले ली थी। अब सवाल बड़ा और कड़वा है—क्या फरीदाबाद में विस्फोटक मिलते ही यदि आतंकियों के बाकी साथियों का तुरंत पीछा किया जाता, तो क्या लाल किले के पास का धमाका रोका जा सकता था?
और एक और सवाल—क्या इस विस्फोटक को फरीदाबाद से श्रीनगर ले जाना ही जरूरी था?
जब मॉड्यूल का भंडाफोड़ हो चुका था और साफ था कि मामला NIA के हवाले होगा, तो आखिर क्यों यह उच्च जोखिम वाली सामग्री हजारों किलोमीटर दूर नौगाम भेजी गई?
आज देश की वास्तविकता बदल चुकी है — आतंकी नेटवर्क अब एक राज्य में नहीं, बल्कि एक क्लिक में देशभर में फैल चुका है। ऐसे में विस्फोटकों को “एफआईआर वाली पुलिस स्टेशन” पहुंचाने वाली पुरानी सिस्टम सोच अब जानलेवा साबित हो रही है।
क्या यह समझना इतना मुश्किल है कि अमोनियम नाइट्रेट जैसे संवेदनशील विस्फोटक को लंबी दूरी तक ढोना खुद एक संभावित बम यात्रा है?
यह वही विस्फोटक है जो जरा-सी घर्षण, तापमान या हल्के दवाव से भी फट सकता है—फिर भी इसे ट्रकों में भरकर राज्यों की सीमाएँ पार कराई गईं। नतीजा? नौगाम में नौ मौतें… और पूरे सिस्टम का चेहरा काला।
देश में हर राज्य के पास ATS, विशेष फॉरेंसिक लैब्स और विस्फोटक विशेषज्ञ टीमें मौजूद हैं।
तो फिर क्यों नहीं नियम बदले जा रहे? क्यों नहीं विस्फोटक वहीं जांचे जाते जहाँ वे पकड़े जाते हैं?
और क्यों इतनी ठोस वजहों के बाद भी सुरक्षा एजेंसियाँ पुराने चलन को छोड़ने को तैयार नहीं?
नौगाम और लाल किले के धमाके हमें एक ही बात चिल्ला-चिल्लाकर बता रहे हैं —
देश को आतंकियों से जितना खतरा है, उतना ही अब ढर्रे पर चल रही जांच-प्रक्रियाओं से भी।
अब सिर्फ आतंकियों को नहीं, पुरानी नीतियों को भी गिरफ़्तार करने की जरूरत है।
