जिनके अच्छे कर्म समाप्त हो चुके हैं वे नरक के मेहमान बनते हैं : साध्वी जयदर्शिता

Update: 2025-08-16 09:26 GMT

उदयपुर। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में कलापूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास संपादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि शनिवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। नाहर ने बताया कि बाहर से दर्शनार्थियों के आने का क्रम निरन्तर बना हुआ है, वहीं त्याग-तपस्याओं की लड़ी जारी है।

नाहर ने बताया कि रविवार 17 अगस्त को प्रात: 9.30 बजे आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में पुण्याश्रावक की सामयिक व स्टेज कार्यक्रम एवं साधार्मिक भक्ति का आयोजन रखा गया है। उसके बाद सभी श्रावक-श्राविकाएं सामूहिक सामयिक करेंगे।

आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में शनिवार को आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने प्रवचन में बताया कि नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति एवं देव गति में अनंतानंत जीवों का समावेश हो जाता है। प्रभु महावीर ने इन चार गति के जीवों को 24 दंडकों में विभक्त किया है। जीवों के कर्म भोग के स्थान को दंडक कहते हैं, जिनके अच्छे कर्म समाप्त हो चुके हैं। वे नरक के मेहमान बनते हैं। अशुभ कर्म के भोगने के स्थान को नरक कहते हैं। हिंसा करने में, झूठी साक्षी देने में, दुराचार करने में पल भर लगता है पर फल तो अत्यधिक भुगतना पड़ता है। प्रभु ने कहा है कि जियो और जीने दो। हमेशा जीवों के प्रति रहम रखें। हम जीव प्रेमी बनें, अपने सुख के लिए दूसरे जीवों का घात नहीं करें। हम हर पल यह सोचें कि हमारे निमित्त से सभी जीवों को सुखसाता व शांति प्राप्त हो, यदि ऐसे शुभ भाव दिन-रात बने रहें तो हम नरक गति के द्वारा बंद कर सकते हैं। भाव ही आत्मा की प्रॉपर्टी हैं। उत्कृष्ट दान देने के पश्चात् पश्चाताप करने से भोगान्तराय का बंध होता है, जिसके कारण मम्मण सेठ की तरह अकूत सम्पदा होने पर भी हम उसका उपभोग नहीं कर सकते, सुपात्र दान देकर हम अपने भवों को अर्थात संसार को सीमित कर सकते हैं।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागौरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भंडारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।

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