देश में हर 10 में से तीन लोगों को ये गंभीर बीमारी, स्वास्थ्य सचिव ने पेश किए चौंकाने वाले आंकड़े

By :  vijay
Update: 2024-09-27 14:22 GMT

देश में बढ़ती कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों के कारण हर साल स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त बोझ भी बढ़ता जा रहा है। डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोगों के साथ-साथ लिवर से संबंधित कई तरह की बीमारियां भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता का कारण बनी हुई हैं। भारत में नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज के खतरे को लेकर अलर्ट किया जा रहा है।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम में देश में बढ़ती इस गंभीर स्वास्थ्य समस्या को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा, नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर (एनएएफएलडी) डिजीज तेजी से प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभरती समस्या है। युवाओं में इसका खतरा और भी बढ़ गया है।

देश में हर दस में से करीब तीन लोग इस समस्या के शिकार देखे जा रहे हैं, इससे स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव बढ़ गया है। एनएएफएलडी के लिए दिशानिर्देश और प्रशिक्षण मॉड्यूल जारी करते हुए उन्होंने कहा, भारत ने इसे नॉन कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी) के रूप में वर्गीकृत करने की पहल की है। सभी लोगों को इस रोग के बारे में जानना और इससे बचाव के लिए उपाय करते रहना जरूरी है।

नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर के कारण बढ़ी चिंता

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने कहा, एनएएफएलडी और कई प्रकार की मेटाबॉलिक बीमारियों जैसे मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों के बीच संबंध पाया गया है। नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर के शिकार लोगों की निरंतर देखभाल और इलाज बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा इस रोग के बढ़ते जोखिमों को कम करने के लिए लाइफस्टाइल और आहार दोनों में सुधार किया जाना चाहिए।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की विशेष कार्य अधिकारी पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने कहा कि इन दिशा-निर्देशों को जमीनी स्तर तक पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि बीमारी का जल्द पता लगाया जा सके और एनएएफएलडी के बढ़ते बोझ को कम किया जा सके।

क्या कहते हैं लिवर रोग विशेषज्ञ?

लिवर की बढ़ती इस बीमारी को लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (आईएलबीएस) के निदेशक डॉ. एस के सरीन ने कहा, नॉन कम्युनिकेबल डिजीज जैसे मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर का असर लिवर के स्वास्थ्य पर भी होता है। देश में होने वाली मौतों में 66 प्रतिशत से अधिक एनसीडी से ही संबंधित हैं।

मंत्रालय ने एक बयान में कहा का तंबाकू सेवन-धूम्रपान, शराब, गलत खान-पान की आदतें, शारीरिक गतिविधियों में कमी और वायु प्रदूषण आदि के कारण नॉन कम्युनिकेबल डिजीज बढ़ रहे हैं और ये फैटी लिवर रोग के खतरे को भी बढ़ा रहे हैं।

केंद्रीय मंत्री भी कर चुके हैं अलर्ट

गौरतलब है कि इससे पहले 6 जुलाई को नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भी इस रोग को लेकर लोगों को अलर्ट किया था। केंद्रीय मंत्री ने बताया, देश में हर तीसरे व्यक्ति को फैटी लिवर डिजीज की समस्या हो सकती है। इस बीमारी का खतरा उन लोगों में भी तेजी से बढ़ाता हुआ देखा जा रहा है, जो लोग शराब भी नहीं पीते हैं।

पश्चिमी देशों में नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) के ज्यादातर मामले मोटापे के शिकार लोगों में देखे जाते रहे हैं हालांकि भारत में देखा जा रहा है कि बिना मोटापे वाले करीब 20 फीसदी लोग भी इसका शिकार देखे जा रहे हैं।


लिवर की बीमारी- नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज उन लोगों को प्रभावित करती है जो शराब कम पीते हैं या बिल्कुल नहीं पीते हैं। इसमें लिवर में बहुत अधिक वसा जमा होने लगती है, जिससे इस अंग का सामान्य कार्य प्रभावित होने लग जाता है। एनएएफएलडी के मामले अक्सर मोटापे के शिकार लोगों में देखे जाते रहे हैं। विशेषज्ञों को ठीक से पता नहीं है कि लिवर में वसा बनने के लिए क्या कारण जिम्मेदार हैं, हालांकि जीवनशैली के कारक इसका खतरा बढ़ाने वाले माने जाते हैं।

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