15 दिनों में 2 ग्रहण: क्या कहता है ज्योतिष, क्या मचेगी तबाही?

Update: 2025-08-24 04:00 GMT

 

सितंबर 2025 में एक दुर्लभ खगोलीय और ज्योतिषीय संयोग बन रहा है, जिसमें 15 दिनों के भीतर दो ग्रहण घटित होंगे। 7 सितंबर को पूर्ण चंद्रग्रहण और 21 सितंबर को खंडग्रास सूर्यग्रहण। ज्योतिष शास्त्र में इसे बड़े बदलाव और चुनौतियों का संकेत माना जाता है। विशेष रूप से 21 सितंबर का सूर्यग्रहण पितृ अमावस्या के साथ मेल खाता है, जो पितृ तर्पण और कर्मों के समाधान के लिए महत्वपूर्ण है। आइए, इन ग्रहणों और उनके ज्योतिषीय प्रभावों को विस्तार से समझें।

7 सितंबर 2025: पूर्ण चंद्रग्रहण

भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि पर, 7 सितंबर 2025 को साल का अंतिम पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। यह ग्रहण भारत, एशिया, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के कई हिस्सों में दिखाई देगा।

समय:

प्रारंभ: रात 9:57 बजे

मध्यकाल: रात 11:41 बजे

समाप्ति: रात 1:27 बजे (8 सितंबर)

ज्योतिषीय प्रभाव: वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चंद्रग्रहण का मानसिक और भावनात्मक प्रभाव अधिक होता है। इस दौरान चंद्रमा की ऊर्जा प्रभावित होती है, जिससे तनाव, चिंता या भावनात्मक उथल-पुथल बढ़ सकती है।

धार्मिक नियम: ग्रहण के दौरान भोजन, जल, पूजा-पाठ और शुभ कार्य वर्जित हैं। गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है, जैसे घर में रहना और नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए मंत्र जाप करना।

उपाय: ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान, दान और मंत्र जाप (जैसे "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" या चंद्र मंत्र) करने से नकारात्मक प्रभाव कम हो सकते हैं।

21 सितंबर 2025: खंडग्रास सूर्यग्रहण और पितृ अमावस्या

चंद्रग्रहण के ठीक 15 दिन बाद, अश्विन मास की अमावस्या तिथि पर, 21 सितंबर 2025 को खंडग्रास सूर्यग्रहण होगा। यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, लेकिन इसका ज्योतिषीय प्रभाव देश में भी महसूस किया जाएगा। खास बात यह है कि यह ग्रहण पितृ अमावस्या के साथ मेल खाता है, जो पितृ तर्पण और पूर्वजों से जुड़े कर्मों के निवारण के लिए विशेष महत्व रखता है।

समय:

प्रारंभ: रात 11:00 बजे

मोक्ष काल: रात 3:24 बजे (22 सितंबर)

दृश्यता: यह ग्रहण न्यूजीलैंड, पूर्वी मलेशिया, दक्षिणी पोलिनेशिया और अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा।

ज्योतिषीय प्रभाव: सूर्यग्रहण सूर्य की ऊर्जा को प्रभावित करता है, जो आत्मविश्वास, नेतृत्व और स्वास्थ्य से जुड़ा है। यह ग्रहण पितृ अमावस्या के साथ होने से पितृ दोष और पारिवारिक कर्मों से संबंधित मुद्दों को उजागर कर सकता है। ज्योतिषी विक्रम सोनी के अनुसार, इस दौरान सामाजिक और वैयक्तिक स्तर पर बड़े बदलाव या चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं।

पितृ अमावस्या का महत्व: पितृ अमावस्या पितरों की शांति और तर्पण के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। इस दिन सूर्यग्रहण का योग इसे और भी प्रभावशाली बनाता है। पितृ दोष से मुक्ति, पूर्वजों की आत्मा की शांति और पारिवारिक समस्याओं के समाधान के लिए यह अवसर विशेष है।

उपाय:

पितृ तर्पण, श्राद्ध और दान (जैसे तिल, काले वस्त्र, या भोजन) करना।

सूर्य मंत्र ("ॐ सूर्याय नमः") या गायत्री मंत्र का जाप।

ग्रहण के बाद स्नान और जरूरतमंदों को दान देना।

पितृ दोष निवारण के लिए "ॐ पितृभ्यो नमः" मंत्र का जाप और पिंडदान।

क्या मचेगी तबाही?

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण को अशुभ माना जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि यह तबाही लाएगा। ज्योतिषी विक्रम सोनी के अनुसार, 15 दिनों में दो ग्रहणों का संयोग दुर्लभ है और यह बड़े परिवर्तनों का संकेत देता है। यह व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर बदलाव, चुनौतियां या नए अवसर ला सकता है।

वैश्विक प्रभाव: पर्यावरणीय बदलाव, प्राकृतिक घटनाएं या सामाजिक उथल-पुथल की संभावना।

वैयक्तिक प्रभाव: मानसिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएं या पारिवारिक मुद्दे उभर सकते हैं। पितृ अमावस्या के साथ सूर्यग्रहण होने से पितृ दोष से प्रभावित लोगों पर असर अधिक हो सकता है।

सावधानियां: ग्रहण के दौरान बाहर न निकलें, नुकीली वस्तुओं का उपयोग न करें, और मंत्र जाप या ध्यान करें। गर्भवती महिलाओं को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए।

ऐतिहासिक संदर्भ

ज्योतिषी विक्रम सोनी के अनुसार, ऐसा संयोग पहले भी देखा गया है, जैसे:

1979: 22 अगस्त (सूर्यग्रहण) और 6 सितंबर (चंद्रग्रहण)।

2022: 25 अक्टूबर (सूर्यग्रहण) और 8 नवंबर (चंद्रग्रहण)।

इन अवधियों में सामाजिक, राजनीतिक और प्राकृतिक बदलाव देखे गए थे। 2025 का यह संयोग भी इसी तरह के प्रभावों का संकेत देता है।

 

सितंबर 2025 के ये दो ग्रहण न केवल खगोलीय घटनाएं हैं, बल्कि ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। विशेष रूप से 21 सितंबर का सूर्यग्रहण, जो पितृ अमावस्या के साथ मेल खाता है, पितृ दोष निवारण और पूर्वजों की शांति के लिए एक विशेष अवसर है। ग्रहणों के दौरान धार्मिक नियमों का पालन, मंत्र जाप, दान और तर्पण से नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है। यह समय आत्मनिरीक्षण, कर्म सुधार और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी उपयुक्त है।

ध्यान दें: ग्रहण के प्रभाव राशि, कुंडली और व्यक्तिगत कर्मों पर भी निर्भर करते हैं। किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श लें और उचित उपाय करें।

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