सर्वथा पापाचरण का अभाव मात्र साधु जीवन में है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरिश्वर

उदयपुर। जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वरजी म. सा. आदि 5 साधु भगवंत आज दि. 9 जून को देवाली से विहार कर श्री जैन श्वेताम्बर जीरावला पाश्र्वनाथ जिनालय-नवरतन कॉम्पलेक्स - भुवाणा- उदयपुर पधारे। प्रात: 9.30 बजे मंदिरजी के प्रांगण में धर्मसभा का आयोजन हुआ। कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि पाश्र्वनाथ जिनालय-नवरतन कॉम्पलेक्स में आयोजित धर्म सभा में जैनाचार्यश्री ने कहा गृहस्थ जीवन में कदम-कदम पर हिंसा आदि पापाचरण होते रहते है। सर्वथा पापाचरण का अभाव मात्र साधु जीवन में है। साधु जीवन के स्वीकार के पहले भले ही व्यक्ति गाडियो या हवाई जहाज में यात्रा करे , परंतु दीक्षा स्वीकार के बाद मात्र पैदल विहार करना है। चाहे कही भी जाना हो, जैन साधु पैदल ही जाते है। साधु जीवन के स्वीकार के पहले व्यक्ति चाहे दिनभर में लाखों का दान देकर लोगों का पेट भरता हो, दीक्षा स्वीकार के बाद वे भी गोचरी से अपना जीवन निर्वाह करते है। मस्तक के बालो का हाथों से लुंचन और कंचन-कामिनी का सर्वथा त्याग कर जैन साधु आत्मिक साधना में रत होते है। पूर्व काल में राजा-महाराजा श्रेष्ठी, मंत्री से लेकर चक्रवर्ती तक कईयों ने आत्मिक साधना करने की भावना से साधु जीवन का स्वीकार किया है। वर्तमान काल में भी बडे-बडे धनवान, उद्योगपति और शिक्षित वर्ग भी सर्वथा निष्पाप जीवन जीने के लिए साधु जीवन का स्वीकार करते है। दुनिया की नजर में प्राप्त हुए भौतिक सुख के त्याग को बडा आश्चर्य माना जाता है परंतु त्यागी मानते है कि मैंने नश्वर सुखों को छोडकर शाश्वत सुख पाने का मार्ग अपनाया है। कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, डॉ. शैलेन्द्र हिरण, डॉ. राकेश भण्डारी, महावीर रांका , रवि कावडिया, प्रकाश गांधी, गिरीश खाब्या आदि की इस प्रसंग पर उपस्थिति रही।