हिन्दू धर्म में पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) का विशेष स्थान है। यह काल हर साल भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से लेकर अमावस्या तक चलता है। मान्यता है कि इस अवधि में पूर्वज धरती पर अपने वंशजों से तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान की आशा लेकर आते हैं। श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देते हैं। इसे ऋणमोचन का समय भी कहा गया है, क्योंकि हर व्यक्ति अपने पितरों का ऋणी माना गया है।
📅 पितृपक्ष 2025 की तिथियां
पूर्णिमा श्राद्ध – रविवार, 7 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध – सोमवार, 8 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – मंगलवार, 9 सितंबर
तृतीया/चतुर्थी श्राद्ध – बुधवार, 10 सितंबर
भरणी व पंचमी श्राद्ध – गुरुवार, 11 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – शुक्रवार, 12 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध – शनिवार, 13 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध – रविवार, 14 सितंबर
नवमी श्राद्ध – सोमवार, 15 सितंबर
दशमी श्राद्ध – मंगलवार, 16 सितंबर
एकादशी श्राद्ध – बुधवार, 17 सितंबर
द्वादशी श्राद्ध – गुरुवार, 18 सितंबर
त्रयोदशी/मघा श्राद्ध – शुक्रवार, 19 सितंबर
चतुर्दशी श्राद्ध – शनिवार, 20 सितंबर
सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध – रविवार, 21 सितंबर
👉 इस बार विशेष संयोग यह है कि तृतीया और चतुर्थी तिथि का श्राद्ध एक ही दिन (10 सितंबर, बुधवार) को पड़ेगा।
✨ सार
पितृपक्ष सिर्फ धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति आभार और सम्मान व्यक्त करने का अवसर है। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और दान करने से माना जाता है कि पितरों की आत्मा तृप्त होती है और घर-परिवार पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
Q1. पितृपक्ष के दौरान तर्पण और पिंडदान करने के पीछे धार्मिक और आध्यात्मिक तर्क क्या हैं?
➡️ तर्पण और पिंडदान का उद्देश्य पितरों की आत्मा को जल, भोजन और आशीर्वाद रूपी ऊर्जा प्रदान करना है। धार्मिक मान्यता है कि जब वंशज जल और तिल अर्पित करते हैं, तो यह पितृलोक तक पहुंचता है और आत्मा की तृप्ति होती है। आधुनिक दृष्टिकोण से देखें तो यह पूर्वजों की स्मृति और परिवार में कृतज्ञता की भावना बनाए रखने का माध्यम है।
Q2. यदि कोई व्यक्ति पितृपक्ष में श्राद्ध नहीं कर पाता तो उसके लिए क्या उपाय बताए गए हैं?
➡️ शास्त्रों के अनुसार यदि श्राद्ध संभव न हो तो व्यक्ति को ब्राह्मणों को भोजन कराना, गौ-सेवा करना, जरूरतमंदों को अन्न और कपड़े दान करना चाहिए। इसके अलावा गंगा जल अर्पण और पितरों को स्मरण करके प्रार्थना करना भी श्राद्ध का फल देने वाला माना गया है।
Q3. पितृपक्ष में किन कार्यों और नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
➡️ इस अवधि में अहिंसा का पालन, सात्विक भोजन, ब्रह्मचर्य, दान और आत्मसंयम को महत्व दिया गया है। मांस-मदिरा का त्याग, झूठ और दूसरों को नुकसान पहुँचाने से बचना चाहिए। साथ ही प्रतिदिन पितरों का स्मरण और ‘ॐ पितृभ्यः स्वधा’ मंत्र का जप करना भी शुभ माना जाता है।
