चित्तौड़गढ़। भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है, जहां विभिन्न भाषाएं और बोलियां सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता को दर्शाती हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा या स्थानीय भाषा में प्रारंभिक शिक्षा को विशेष महत्व दिया गया है। यह माना गया है कि बच्चे जब अपनी मातृभाषा में सीखते हैं तो वे अधिक आत्मविश्वास और गहराई से ज्ञान अर्जित करते हैं।
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान चित्तौड़गढ़ में आयोजित बहुभाषी शिक्षण हेतु सामग्री निर्माण कार्यशाला का अवलोकन करते हुए मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी महावीर कुमार शर्मा ने कहा कि मातृभाषा में शिक्षण से न केवल बच्चों की समझ बेहतर होती है, बल्कि उनकी अभिव्यक्ति क्षमता भी विकसित होती है।
राजस्थान में भी बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, विशेषकर जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां बच्चों की प्रथम भाषा प्रायः विद्यालय की भाषा से भिन्न होती है। राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उदयपुर के तत्वावधान में प्रदेश के नौ जिलों में स्थानीय भाषा पर आधारित शैक्षिक सामग्री निर्माण एवं बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।
इसी क्रम में चित्तौड़गढ़ जिले में स्थानीय भाषा मेवाड़ी का शब्दकोश निर्माण तथा प्राथमिक कक्षाओं के लिए मेवाड़ी, हिंदी एवं अंग्रेजी तीनों भाषाओं में शिक्षण-अधिगम सामग्री तैयार करने हेतु कार्यशाला का आयोजन 27 से 31 अक्टूबर तक किया जा रहा है।
जिला शिक्षा अधिकारी (मुख्यालय, प्रारंभिक शिक्षा) राजेंद्र कुमार शर्मा ने भी कार्यशाला का अवलोकन किया और सामग्री निर्माण के संबंध में महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इस कार्यशाला में राज्य संदर्भ व्यक्ति अनिल कुमार चाष्टा, सोनल ओझा, कृष्णा कच्छावा और दिनेश कुमार साधु के नेतृत्व में मेवाड़ी भाषा की प्रचलित कहानियां, कविताएं, लोकगीत, लोकोक्तियां, कहावतें और मुहावरे आदि का हिंदी एवं अंग्रेजी अनुवाद तैयार किया जा रहा है।
डाइट संस्थापन अधिकारी राकेश कुमार सुखवाल ने बताया कि सामग्री निर्माण में विश्वामित्र दायमा, शिल्पा खटोड़, विद्याधर दशोरा, आशा जैन, हेमलता शर्मा आदि शिक्षकों के साथ निर्माण सोसायटी कपासन के प्रतिनिधि पूरणमल बैरवा का योगदान रहा। अवलोकन के दौरान स्थानीय संस्थान से नितेश लाड़ आदि का सहयोग रहा।
