बांध के बीच टापू पर है बोहरी माता का शक्तिपीठ । जन जन की आस्था।

Update: 2025-09-24 18:27 GMT

 

आकोला ( रमेश चंद्र डाड)

भीलवाड़ा जिले में बोहरी माता का धाम बांध के बीच टापू नुमा विशाल चट्टान पर बना हुआ है। भीलवाड़ा कोटा हाईवे पर कोठारी बांध में करीब 500 वर्ष प्राचीन स्थान पर कालिका माता के रूप में देवी की स्थापना तत्कालीन समय ने समस्त ग्रामीणों कराई थी। बुजुर्ग ग्रामीण कहते हैं कि माता के दरबार में जरूरत पर यहां से स्वर्ण मुद्राएं मिलने लगीं थीं। तब से लक्ष्मी स्वरूप मे पूजा जाने लगा साथ ही माता को बोहरी माता भी कहा जाने लगा। बोहरा वे होते हैं जो रुपए का लेन-देन करते हैं। पुजारी या भक्त जरूरत के समय मन्नत मांगते थे धूप देते समय सोने का खैरा तथा आवश्यकता के अनुसार नकद राशि धूप पात्र के नीचे मिल जाती थी। वर्तमान में भी गंभीर आर्थिक संकट से गिरे हुए श्रद्धालु आर्थिक परेशानी से निकलने के लिए माता से मन्नत मांगते हैं। उधार राशि की पाती भी मांगी जाती हैं। माता के भक्तों में आस्था इतनी है कि यहां से उधार राशि-पाती लेकर निवेश करना लाभदायी होता है। हर रविवार ओर नवरात्रि में दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

अलग-अलग समाज करता है पूजा।

नित्य पूजा की जिम्मेदारी किसी एक समाज के पास नहीं रही। यह पाती से तय होती है। किसी समय कोली समाज की पूजा थी। बाद में भाट, राजपूत समाज के पास पूजा रही। अभी गुर्जर समाज सेवा करता हे ओर वर्तमान सांवरलाल गुर्जर पुजारी हैं जिनका परिवार चार पीढ़ी से सेवा कर रहा हे। पुजारी बताते हैं कि दादा के समय से पूजा की जिम्मेदारी गुर्जर परिवार निभा रहा है। मेवाड़ के श्रद्धालुओं में चित्तौड़ दुर्ग पर विराजित कालिका माता की तरह यहां के प्रति भी आस्था है। मंदिर परिसर में दुमंजिला धर्मशाला, भोजनशाला भी बनी हुई है।

बलि देने की प्रथा प्रतिबंधित

काफी समय पहले तक यहां पशु बलि की प्रथा थी। पुजारियों के आग्रह पर बलि दिए जाने वाले स्थान पर खुदाई करवाई गई। उस स्थान पर शिवलिंग व नंदी प्रकट हुई। इनकी स्थापना करवाई गई। अब मंदिर परिसर में पशु बलि प्रतिबंधित है। कुछ समय पहले तक नावों से आना-जाना पड़ता था। इस स्थान पर 2014 में महायज्ञ हुआ था। उससे बची राशि व तत्कालीन विधायक धीरज गुर्जर की अनुशंसा से पुलिया बनवाई थी। तब से यहां आने जाने में सहूलियत मिलने लगी ।

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